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आपको मुसीबत में फंसा सकती है सोशल मीडिया की चैट, जानिए कैसे

locationनई दिल्लीPublished: Oct 14, 2020 02:57:51 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

व्हाट्सऐप या टेलीग्राम ऐप में जो मध्य रात्रि में स्वचालित बैकअप प्रक्रिया होती है, उससे हमारा संपूर्ण डाटा या तो मोबाइल की मेमोरी चिप अथवा व्हाट्सऐप के सरवर पर सुरक्षित हो जाता है।

3 youth arrested for Uploading inappropriate videos on social media: Video

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हाल ही सीबीआइ एवं नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने कई फिल्मी सितारों को व्हाट्सऐप समेत सोशल मीडिया के दूसरे माध्यमों पर हुई वार्तालाप (चैट) के आधार पर जांच में लपेटते हुए न सिर्फ पूछताछ के लिए बुलाया, अपितु उन्हें गिरफ्त में भी ले लिया। इससे सवाल उठा कि क्या हमारे मोबाइल पर मित्रों एवं परिजनों से की गई बातचीत (चैट) के मामले में क्या निजता का अधिकार लागू नहीं होता? इस भ्रांति को तत्काल छोड़ दें कि मोबाइल चैट की निजता हम तक ही सीमित है।
व्हाट्सऐप या टेलीग्राम ऐप में जो मध्य रात्रि में स्वचालित बैकअप प्रक्रिया होती है, उससे हमारा संपूर्ण डाटा या तो मोबाइल की मेमोरी चिप अथवा व्हाट्सऐप के सरवर पर सुरक्षित हो जाता है। मेमोरी चिप अथवा सर्वर जिसे ‘क्लाउड’ भी कहा जाता है, पर यह डाटा स्टोर होने के पश्चात आइटी एक्ट 2003 की धारा 3 एवं 4 के अंतर्गत ‘इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड’ की परिधि में मान लिया जाता है, जो कि किसी भी अभिलेख (दस्तावेजी साक्ष्य) के समकक्ष ही विधि में मान्य होता है। डेटा जो बैकअप के समय तक डिलीट नहीं होता है, वह मोबाइल या क्लाउड में सदैव के लिए इंगित हो जाता है, जिसके पश्चात वह किसी कागजी दस्तावेजों की तरह नष्ट नहीं किया जा सकता। डिलीट दबाने पर हमें प्रतीत होता है कि वार्तालाप का डेटा विलुप्त हो गया, परंतु वह सरवर अथवा क्लाउड अथवा मोबाइल चिप में बना रहता है।
इस जानकारी को जांच एजेंसियां अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए मोबाइल उपयोगकर्ता से अथवा व्हाट्सऐप कंपनी को लिखकर संपूर्ण रूप से प्राप्त कर सकती हैं। उसका ‘मोबाइल क्लोन’ बनाया जा सकता है, जोकि भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के अंतर्गत धारा 65 बी के अनुसार विधि मान्य होता है। धारा 65 ए एवं बी के अनुसार अगर ऐसे मोबाइल क्लोन की वैधानिकता के संबंध में सर्टिफिकेट मोबाइल क्लोन करने वाली एजेंसी या विशेषज्ञ द्वारा दिया जाता है, तो वह विधि में स्वीकृत साक्ष्य की श्रेणी में आ जाता है एवं जांच एजेंसी उसको अभियुक्त के विरुद्ध अथवा किसी भी गवाह के विरुद्ध उपयोग कर सकती हैं। मोबाइल क्लोन को विश्व भर में एक प्राथमिक साक्ष्य के रूप में माना गया है।
अर्थात अगर मोबाइल क्लोन जांच एजेंसी निर्मित कर लेती है, तो उसमें जो भी सूचना अथवा मोबाइल चैट इंगित रहती है, वह स्वमेव ही न्यायालय में स्वीकार हो जाती हैं। जिस प्रकार सीबीआइ अथवा इनकम टैक्स विभाग आपके घर में घुसकर कभी भी कोई भी दस्तावेज अपने कब्जे में ले सकते हैं, उसी प्रकार आपके मोबाइल से सारी जानकारियां मोबाइल क्लोन के माध्यम से निकाली जा सकती हैं एवं किसी भी अपराध के अन्वेषण में आपके विरुद्ध इस्तेमाल की जा सकती हंै।

बहरहाल, हमारे लिए इन सभी घटनाओं से एक सबक है कि हम आंख बंद कर व्हाट्सऐप, टेलीग्राम जैसे ऐप पर यह भरोसा करना छोड़ दें। यह न मानें कि हम जो भी उसमें वार्तालाप कर रहे हैं, वह ‘एंड-टू-एंड एन्क्रिप्टेड’ होने के कारण कोई देख नहीं पाएगा अथवा उसका हमारे विरुद्ध इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा।
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