गुरुद्वारों पर चलने वाले लंगरों में समाज के हर तबके के लोग बिना किसी भेदभाव के भोजन ग्रहण करते हंै। अन्य धर्मावलंबी भी अपनी इच्छा से ऐसी व्यवस्था अपने धार्मिक स्थलों पर कर सकते हैंै। इस मसले पर दबाव नहीं बनाया जाना चाहिए।
-अशोक कुमार शर्मा, झोटवाड़ा, जयपुर
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भारतीय संस्कृति हमेशा मानव मात्र के कल्याण पर बल देती रही है। इसी का एक रूप गुरुद्वारों में चलने वाली लंगर प्रथा है, जिसमें हजारों लोगों को प्रतिदिन धर्म और जाति से ऊपर उठकर भोजन करवाया जाता है। यह अनूठी परंपरा गुरुद्वारों में सदियों से कायम है। इस अनूठी लंगर प्रथा को अन्य धार्मिक स्थलों पर भी शुरू किया जाना चाहिए, क्योंकि यही मानव मात्र की सच्ची सेवा है। इसका लाभ असहाय, वंचित और बेघर लोगों को मिलेगा ।
-हनुमान बिश्नोई, जयपुर
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देश में कोई भी व्यक्ति भूखा नहीं सोना चाहिए। इसके लिए जो भी उपाय हों, वे करने चाहिए। देश के हर गांव-शहर में धार्मिक स्थल बने हुए हैं। इन स्थलों पर लंगर जैसी व्यवस्था की जा सकती है, किंतु यह पूर्ण रूप से फ्री नहीं होना चाहिए। इसके लिए कुछ न कुछ राशि जरूर ली जानी चाहिए। धार्मिक स्थानों पर यह व्यवस्था सफल रहेगी एवं सरकार भी इन धार्मिक संस्थानों मदद दे सकती है।
-राम किंकर शर्मा, श्योपुर,मप्र
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सभी धर्मों में दरिद्र नारायण के लिए भोजन की व्यवस्था करने को उत्तम माना गया है। यह परिपाटी सदियों से भारतीय परंपरा का अभिन्न हिस्सा रही है। गुरुद्वारों में लंगर व्यवस्था भी इसी का एक हिस्सा है, जिसको सिख धर्मावलंबियों ने गुरुओं का आदेश मानकर अनिवार्य कर्म के रूप में अंगीकृत कर अनवरत रूप से जारी रखा है। अगर इस परंपरा को सभी धर्मस्थलों पर अनिवार्य रूप से लागू किया जाए, तो निराश्रितों व जरूरतमंदों को दो वक्त की रोटी आसानी से नसीब हो सकती है।
-मणिराज सिंह चंद्रावत, मंदसौर, मप्र
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सिखों के पहले गुरु नानक देव ने गुरुद्वारों में जाने वालों को पंक्ति मै बैठाकर भोजन कराने की व्यवस्था शुरू की थी। लक्ष्य यह था कि कोई भी व्यक्ति गुरूद्वारों से भूखा ना आए। यह लंगर व्यवस्था वर्तमान में भी अनवरत जारी है। किसी भी भूखे व्यक्ति को भोजन कराने से बड़ा कोई पुण्य नहीं है। देश में गुरुद्वारों की तरह अन्य धार्मिक स्थलों पर भी लोगों को भोजन कराने की व्यवस्था शुरू करनी चाहिए। इस पुण्य कार्य के लिए धर्म गुरुओं, धार्मिक एवं सामाजिक संगठनों को आगे आना चाहिए। धर्मस्थलों पर चढाई जाने वाली राशि और सामाजिक सहयोग से चंदे के रूप मे एकत्रित राशि से देश के अन्य छोटे-बड़े धार्मिक स्थलों पर आने वाले लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था का प्रबंध होना चाहिए।
-तेजपाल गुर्जरए हाथीदेह, श्रीमाधोपुर
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यदि सभी धर्मस्थलों पर लंगर जैसी परंपरा शुरू हो जाए, तो देश में एक बहुत बड़ा परिवर्तन हो सकता है। भुखमरी की समस्या तो एकदम खत्म हो सकती है। यह परंपरा नए भारत का निर्माण करने में बहुत सहायक सिद्ध हो सकती है।
– डॉ. डीसी सरस्वा, पीलीबंगा, हनुमानगढ़
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अगर सभी धर्मस्थलों पर लंगर चलेंगे तो कोई भी व्यक्ति भूखा नहीं सोएगा। भारत में दानी लोगों की कमी नहीं है। इस काम में सहयोग के लिए ज्यादा से ज्यादा लोग आगे आएंगे।
-लक्ष्मी जाट, राजियासर, गंगानगर
ईश्वर सभी साधन संपन्न लोगों से यह उपेक्षा करता है कि वे गरीबों और जरूरतमंदों का ध्यान रखेंगे। अत: सभी धर्मस्थलों में लंगर का प्रावधान होना चाहिए। इसी के साथ-साथ गरीबों की इस प्रकार भी मदद होनी चाहिए, जिससे वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें, ताकि उन्हें लंगर में नहीं जाना पड़े। सबसे ज्यादा जरूरी है कि साधन संपन्न लोग गरीब के दर्द को महसूस करें।
-हारून रशीद, जयपुर
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गुरुद्वारा द्वारा लंगर चलाए जाने की जितनी तारीफ की जाए, उतनी कम है। बिना किसी भेदभाव के गरीब अमीर सबको एक साथ बिठाकर कर भोजन करवाया जाता है। हिन्दुस्तान के तमाम धर्मस्थलों को अपने परिसर में भोजन की व्यवस्था चालू करनी चाहिए, ताकि कोई भी भूखा नहीं रहे। दन में मिले धन का भी सदुपयोग हो जाएगा और जरूरतमंदों की मदद भी हो जाएगी।
-भगवती लाल जैन, राजसमंद
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भारत में विविध धर्मावलंबी रहते हैं। सभी धर्मों की अपनी-अपनी मान्यताएं हैं। ज्यादातर धार्मिक आयोजन कुछ इस तरह के होते हैं, जिसमें केवल उस धर्म को मानने वाले व्यक्ति ही शामिल होते हंै, परन्तु सिख धर्म के गुरुद्वारों में लंगर एक ऐसा आयोजन है, जिसमें सिख समाज के लोग तो भोजन करते ही हैं, दूसरे धर्मों के लोगो को भी आदरपूर्वक भोजन कराया जाता है। यह अनुकरणीय है। भूखे को भोजन व प्यासे को पानी यदि किसी भी प्रकल्प से कराया जाता है, तो अच्छा है। इसमें हर्ज किस बात का। भारत विविधता में एकता वाला देश है। यदि सभी धार्मिक स्थलों पर इस प्रकार आयोजन होते हैं, तो पारस्परिक शांति, सौहार्द व समन्वय बढ़ेगा, जिससे मेलजोल की भावना बढ़ेगी। मानवता का संदेश संचारित होगा। विश्व बंधुत्व की भावना का विकास होगा।
-विद्याशंकर पाठक, सरोदा, डूंगरपुर
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गुरुद्वारों पर संचालित लंगर सामाजिक समरसता की अनुकरणीय सीख देते हैं। यहां पर सभी लोग बिना किसी संकोच के एक पंगत में बैठकर ससम्मान भोजन ग्रहण करते हैं। इन स्थानों पर काम करने वाले लोग भी सेवाभावी होते हैं। इस प्रकार के लंगर अन्य धर्म स्थलों पर भी संचालित हों तो सभी लोगों को फायदा हो सकता है।
-डॉ. लोकमणि गुप्ता, कोटा
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एक ओर सरकारी गोदामों में बड़ी मात्रा में अनाज बेकार हो जाता है, तो दूसरी ओर देश में कई लोग भूख से ही मर जाते हैं। यदि सभी धर्मस्थलों पर लंगर चलेंगे, तो गरीब और अनाथ लोग भूखे नहीं रहेंगे। जब व्यक्ति का पेट भरा रहेगा, तभी तो वह कुछ सृजनात्मक कर सकेगा!
-हरिशंकर काछी, सागर, मप्र
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गुरुद्वारों की तरह ही अन्य सभी धार्मिक स्थलों पर लंगर चलाना निस्संदेह उपयोगी साबित होगा, क्योंकि लंगर के दौरान बिना किसी सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक भेदभाव के लोग एक साथ मिलकर खाना बनाते व खाते हैं। लंगर प्रेम, मैत्री और समानता का माध्यम है।
-मनीषा, जैतपुर, बीकानेर
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गुरूद्वारों की तरह सभी धर्मस्थलों पर लंगर चलने चाहिए। इससे सामाजिक सद्भावना को बढ़ावा मिलेगा और लोगों की सोच बदलेगी। लंगर चलने से गरीबों को आसानी से भोजन मिल सकेगा।
-सपना बिश्नोई, हनुमानगढ़