संसार की सभी क्रियाएं प्राणमय कोश पर अवलम्बित रहती हैं। मन एवं मन से निकलने वाली इच्छाओं का आधार मनोमय कोश है। समस्त विज्ञान का आलम्बन विज्ञानमयकोश और सांसारिक आनन्द का आधार आनन्दमय कोश है। इस प्रकार सृष्टि में अव्यय से बाहर कुछ भी नहीं है।
बल के जाग जाने से नानाभाव का उदय होता है। इसी के कारण ज्ञानरूप रस भी अनेक रूपों वाला बन जाता है। यह विज्ञानचिति कही जाती है क्योंकि विज्ञान का लक्षण है- विविधं ज्ञानं विज्ञानं। इन दोनों को अन्त:श्चिति भी कहा जाता है। जब काममय मन पर बल की प्रबलता होने लगती है तब बल की चिनाई से क्रमश: प्राणचिति और वाक्चिति बनती हैं। ये क्रमश: स्थूलतम होती हैं। इनको बहिश्चिति भी कहा जाता है। इस प्रकार रसबल की चितियों से आनन्द, विज्ञान, मन, प्राण और वाक् इन पांच कलाओं से समन्वित अव्यय पुरुष चिदात्मा कहलाता है। संसार में ये ही पांचों कलाएं पंचकोश रूप में प्रतिष्ठित रहती हैं। इनमें समस्त प्राणी जगत वाङ्मय कोश पर प्रतिष्ठित रहता है। संसार की सभी क्रियाएं प्राणमय कोश पर अवलम्बित रहती हैं। मन एवं मन से निकलने वाली इच्छाओं का आधार मनोमय कोश है। समस्त विज्ञान का आलम्बन विज्ञानमयकोश और सांसारिक आनन्द का आधार आनन्दमय कोश है। इस प्रकार सृष्टि में अव्यय से बाहर कुछ भी नहीं है।