सरकारें जितना कहती हैं उसका चौथाई भी करके दिखाएं तो शायद ये देश एक बार फिर ‘सोने की चिडि़या’ बन सकता है। हमारे पास वो सब कुछ मौजूद है जो हमें विश्व गुरु बना सकता है। सवा सौ करोड़ लोग हैं, प्राकृतिक संसाधनों की भरमार भी है और 65 फीसदी आबादी युवा शक्ति के रूप में भी मौजूद है। हम फिर भी क्यों पिछड़े हुए हैं? क्यों वर्षों से हमारी गिनती विकासशील देश के रूप में ही हो रही है? गंभीरता से इस बात पर गौर किया जाए तो एक बड़ा कारण भ्रष्टाचार के रूप में ही उभर कर सामने आएगा।
विकास की राह में रोड़ा बनकर खड़े तमाम दूसरे कारण भी नजर आएंगे लेकिन भ्रष्टाचार रूपी कैंसर ने देश को जर्जर बना दिया है। तमाम पूर्व प्रधानमंत्रियों की तरह नरेन्द्र मोदी ने भी एक बार फिर भ्रष्टाचारियों से निर्ममता से निपटने की बात कही है। विदेशी बैंकों में जमा काला धन लाने की बात मोदी लोकसभा चुनाव से पहले भी जोर-शोर से करते थे और प्रधानमंत्री बनने के डेढ़ साल बाद भी कर रहे हैं।
यक्ष प्रश्न यही है कि क्या सिर्फ भाषणों से भ्रष्टाचार रुक पाएगा या काला धन वापस आ जाएगा? बीते कुछ सालों में आम जनता की नजरों में राजनेताओं की छवि धूमिल हुई है। अधिकांश राजनेता राजनीति को समाज सेवा न समझकर व्यवसाय मान बैठे हैं और उसी तरह आचरण भी करने लगे हैं।
2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला, कोयला घोटाला, कॉमनवेल्थ खेल घोटाला, आदर्श सोसायटी घोटाला, व्यापमं घोटाला, हथियार खरीद घोटाला, ललित गेट और चीनी खरीद घोटालों से साफ संदेश यही निकला है कि राजनेताओं के लिए पैसा ही सब कुछ हो गया है। ऐसे में जब राजनेताओं के मुंह से भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की बात सामने आती है तो आम जनता को या तो हंसी आती है या रोना। नेता जो कहते हैं वो करते नहीं और जो करते हैं वो कभी कहते नहीं।
फिर जनता विश्वास करे तो कैसे? दिल्ली सरकार ने बुधवार को बहुप्रतीक्षित जनलोकपाल बिल को मंजूरी दे दी जिसमें मुख्यमंत्री कार्यालय को भी जांच के दायरे में रखा है। यानी अरविंद केजरीवाल ने जो कहा वह करके भी दिखाया। इसके लिए उनकी सराहना की जानी चाहिए। सभी राजनीतिक दलों को एक मंच पर आकर भ्रष्टाचार से लड़ना होगा। सिर्फ दिखाने के लिए नहीं बल्कि हकीकत में।
इस एक मुद्दे पर राजनीतिक दल ईमानदारी से एक हो गए तो देश की तकदीर भी बदल सकती है और तस्वीर भी। देश में अभी हो ये रहा है कि भ्रष्टाचार एक चुनावी मुद्दा बन कर रह गया है और शब्दों की जादूगरी से नेता इसको अपने-अपने पक्ष में भुनाने के प्रयास में लगे रहते हैं। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक भ्रष्टाचार के मामले में भारत 85वें स्थान पर है। देश के लिए ये अच्छी बात नहीं।