व्यंग्य राही की कलम से दुर्भाग्य से भारतीय उपमहाद्वीप का इतिहास हिन्दुस्तान की आजादी और बंटवारे पर जाकर खत्म हो जाता है। हमारे विश्वविद्यालयों में भी इतिहास सिर्फ अतीत की कहानी कहता नजर आता है। अतीत को पढऩा और याद रखना अच्छी बात है क्योंकि कैम्ब्रिज के महान इतिहासकार एफ. डब्ल्यू. मीटलैंड कहते हैं कि जो कुछ भी अब अतीत है वह भी कभी भविष्य की बात होगी। इस बात को हम यूं भी कह सकते हैं कि जो लोग अपना इतिहास भूल जाते हैं वह उसे दोहराने के लिए अभिशप्त होते हैं। महाभारत में क्या हुआ? भाई-भाई लड़े और सब कुछ खत्म हो गया। कितने बच्चे अनाथ हुए।
कितनी विधवाएं हुईं। कितने बूढ़ों ने अपने जवान पुत्रों की अर्थियां देखीं। लेकिन इस भूलने की आदत का क्या कहें। अब जरा महाभारत, गुप्त, मौर्य, खिलजी, मुगल और अंग्रेजों के काल से निकलकर आधुनिक काल यानी बंटवारे के बाद से लेकर आज तक के कारनामों पर नजर डालें तो क्या नहीं लगेगा कि हम अतीत दोहरा रहे हैं।
सैंतालीस से पहले भारत और पाकिस्तान क्या थे। एक देश। एक धरती। एक हवा। एक पानी। चलिए एक से दो हो गए। दो भाइयों में नहीं पटती तो बंटवारा हो जाता है। पर बंटवारे के बाद? हां एक बात में आज भी दोनों मुल्क एक है। दोनों देशों में एक से एक झूठे नेता हुए हैं। दोनों देशों के कथित राष्ट्रप्रेमी एक दूजे को नष्ट करने की धमकी देने में पीछे नहीं रहते। दोनों देशों के नेता खूब भ्रष्टाचार करते हैं। दोनों देशों में भयानक गरीबी है।
एक नेता को भ्रष्टाचार के कारण हटना पड़े तो अपने भाई को कुर्सी देता है तो कोई अपनी बीवी को। और जिनके भाई-बीवी नहीं उनके चमचे हाजिर हैं। यह बात दूसरी है कि कुर्सी मिलने के बाद चमचे ही विद्रोह कर देते हैं। भारत में भी सूबे उपराष्ट्रों की तरह व्यवहार करने को उतारू हैं। अब साहब। अपनी तो जैसे तैसे कट गई पर नई पीढ़ी का क्या होगा। अरे शरीफों। कुछ तो सोचो।