जहां तक भारतीय दल के इन खेलों में प्रदर्शन की बात है, तो युवाओं विशेषकर एथलेटिक्स, निशानेबाजी और मुक्केबाजी में दिल जीत लिया। कुश्ती में मशहूर फोगाट परिवार की विनेश ने महिला वर्ग में पहली बार स्वर्ण हासिल किया। भाला फेंक में २० साल के नीरज चौपड़ा ने और निशानेबाजी में १५ वर्षीय सौरभ चौधरी ने स्वर्ण और इसी उम्र के शार्दुल विहान ने रजत पर निशाना लगा सुनहरे भविष्य के संकेत दिए। राही सरनोबात ने महिला वर्ग की निशानेबाजी में पहली बार स्वर्ण दिलाया। लेकिन १३२ करोड़ की आबादी वाले हमारे देश का प्रदर्शन और बेहतर हो सकता था यदि उन्हें सही प्रशिक्षण, आधुनिक साजो-सामान और सुविधाएं मिल पातीं। हैप्टेथलान में स्वर्ण जीतने वाली स्वपना बर्मन किन हालात में यहां तक पहुंंची। उसके पास पहनने के लिए उचित जूते तक नहीं थे। हमारे यहां प्रतिभाओं की कमी नहीं है लेकिन खेल संघों में व्याप्त राजनीति और रसूखदारों के दखल के कारण योग्य खिलाड़ी आगे ही नहीं आ पाते।
अब एक खिलाड़ी राज्यवद्र्धन सिंह के खेल मंत्री बनने से कुछ उम्मीदें बनी हैं। भारत में ग्रामीण स्तर तक खेल प्रतिभाओं को तराशने और उन्हें आगे लाने की सबसे बड़ी जरूरत है। चीन इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। हमें उससे सीख लेनी चाहिए। पहले आठ एशियाई खेलों में जापान पदक तालिका में नम्बर एक था लेकिन १९८२ में नई दिल्ली एशियाड के बाद से चीन का वर्चस्व है। इस बार भी १३२ स्वर्ण, ९२ रजत और ६५ कांस्य के साथ कुल २८९ पदक हासिल कर चीन टॉप पर रहा। जापान ७४ स्वर्ण और कुल २०४ पदकों के साथ दूसरे स्थान पर है। हमारे लिए चिंता की बात यह है कि जनसंख्या और क्षेत्रफल में कुछ राज्यों से भी छोटे दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया, उज्बेकिस्तान, ईरान और ताइपे जैसे देश भी पदक तालिका में हमसे आगे रहे। खेल मंत्रालय को चाहिए कि आगामी ओलम्पिक, राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों के लिए अभी से तैयारी शुरू कर दे। खिलाडिय़ों में ही नहीं, खेल प्रबंधन में भी खेल भावना होगी तभी भविष्य में हम चीन, अमरीका, रूस और जापान की बराबरी का सपना देख सकते हैं।