scriptविद्युत चुनौतियों का हल है सौर ऊर्जा | Solar energy is the solution of electrical challenges | Patrika News

विद्युत चुनौतियों का हल है सौर ऊर्जा

locationजयपुरPublished: Feb 10, 2019 04:33:24 pm

Submitted by:

dilip chaturvedi

विद्युत वितरण कंपनियों से किसानों की दो वाजिब और प्रमुख अपेक्षाएं हैं द्ग कृषि कार्य हेतु दिन में ही विद्युत आपूर्ति और लंबित कृषि कनेक्शन आवेदनों का शीघ्रतम निस्तारण। सौर ऊर्जा इन दोनों ही अपेक्षाओं को पूरा करने की दिशा में एक कारगर समाधान सिद्ध हो सकती है।

Electrical complaint

Electrical complaint

अर्जुन सिंह, पूर्व प्रबंध निदेशक, जयपुर डिस्कॉम

देश के अधिकांश राज्य, कृषि क्षेत्र के वर्तमान एवं भावी विद्युत उपभोक्ताओं को अपेक्षित सेवाएं नहीं दे पा रहे हैं। यही कारण है कि उनकी असंतुष्टि का स्तर बढ़ता जा रहा है। यह तस्वीर समाज और राजनीति को भी प्रभावित करती है। राज्य की विद्युत वितरण कंपनियों से किसानों की दो वाजिब और प्रमुख अपेक्षाएं हैं द्ग कृषि कार्य हेतु दिन में ही विद्युत आपूर्ति और लाखों की संख्या में (डार्क जोन को छोड़कर) लंबित कृषि कनेक्शन आवेदनों का शीघ्रतम निस्तारण। लेकिन वर्तमान परिदृश्य में राज्य एवं विद्युत वितरण कंपनियों के लिए इन्हें पूरा करना न केवल चुनौती भरा, बल्कि आर्थिक एवं तकनीकी दृष्टि से भी लगभग नामुमकिन है।

राजस्थान के संदर्भ में यदि वर्तमान कृषि उपभोक्ताओं को केवल दिन में ही विद्युत आपूर्ति की जाए तो अकेले कृषि क्षेत्र की अधिकतम मांग 14000-15000 मेगावाट तक हो सकती है, जबकि विभिन्न पारियों में दिन-रात विद्युत आपूर्ति करने से कृषि क्षेत्र की अधिकतम मांग लगभग 6000 मेगावाट तक अनुमानित है। अत: कृषि क्षेत्र को केवल दिन में विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु उत्पादन, प्रसारण एवं उपप्रसारण तंत्र की क्षमता लगभग 8000 मेगावाट बढ़ानी होगी जो केवल छह घंटे प्रतिदिन उपयोगी होगी (क्योंकि भूगर्भ जल एवं कृषि भूमि की सीमितता के दृष्टिगत छह घंटे प्रतिदिन आपूर्ति पर्याप्त है)। अत: समय के साथ आर्थिक व तकनीकी दृष्टि से केवल दिन में विद्युत आपूर्ति पूरी तरह असाध्य है।

लाखों की संख्या में लंबित कृषि आवेदनों के अन्य श्रेणी के आवेदनों के समान अविलम्ब निस्तारण में किसान, राज्य व विद्युत वितरण कंपनियों की आर्थिक सीमा बाधक है। हर नए कृषि कनेक्शन को जारी करने में राज्य सरकार व विद्युत कंपनियों को करीब 1.5 लाख रुपए अनुदान के रूप में व्यय करना पड़ता है। पर्याप्त वित्तीय संसाधनों के अभाव के कारण कृषि आवेदन 5-6 वर्षों तक लंबित रहते हैं। संसाधनों के मद्देनजर ही वार्षिक लक्ष्य तय कर आवेदनों का निस्तारण किया जाता है।

दूसरी ओर, चौबीसों घंटे सातों दिन ‘बिजली सभी के लिएÓ के लक्ष्य की ओर अग्रसर देश में कृषि क्षेत्र के उपभोक्ताओं से कब तक भिन्न व्यवहार संभव होगा। मानवीय दृष्टिकोण से भी यह न्यायसंगत नहीं है। रात के समय की विषम परिस्थितियों के चलते भी हर वर्ष कुछ किसान मौत का शिकार हो जाते हैं। जब अन्य श्रेणियों के आवेदकों को अविलंब कनेक्शन जारी किया जा सकता है तो कृषि आवेदकों से भेदभाव क्यों? आने वाले समय में इस दिशा में कार्य करना होगा। किसानों की उपरोक्त दोनों अपेक्षाओं को पूर्ण करने के लिए यहां अलग-अलग आर्थिक व तकनीकी पहलुओं से संबंधित प्रस्तावों पर विचार किया जा सकता है। पहले वर्तमान कृषि उपभोक्ताओं को दिन में कृषि कार्य हेतु विद्युत आपूर्ति पर विचार किया जाए। कृषि उपभोक्ताओं को विद्युत आपूर्ति हेतु ग्रामीण 33/11 केवी विद्युत उपकेन्द्रों से 11केवी के डेडीकेटेड फीडर्स हैं। इन ग्रामीण क्षेत्रों के हर विद्युत उपकेन्द्र की क्षमता 3-6 मेगावाट है। इन उपकेन्द्रों के पास सरकारी या अन्य भूमि पर 1 से 5 मेगावाट तक के सोलर ऊर्जा प्लांट स्थापित किए जा सकते हैं। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए क्रमवार वार्षिक लक्ष्य निर्धारित कर करीब तीन साल में सभी 11 केवी एग्रीकल्चर फीडर को ग्रिड कनेक्टेड सोलर प्लांट से दिन में विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकती है।

वर्तमान में डिस्कॉम की ग्रामीण 11 केवी बस पर ऊर्जा की लागत करीब 5 रुपए प्रति यूनिट है, जबकि कम्पीटिटिव बिडिंग के जरिए दीर्घकाल में सोलर पावर 11 केवी बस पर 3-3-3.25 रुपए प्रति यूनिट उपलब्ध होने की संभावना है। इस प्रकार हर 10 मेगावाट क्षमता वाले सोलर प्लांट के उपयोग से प्रति वर्ष ३ करोड़ रुपए की दर से ‘पावर परचेज कॉस्ट’ कम हो जाएगी। दो-तीन वर्षों में राज्य के ग्रामीण क्षेत्र के सभी 33/11 केवी उपकेन्द्रों की 11 केवी बस पर सोलर पावर कनेक्ट किया जा सकता है। राजस्थान की बात करें तो पूरे प्रदेश में यदि एक से पांच मेगावाट तक के अनुमानत: 7-8 हजार सोलर प्लांट्स स्थापित किए जाएं तो डिस्कॉम की वार्षिक पावर परचेज कॉस्ट वर्तमान दर पर करीब 4000 करोड़ रुपए तक कम हो सकती है। साथ ही प्रसारण एवं उप प्रसारण तंत्र में विद्युत छीजत भी कम होगी। नतीजा यह होगा कि 5000-6000 मेगावाट उत्पादन व प्रसारण क्षमता अधिशेष हो जाएगी।

दूसरी अपेक्षा लंबित कृषि आवेदनों के शीघ्र निस्तारण की है। इसका समाधान सोलर पम्प हो सकते हैं। यह ऑफग्रिड, स्टैंड अलोन पद्धति पर आधारित होगा। इससे दिन में विद्युत उपलब्ध होगी और पम्प 6-7 घंटे संचालित किया जा सकता है। वर्ष भर सौर ऊर्जा की उपलब्धता एवं तीव्रता इस दिशा में राजस्थान जैसे राज्यों के लिए वरदान है। विद्युत निगमों को कोई क्षमता वद्र्धन या खेत में लाइन डालने की जरूरत भी नहीं रहेगी और इससे खेत में काम करते वक्त होने वाली दुर्घटनाओं की संभावना भी नहीं रहेगी। आवेदक की लागत का दायित्व सामान्य कनेक्शन के समान, यथावत रखा जावे। सोलर पम्प पर सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं के तहत अनुदान उपलब्ध है। ऐसे सोलर पम्प वृहद पैमाने पर कम्पीटिटिव बिडिंग के द्वारा लगाए जा सकते हैं और लागत समान मासिक किस्तों में वसूली जा सकती है। किस्त का भुगतान उपभोक्ता द्वारा वर्तमान दर से देय राशि, कनेक्शन जारी करने हेतु राज्य सरकार व विद्युत निगम द्वारा दिए जाने वाले अनुदान और राज्य सरकार द्वारा देय सब्सिडी की मद से किया जा सकता है। इस समाधान से जारी कनेक्शनों के लिए पावर परचेज, प्रसारण, उपप्रसारण, वितरण तथा रख-रखाव की लागत शून्य होगी।

इन प्रस्तावों पर क्रियान्वयन से राज्य सरकार, विद्युत निगमों और किसानों पर अतिरिक्त वित्तीय भार नहीं आएगा, बल्कि राज्य में हजारों-करोड़ों रुपए के निवेश के साथ विभिन्न क्षेत्रों में लगभग 50-60 हजार स्थानीय रोजगारों का सृजन भी होगा।

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