वायु प्रदूषण की जब हम बात करते हैं तो सबसे पहले उसमें मौजूद ‘पार्टिकुलेट मैटरÓ (पीएम) की बात करते हैं।
वायु प्रदूषण की जब हम बात करते हैं तो सबसे पहले उसमें मौजूद ‘पार्टिकुलेट मैटरÓ (पीएम) की बात करते हैं। इसलिए इसे समझना जरूरी है। किसी प्रदूषित स्थान के पर्यावरण में हम पीएम 2.5 और पीएम 10 का स्तर देखते हैं। यानी प्रदूषक के कण, जो 2.5 माइक्रोमीटर के हों या उससे छोटे हों और 10 माइक्रोमीटर या उससे छोटे हैं। अब जरा देखें कि इन अंकों के मायने क्या हैं? पीएम 2.5 के कण इतने बारीक होते हैं कि जब हम हवा में सांस लेते हैं तो हमारी नाक 2.5 माइक्रोमीटर से छोटे कणों को फिल्टर नहीं कर पाती।
इस तरह से प्रदूषक सीधे सीधे हमारे फेफड़ों तक पहुंचते हैं। दीपावली के बाद नई दिल्ली की हवा में पीएम 2.5 का स्तर कुछ स्थानों पर तो तय सीमा से 15 गुणा तक बढ़ गया है। दिल्ली को एक धुएं की चादर ने ढक लिया है। वहीं पीएम 10 के कणों को हमारी नाक फिल्टर कर लेती है पर वे भी शरीर में तो जाते ही हैं। वैसे पीएम 10 के ऊपर वाले कण पर्यावरण में स्वत: स्थिर हो जाते हैं। यह तो बात है पार्टिकुलेट मैटर की। पर जब वायु प्रदूषण को हम देखते हैं तो अकेले पार्टिकुलेट मैटर ही नहीं बल्कि इसके लिए गैसीय प्रदूषण भी जिम्मेदार होता है।
नाइट्रोजन ऑक्साइड, सफल्र ऑक्साइड और कार्बन मोनो ऑक्साइड आदि गैसे भी हमारी नाक में फिल्टर नहीं हो पातीं। ये सीधे रक्तप्रवाह में मिल जाती हैं। दिल्ली में प्रदूषण की जो स्थिति बनी है, उसमें पार्टिकुलेट मैटर और इन गैसों ने मिलकर भयावह स्थिति बनाई है। अब सवाल यह है कि ये प्रदूषक कहां से आ रहे हैं? गैसीय प्रदूषक तो सामान्यतया मानवीय गतिविधियों से पैदा होते हैं। सबसे बड़ा कारण ईंधन के अधिक इस्तेमाल से। दिल्ली में काफी तादाद में वाहन हैं। डी•ाल गाडिय़ां ज्यादा नुकसान पहुंचाती हैं। वहीं औद्योगिक इकाइयों, रेस्तरां में जलने वाले कोयले का धुआं गैसीय प्रदूषण बढ़ाता है। साथ ही जब गाडिय़ां सड़क पर चलती है तो उनका टायर घिसता है, जिससे पार्टिकुलेट मैटर बढ़ता है।
एक कारण और भी है जो कि कुदरती है, वह है राजस्थान हरियाणा का रेगिस्तान। यहां की हवा में ‘बैकग्राउंड पार्टिकुलेट मैटरÓ होता है, जब ये हवाएं दिल्ली जाती हैं तो वहां मौजूद पार्टिकुलेट मैटर का मिश्रित प्रभाव बढ़ जाता है। यानी दिल्ली में मानवीय गतिविधियों के कारण तो प्रदूषक बढ़ ही रहे हैं पर कुदरती तौर पर इसमें इजाफा हो जाता है। दिल्ली में एक दूसरा बड़ा कारण कूड़े को बड़ी तादाद में जलाना भी है। इससे पार्टिकुलेट मैटर और गैसीय प्रदूषक, दोनों निकलते हैं। आजकल एक और प्रदूषक भी दिल्ली में जड़ गया है और वह है – ‘एसएलसीपीÓ (शॉर्ट लिवड क्लाइमेट पॉलुटेंट)। इसका कारण है दिल्ली में सूखे पत्ते, जिन्हें सड़क किनारे कर आग लगा दी जाती है। इसमें एसएलसीपी होते हैं। ये सीधे प्रदूषक ही नहीं है बल्कि ये ‘ग्रीन हाउस इफेक्टÓ भी पैदा करते हैं।
एक दिलचस्प बात यह भी है कि जब ठंड शुरू होती है तो दिल्ली में कभी-कभी प्रदूषण बढ़ता है। इसका कारण है – तापमान व्युत्क्रम (टैम्परेचर इन्वर्जन)। यानी जमीन पर हवा का तापमान ज्यादा होता है और ऊपर जाते-जाते तापमान कम होता जाता है। जब वहां हवा ऊपर उड़ती है तो उसमें मौजूद प्रदूषक भी उड़ते हैं और एक चादर बना लेते हैं। इस इन्वर्जन के कारण भी ऐसा लगता है कि दिल्ली में प्रदूषण ज्यादा हो रहा है। जैसा कि अभी वहां हो रहा है। पर यह मौसम के कारण हुआ है। यानी दिल्ली में मानवीय कारकों के अलावा भी कारक हैं, जिन पर नियंत्रण नहीं किया जा सकता।
पर मानवीय प्रदूषण कम करके इनके असर को कम किया जा सकता है। इसलिए दिल्लीवासियों को यह सब परिस्थितियां देखते हुए खास सावधानी बरतने की दरकार है। दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में इतनी तादाद में ऊंची इमारतें हैं कि हवां वहां रुक जाती है। टीयर-2 श्रेणी के शहर जैसे- जयपुर, भोपाल, इंदौर, अहमदाबाद आदि के नगर नियोजकों को दिल्ली से वक्त रहते सबक लेना चाहिए। ये शहर भी वाहनों की भरमार के चलते वायु प्रदूषण के मामले में दिल्ली के पीछे चलते नजर आते हैं।
दिल्ली समेत बड़े शहरों में एक वृहद वैज्ञानिक अध्ययन होना चाहिए कि ज्यादा प्रदूषण किससे हो रहा है? वाहन, इंडस्ट्री, कूड़ा जलाने से कितना हो रहा है और कितना प्रदूषण कुदरती है? जिससे अधिकतम प्रदूषण हो रहा है, उस पर फौरन रोकथाम लगाई जाए। बहरहाल, दिल्ली तो आपात स्थिति से गुजर रही है। लोगों की तबीयत खराब होने लगी है। फेफड़ों संबंधी बीमारियां बढ़ी हैं। कंस्ट्रक्शन, डी•ाल जनरेटर के इस्तेमाल और कोयला प्लांट को बंद करने जैसे कदम उठाए गए हैं।
ऑड-ईवन फॉर्मूला फिर अपनाया जा सकता है। ये सब फौरी तौर पर सही उपाय हैं पर इस जहरीले वातावरण से बचने के लिए कड़ी चौकसी और दीर्घावधि योजना की जरूरत है। वरना इन छोटे-छोटे कदमों से ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। कूड़ा जलाने, डी•ाल के ज्यादा इस्तेमाल जैसे प्रदूषण कारकों को स्थाई तौर पर कम करना होगा। धुएं वाली इंडस्ट्री दिल्ली से बाहर हों या वे इतनी दक्ष हों कि बहुत कम धुआं निकले। खासतौर पर आबादी नियंत्रित कर प्लानिंग करनी होगी।
सूर्य प्रकाश चांडक पर्यावरण विशेषज्ञ