scriptऔसत आयु पर वायु प्रदूषण का दुष्प्रभाव | Side effects of air pollution on average age | Patrika News

औसत आयु पर वायु प्रदूषण का दुष्प्रभाव

locationनई दिल्लीPublished: Aug 30, 2020 06:31:58 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

भारत में वायु प्रदूषण की स्थिति लगातार भयावह होती जा रही है। हाल ही में अमेरिका की शिकागो यूनिवर्सिटी ने अपने एक अध्ययन के बाद खुलासा किया है कि वायु प्रदूषण के ही कारण भारत में लोगों की औसत आयु कम हो रही है। वायु प्रदूषण पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है ताकि करोड़ों-अरबों लोगों को अधिक समय तक स्वस्थ जीवन जीने का हक मिल सके।

– योगेश कुमार गोयल, पर्यावरण विषयों के जानकार

वायु प्रदूषण मानव शरीर पर कई प्रकार से दुष्प्रभाव डालता है। यह साल दर साल कितना खतरनाक होता जा रहा है, इसका अनुमान इसी से सहज ही लगाया जा सकता है कि वर्ष 1990 तक जहां 60 फीसदी बीमारियों की हिस्सेदारी संक्रामक रोग, मातृ तथा नवजात रोग या पोषण की कमी से होने वाले रोगों की होती थी, वहीं अब हृदय तथा सांस की गंभीर बीमारियों के अलावा भी बहुत सी बीमारियां वायु प्रदूषण के कारण ही पनपती हैं। वायु प्रदूषण का प्रभाव मानव शरीर पर इतना घातक होता है कि सिर के बालों से लेकर पैरों के नाखून तक इसकी जद में होते हैं। भारत में वायु प्रदूषण की स्थिति लगातार भयावह होती जा रही है। हाल ही में अमेरिका की शिकागो यूनिवर्सिटी के ‘द एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट’ ने अपने एक अध्ययन के बाद खुलासा किया है कि वायु प्रदूषण के ही कारण भारत में लोगों की औसत आयु कम हो रही है। शिकागो विश्वविद्यालय के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के निदेशक और अर्थशास्त्र के प्रोफेसर माइकल ग्रीनस्टोन तथा उनकी टीम जीवन प्रत्याशा (लाइफ एक्सपेक्टेंसी) पर वायु गुणवत्ता के प्रभाव की ‘एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स’ (एक्यूएलआई) से गणना करने के पश्चात् इस निष्कर्ष पर पहुंचे।
रिपोर्ट के मुताबिक ज्यादा वायु प्रदूषण की वजह से भारतीयों की जीवन प्रत्याशा बहुत तेजी से कम हो रही है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार 5.2 वर्ष और राष्ट्रीय मानकों के अनुसार 2.3 वर्ष कम हो रही है। बांग्लादेश के बाद भारत दुनिया में दूसरा ऐसा देश है, जहां लोगों की उम्र तेजी से घट रही है। इस अध्ययन के अनुसार भारत की कुल 1.4 अरब आबादी का बड़ा हिस्सा ऐसी जगहों पर रहता है, जहां पार्टिकुलेट प्रदूषण का औसत स्तर डब्ल्यूएचओ के मानकों से ज्यादा है। 84 फीसदी व्यक्ति ऐसी जगहों पर रहते हैं, जहां प्रदूषण का स्तर भारत द्वारा तय मानकों से अधिक है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की एक चौथाई आबादी बेहद प्रदूषित वायु में जीने को मजबूर है और यदि प्रदूषण का स्तर बरकरार रहता है तो उत्तर भारत में करीब 25 करोड़ लोगों की आयु में आठ साल से ज्यादा की कमी आ सकती है।
शिकागो यूनिवर्सिटी के इस अध्ययन में बताया गया है कि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ सर्वाधिक प्रदूषित शहर है, जहां डब्ल्यूएचओ के मानकों की तुलना में 11.2 गुना अधिक प्रदूषण है और जीवन प्रत्याशा 10.3 वर्ष घट गई है। दिल्लीवासियों की जीवन प्रत्याशा 9.4 साल घट गई है। उत्तर भारत दक्षिण एशिया में सर्वाधिक प्रदूषित हिस्से के रूप में उभर रहा है, जहां पार्टिकुलेट प्रदूषण पिछले 20 वर्षों में 42 फीसदी बढ़ा है और जीवन प्रत्याशा घटकर 8 वर्ष हो गई है। हालांकि अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि भारत ‘नेशनल क्लीन एयर’ कार्यक्रम के तहत वर्ष 2024 तक पार्टिकुलेट प्रदूषण को 20-30 फीसदी तक घटाने के लिए प्रयासरत है लेकिन साथ ही उन्होंने यह कहते हुए चेताया भी है कि अगर भारत अपने उद्देश्य में सफल नहीं हुआ तो इसके गंभीर दुष्परिणाम देखने को मिल सकते हैं। अध्ययन रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरूप पूरे भारत में वायु प्रदूषण के स्तर में कमी लाई जाए तो भारतीयों की उम्र में औसतन 5.2 साल तक की वृद्धि होगी जबकि दिल्ली वालों की उम्र में 9.4 वर्ष की वृद्धि हो सकती है। बिहार और बंगाल जैसे राज्यों के लोगों की उम्र में सात साल से ज्यादा और हरियाणा के लोगों की उम्र में आठ साल तक की वृद्धि हो सकती है। यदि प्रदूषण में भारत के राष्ट्रीय मानक के अनुरूप भी कमी लाई जाए तो दिल्लीवालों की उम्र 6.5 साल बढ़ सकती है। यदि भारत अगले कुछ वर्षों में प्रदूषण का स्तर 25 फीसदी भी घटा लेता है तो राष्ट्रीय जीवन प्रत्याशा 1.6 वर्ष और दिल्लीवालों की 3.1 वर्ष बढ़ जाएगी।
कुछ समय पूर्व बोस्टन के ‘हैल्थ इफैक्ट इंस्टीच्यूट’ तथा ‘हैल्थ मैट्रिक्स एंड एवल्यूशन’ की प्रदूषण के मनुष्यों की आयु पर पड़ने वाले अच्छे-बुरे प्रभावों को लेकर किए गए अध्ययन की रिपोर्ट भी सामने आई थी। उस रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत सहित सभी एशियाई देशों में वायु में घुलनशील प्रदूषणकारी तत्वों पीएम 2.5 की मात्रा निरन्तर बढ़ रही है। अध्ययनकर्ताओं का कहना था कि जहां अमेरिका, जापान, यूरोपीय यूनियन, ब्राजील, इंडोनेशिया इत्यादि में पीएम 2.5 का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरूप है, वहीं भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश सहित सभी अफ्रीकी देशों में इसकी सीमा बहुत ज्यादा है। इस प्रदूषण के कारण दुनियाभर के प्रत्येक क्षेत्र में जीवन प्रत्याशा में आने वाली कमी अलग-अलग है। विकसित देशों में इससे करीब साढ़े चार माह, उत्तरी अमेरिकी व मध्य-पूर्व में करीब 1.3 साल तथा अफ्रीकी देशों में 1.7 साल तक जीवन प्रत्याशा कम हो रही है। इसके अलावा जहां कहीं भी घरों में चूल्हा जलाकर भोजन पकाया जाता है, वहां के लोगों की भी जीवन प्रत्याशा 1.3 साल तक घट रही है। बोस्टन के अध्ययनकर्ताओं का कहना था कि अगर वायु में केवल पीएम 2.5 की मात्रा भी नियंत्रण में रहे तो भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नाइजीरिया इत्यादि एशियाई देशों के लोगों की औसत आयु एक वर्ष से ज्यादा बढ़ जाएगी जबकि दुनियाभर में इससे औसत आयु में सात माह तक की वृद्धि हो सकती है।
पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर रही संस्था ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट’ (सीएसई) द्वारा कुछ समय पहले जारी आंकड़ों के मुताबिक वायु प्रदूषण से होने वाली घातक बीमारियों के कारण देश में जीवन प्रत्याशा औसतन 2.6 वर्ष घट गई है। सीएसई की उस रिपोर्ट के अनुसार बाहरी पीएम 2.5, ओजोन तथा घर के अंदर का वायु प्रदूषण इस स्थिति के लिए सामूहिक रूप से जिम्मेदार साबित हो रहे हैं। इस सामूहिक प्रभाव के कारण ही भारतीयों सहित दक्षिण एशियाई लोगों की जीवन प्रत्याशा 2.6 साल कम हो गई है, जो विश्वभर में जीवन प्रत्याशा कम होने के 20 माह कम होने के आंकड़े से करीब डेढ़ गुना ज्यादा है। सीएसई की रिपोर्ट का दावा है कि दुनियाभर में आज जन्म लेने वाला कोई भी बच्चा वायु प्रदूषण नहीं होने की तुलना में औसतन 20 माह पहले ही दुनिया छोड़ जाएगा जबकि भारत में जन्मा बच्चा अपेक्षा से 2.6 साल पहले ही दुनिया से चला जाएगा। सीएसई के मुताबिक बाहरी पीएम तत्वों के कारण जीवन जीने की अवधि करीब डेढ़ साल कम हो जाती है जबकि घर के अंदरूनी वायु प्रदूषण के कारण यह अवधि करीब एक साल दो महीने कम हो जाती है। सीएसई का कहना है कि घर से बाहर का और घर के भीतर अर्थात् दोनों ही जगहों पर वायु प्रदूषण जानलेवा बीमारियों को न्यौता दे रहा है, जो भारत में स्वास्थ्य संबंधी सभी खतरों में मौत का अब तीसरा सबसे बड़ा कारण हो गया है। कुछ समय पूर्व आईसीएमआर (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) की एक रिपोर्ट में भी कहा जा चुका है कि वायु प्रदूषण के कारण भारत में औसत आयु 1.7 फीसदी घट रही है और कुछ राज्यों में यह आंकड़ा ज्यादा है।
नेशनल हैल्थ प्रोफाइल 2018 की रिपोर्ट के अनुसार देश में होने वाली संक्रामक बीमारियों में सांस संबंधी बीमारियों का प्रतिशत करीब 69 फीसदी है और देशभर में 23 फीसदी से भी ज्यादा मौतें अब वायु प्रदूषण के कारण ही होती हैं। विभिन्न रिपोर्टों में यह तथ्य भी सामने आया है कि भारत में लोगों पर पीएम 2.5 का औसत प्रकोप 90 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है, जो विश्वभर में सर्वाधिक है। पिछले दो दशकों में देशभर में वायु में प्रदूषक कणों की मात्रा में करीब 69 फीसदी तक की वृद्धि हुई है और जीवन प्रत्याशा सूचकांक, जो 1998 में 2.2 वर्ष कम था, उसके मुकाबले अब शिकागो यूनिवर्सिटी के अध्ययन के अनुसार 5.2 वर्ष तक कमी आई है। शोधकर्ताओं का कहना है कि वायु की गुणवत्ता में सुधार करके इस स्थिति को और बिगड़ने से बचाया जा सकता है। एनर्जी पॉलिसी इंस्टीच्यूट एट शिकागो (ईपीआईसी) इंडिया के के मुताबिक एक्यूएलआई एक सूचकांक है, जो जीवन प्रत्याशा पर इसके प्रभाव की गणना करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों के अनुसार हवा में महीन कणों के रूप में मौजूद प्रदूषक तत्व पीएम 2.5 का स्तर 10 माइक्रोन प्रति घन मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए, वहीं पीएम 10 का स्तर 20 माइक्रोन प्रति घन मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए लेकिन भारत में 2018 में पीएम 2.5 का औसत स्तर 63 माइक्रोन प्रति घन मीटर था। हालांकि भारतीय मानकों में यह सीमा प्रति घन मीटर 40 माइक्रोग्राम निर्धारित है। बहरहाल, एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के निदेशक माइकल ग्रीनस्टोन का कहना है कि वायु प्रदूषण पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है ताकि करोड़ों-अरबों लोगों को अधिक समय तक स्वस्थ जीवन जीने का हक मिल सके।
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