ये दर्दनाक कुकृत्य उन अनाथ और छोटी बच्चियों के साथ हुआ, जिन्हें अपने साथ हो रहे दुष्कृत्य की समझ भी नहीं थी। उनके पास तो ऐसा कोई अपना समझाने वाला भी नहीं था जो उन्हें गलत-सही की परिभाषा समझा सके। सबसे बड़ी बात इस घटनाक्रम में यह है कि आरोपी ब्रजेश ठाकुर के साथ ऐसी महिलाएं भी शामिल थीं जो खुद माँ होंगी। उन्हें तो मालूम था कि उन मासूमों के साथ क्या हो रहा है? लेकिन उन सभी के सहयोग से ये दुष्कृत्य चलता रहा।सोशल मीडिया में आरोपी ब्रजेश ठाकुर की हँसते हुए तस्वीर वायरल हो रही है जिससे यही साबित होता है कि आरोपी के माथे पर इस दुष्कृत्य को लेकर शिकन मात्र नहीं है। क्योंकि उसे पता है कि उसके साथ इस घटनाक्रम में शामिल सभ्य, सुसंस्कृत, सामाजिक आधार और राजनीतिक पहुंच वाले लोग उसे बचा लेगें और फिर से कुछ दिनों के बाद यह खेल पुनः प्रारंभ हो जाएगा।
तो फिर डर किसका? और शर्म कैसी?…
आरोपी ब्रजेश ठाकुर की पत्नी का बयान बेहद हैरान करने वाला है, जो बार-बार अपने पति को देवता साबित करने में लगी हुई है। क्या ये खुद एक महिला,एक माँ होकर भी उन मासूम बच्चियों का दर्द समझ पाने में अक्षम हैं? या इस समाज की उस परम्परा का निर्वहन करने में गर्वित महसूस करना चाहती है जिसमें पति देवता होता है? जब एक स्त्री ही अपने पति का साथ इस तरह के कुकृत्य में दे रही है, उस बालिका गृह की संरक्षिका और उस महिला डॉक्टर से, जो अपने सामने हो रहे इस दुष्कर्म की साक्षी और सहभागी अंत तक बनी रहीं, क्या उम्मीद रखी जाए? ऐसे कई सवाल मन में एक डर और असुरक्षा की भावना पैदा कर रहे हैं।क्या वे मासूम बच्चियां सिर्फ मांस का नरम टुकड़ा मात्र थीं, क्या एक पल भी किसी बेटी के पिता, एक पति, एक बेटे, एक भाई को क्षण भर के लिए ये भान नहीं हुआ कि वह जिन मासूम बच्चियों के साथ इतनी निर्ममता से दुष्कृत्य कर रहा है, वह समाज से ठुकरा दिए जाने पर उनके यहां अपने उज्ज्वल भविष्य की उम्मीद लिए आई है, उन्हें भी इंसान समझा जाए। इतनी ज्यादा क्रूरता से उन सभी को क्या हासिल हुआ? ये तो वे ही बेहतर समझ सकते हैं लेकिन उन मासूमों पर क्या बीती होगी, इतने कष्ट से गुजरकर उनकी मानसिक स्थिति क्या होगी, शायद ही इस ओर किसी का ध्यान गया होगा। वे किस डर और मानसिक, शारीरिक यंत्रणा से गुजरी होंगी, इसका अंजादा भी नहीं लगाया जा सकता है। ये भी एक कटु सत्य है या यूँ कहे कि इस समाज की विडम्बना है वो जहाँ भी जाएगी उनके लिए दूसरा ब्रजेश ठाकुर तैयार बैठा होगा, क्योंकि वे सभी इस गर्त से निकलने के बाद भी दूसरे सभ्य लोगों की नजरों में अपवित्र और एक बेहतर विकल्प होंगी जिन्हें वो अपने तरीके से इस्तेमाल कर पाएंगे।
इन सब घटनाओं से सिर्फ कुछ दिनों तक बयानबाजी करने, कैंडल मार्च करने, और सरकार पर आरोप-प्रत्यारोप से निजात नहीं मिलेगी। ये समाज के रिवाजों, सड़ी-गली मानसिकता के ही दुष्प्रभाव हैं जो विकृत मानसिकता वाले लोगों को पनाह देता है, उनकी हिम्मत बढ़ाता है, उनके खिलाफ कोई ठोस सामाजिक कदम नहीं उठाए जाते हैं। ब्रजेश ठाकुर जैसे लोग जानते हैं कि वो कुछ भी करें आखिरकार समाज उन्हें अपना ही लेगा। अब वक्त आ गया है कि सारे समाज को एकजुट होकर इस तरह की घटनाओं के दोषियों को कानूनन सजा तो दिलवानी ही होगी और जीवनभर के लिए दोषियों को समाज से बहिष्कृत भी करना होगा। क्योंकि ऐसे विकृत मानसिकता वाले लोग इस समाज के सहयोग से ही इस तरह की घटनाओं को अंजाम देते हैं इसलिए समाज को इनके खिलाफ सामाजिक बंदिशें लगानी होंगी।
– विरासनी बघेल
(ब्लॉग से साभार)