scriptसमाज : डिग लाल चना, मोती माल चना.. | Society: Dig Lal Chana, Moti Maal Chana | Patrika News

समाज : डिग लाल चना, मोती माल चना..

locationनई दिल्लीPublished: Apr 30, 2021 10:16:24 am

कोविड वाले दौर में मुझे वे खेल खास तौर पर याद आ रहे हैं, जिससे श्वसन तंत्र और फेफड़े मजबूत होते हैं।

समाज : डिग लाल चना, मोती माल चना..

समाज : डिग लाल चना, मोती माल चना..

अनिल पालीवाल

पहली दृष्टि में उपरोक्त शीर्षक बच्चों की स्कूल की कविता की पंक्ति लगती है। यह सच भी है कि यह बच्चों की तुकबंदी ही है। उसके भी आगे इससे जुड़ा किस्सा आज अधिक प्रासंगिक है। चलिए आपको तफसील से बताते हैं। गर्मियां आते ही हमें बचपन की गर्मियों की छुट्टियों की स्वत: ही याद आ जाती है। हर साल दो महीने की ये छुट्टियां मेरे लिए भी एक लंबे इंतजार के बाद आने वाला एक सुखद समय होता था। मेरा गांव मारवाड़ में फलौदी के निकट है। यहां हम उम्र बच्चों के साथ मन पसंद विचरण, खेल-कूद का अवसर मिल जाता था। सबसे ज्यादा उत्साह गांव के देशी खेल खेलने का रहता था। देशी खेलों की पूरी सूची थी। जैसे कबड्डी, गुलाम-लकड़ी लुकनाडाई (छुपन-छुपाई), माल दड़ी आदि-आदि। आज के इस कोविड वाले दौर में मुझे वे खेल खास तौर पर याद आ रहे हैं, जिससे श्वसन तंत्र और फेफड़े मजबूत होते हैं।

बचपन के खेल और आदतों की किसी भी बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। कई खेल फेफड़ों का अभ्यास बढ़ाते हैं, श्वसन पर नियंत्रण रखना सिखाते हैं। ये खेल श्वसन तंत्र व फेफड़ों को मजबूत रखते हैं। ऐसे देशी खेल, गांवों के खेल, पूरे भारत वर्ष में प्रचलित रहे हैं। चाहे वह मरुस्थलीय राजस्थान हो या नदी-पोखर से परिपूर्ण बंगाल। हां, भौगोलिक परिवेश व खेल की जगह उपलब्धता के आधार पर इनका रूप बदल गया। कहीं यह कबड्डी है, कहीं हू-तू-तू, कहीं बूढ़ी बसंती’ नाम का खेल है। पानी में सांस रोक कर खेलने के खेल बंगाल, नगालैण्ड आदि में ज्यादा प्रचलित हंै। यों कहें कि बच्चे स्वयं अपने खेल बना लेते हैं। साथ ही पुराना दौर ऐसा भी था, जहां गांव का कोई-कोई नौजवान बच्चों को खेलने के लिए प्रोत्साहित करता था और मार्गदर्शन भी देता था। इसी शृंखला में मुझे ‘डिग माल चना, मोती माल चना’ की तुकबंदी याद आ जाती है। यह भी सांस रोककर दौडऩे का एक खेल था। एक रेतीले मैदान में जहां कंकड़-कांटे कम हों, रेत पर ही निशान लगा कर गोलाकार मैदान बना लिया जाता था। फिर बच्चों में प्रतियोगिता रहती थी कि एक सांस में सांस रोककर कौन ज्यादा चक्कर लगा लेता है। दौडऩे वाला ‘जोर-जोर से डिग माल चना, मोती माल चना’ की तुकबंदी बोलता, ताकि सभी का ध्यान रहे कि कहीं उसने बीच में सांस तो नहीं ले ली। इस तरह का खेल निस्संदेह फेफड़ों और श्वसन तंत्र को मजबूत करता है। आज जब कोरोना का दौर चरम पर है, श्वसन तंत्र पर वायरस का हमला हो रहा है। ऐसे में मुझे ऐसे खेल याद आ गए। अब गांव-शहरों में वापस वही दौर लाने की जरूरत है, जिससे बच्चे खेल-कूद कर मजबूत बनें, शहरी क्षेत्र में पार्क-मैदान बनाने हैं। गांवों में खेल-कूद की परंपरा जारी रखनी है। मोबाइल स्क्रीन से दूर होकर बच्चों को धूप में खेलकर विटामिन-डी लेना चाहिए। विटामिन-डी कोविड में उपचार सूची का एक हिस्सा है। इस तरह के खेल-कूद में हिस्सा लेने से श्वसन तंत्र मजबूत होता है।

(लेखक भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी हैं)

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