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Patrika Opinion: निरंकुश शासकों के लिए खतरे की घंटी

इसमें कोई शक नहीं कि लिट्टे जैसे संगठनों का सफाया लोकतांत्रिक मर्यादाओं का ध्यान रखते हुए नहीं किया जा सकता। पर यह भी उतना ही सच है कि चुनी हुई सरकारों को जब मूल्यों-मर्यादाओं की अनदेखी करने की आदत पड़ जाती है तो उनका व्यवहार ‘निरंकुश राजा’ जैसा हो जाता है।

May 13, 2022 / 08:34 pm

Patrika Desk

प्रतीकात्मक चित्र

अपनी अपार लोकप्रियता के कारण सत्ता पक्ष का लोकतंत्र को हल्के में लेना और उसके मूल्यों के प्रति हिकारत का भाव रखना किसी देश को कहां पहुंचा सकता है, इसका ताजा उदाहरण है श्रीलंका। मौजूदा हालात में यह जानना-समझना सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है कि श्रीलंका आर्थिक बर्बादी की वर्तमान हालत तक कैसे पहुंच गया। दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकी संगठनों में शामिल लिट्टे का सफाया करने के कारण वहां की बहुसंख्यक आबादी के बीच महिंदा राजपक्षे की लोकप्रियता सातवें आसमान पर पहुंच गई थी। उनकी सरकार ने लिट्टे आतंकियों को बड़ी बेरहमी से मारा था। ऐसा करते समय हर तरह के कानूनों और मर्यादाओं को नजरअंदाज किया गया था।
इसमें कोई शक नहीं कि लिट्टे जैसे संगठनों का सफाया लोकतांत्रिक मर्यादाओं का ध्यान रखते हुए नहीं किया जा सकता। पर यह भी उतना ही सच है कि चुनी हुई सरकारों को जब मूल्यों-मर्यादाओं की अनदेखी करने की आदत पड़ जाती है तो उनका व्यवहार ‘निरंकुश राजा’ जैसा हो जाता है। फिर उनका सफाया करने के लिए शांतिप्रिय जनता को ही सड़कों पर उतरना पड़ता है। राजपक्षे के मनमाने फैसलों, सत्ता में परिवार की अवांछित भागीदारी व भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा ने श्रीलंका को अस्थिर कर भारत की चिंता भी बढ़ा दी है।
पिछले कुछ समय से दुनिया के कई देशों में लोकतंत्र के प्रति हिकारत का भाव बढ़ा है। क्योंकि, सुविधासंपन्न तबका तेजी से चीजों को बदलते हुए देखना चाहता है और नियमों और सिद्धांतों को इसमें अड़चन के रूप में देखने लगता है। विकास के वर्तमान प्रतिमानों की समीक्षा करें तो कहा जा सकता है कि इसका रास्ता भ्रष्टाचार से होकर ही गुजरता है। हम पाते हैं कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगते ही विकास की गति भी ठहरने लगती है। तेज विकास का आग्रह अक्सर इस बात की चिंता नहीं करने देता कि इसका लाभ किसे मिलेगा और कौन ठगा जाएगा। भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी राजपक्षे सरकार को चीन के हर प्रस्ताव में देश का तेज विकास ही दिखा था। लेकिन अंतत: हुआ क्या?
किसी देश की अर्थव्यवस्था सत्ताधारी दल की लाभ-हानि से नहीं, कठोर सांख्यिकीय आंकड़ों से निर्देशित होती है। इसका सम्मान करते हुए ही कोई देश आगे बढ़ सकता है। इसीलिए लोकतंत्र की मजबूती के लिए स्थापित संस्थाओं का भी काफी महत्त्व है। भले ही उनका फायदा सीधे-सीधे नजर न आता हो। श्रीलंका के हालात उन सभी देशों के लिए खतरे की घंटी हैं, जो तेज विकास के आग्रह से संचालित हैं और पिछले कुछ समय से अपने यहां लोकतंत्र और इसकी संस्थाओं में ह्रास महसूस कर रहे हैं।

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