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ओपिनियन

सामयिक: संरक्षणवाद की तरफ बढ़ते कदम!

– बजट 2021-22 में संरक्षणवाद की नीति की ओर बढ़ते कदम आत्मनिर्भरता के नाम पर 1991 से पूर्व के दिनों की पुनरावृत्ति हो रही है।- भारत में सिम्पल एवरेज अप्लाइड आयात प्रशुल्क 2014-15 में 13 प्रतिशत था, जो 2020-21 में बढ़कर 14.3 प्रतिशत हो चुका है।

Feb 06, 2021 / 07:24 am

विकास गुप्ता

सामयिक: संरक्षणवाद की तरफ बढ़ते कदम!

सामयिक: संरक्षणवाद की तरफ बढ़ते कदम!

प्रो. के.डी. स्वामी

बजट 2021-22 में संरक्षणवाद की नीति की ओर बढ़ते कदम आत्मनिर्भरता के नाम पर 1991 से पूर्व के दिनों की पुनरावृत्ति के संकेत दे रहे हैं। बजट में कई मदों जैसे-कपास, कच्चा सिल्क व सिल्क धागा आदि पर आयात शुल्क बढ़ाया गया है। ऑटोमोबाइल सेक्टर में भी कुछ कम्पोनेन्ट्स पर कस्टम ड्यूटी बढ़ाई गई है। इसके अतिरिक्त कच्चे और तैयार चमड़े पर आयात शुल्क 10 प्रतिशत बढ़ाने से ब्रांडेड जूते और बैग की कीमतें 5 प्रतिशत तक बढ़ सकती है। जैसे फेब्रिक्स व जेम्स व ज्वेलरी, प्लास्टिक, कैमिकल्स आदि पर भी ड्यूटी बढ़ा दी गई है। इलेक्ट्रिक कम्पोनेंट और सोलर इक्विपमेंट पर भी ड्यूटी बढ़ा दी गई है। इससे पूर्व में भी सरकार कई आइटमों पर आयात शुल्क बढ़ा चुकी है। अत: संरक्षणवाद की नीति स्पष्ट झलक रही है। हाल ही में अमरीका, यूरोपीय संघ व चीन जैसे हमारे व्यापारी सहयोगियों ने डब्ल्यूटीओ के रिव्यू में भारत की संरक्षणवाद की नीति की आलोचना की है। डब्ल्यूटीओ ने इस ओर ध्यान दिलाया है कि भारत में सिम्पल एवरेज अप्लाइड आयात प्रशुल्क 2014-15 में 13 प्रतिशत था, जो 2020-21 में बढ़कर 14.3 प्रतिशत हो चुका है।

देखा जाए, तो विश्व में किसी भी राष्ट्र ने आयात प्रतिबंधों की नीति अपनाकर तीव्र विकास नहीं किया है। स्वतंत्र व्यापार की नीति अपनाने का एक प्रमुख लाभ यह है कि इससे हमारे राष्ट्र की फर्मों को विश्वस्तर पर प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है। प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों जैसे एडम स्मिथ, रिकार्डो आदि ने स्वतंत्र व्यापार व विशिष्टीकरण के लाभों को स्पष्ट रूप से प्रतिपादित किया था। स्मिथ के अनुसार ‘एक परिवार के समझदार स्वामी का यह सिद्धान्त होता है कि वह उस वस्तु को घर पर तैयार करने का कभी भी प्रयास नहीं करेगा जो कि वह क्रय करने में लगने वाली लागत से ऊंची लागत पर तैयार कर सके। दर्जी अपने जूते स्वयं बनाने का प्रयास नहीं करता, बल्कि मोची से खरीदता है। मोची स्वयं अपने कपड़े नहीं सिलता, बल्कि दर्जी से सिलवाता है।

आत्मनिर्भरता के नाम पर प्रशुल्क की दीवारें खड़ी करने वाले व्यापार के उपर्युक्त सिद्धान्त व व्यापार के लाभों को नजरअंदाज करके अकुशल घरेलू उद्योग पनपाने का प्रयास करते हैं। इसी तरह स्वतंत्र व्यापार क्षेत्र व डब्ल्यूटीओ भी आपसी व्यापार प्रतिबंधों को समाप्त कर व्यापार को बढ़ावा देने का प्रयास करते हैं। भारत सरकार ने हाल ही में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसीइपी) से भी बाहर रहने का निर्णय लिया है। ‘गैट’ व डब्ल्यूटीओ का परमानुगृहीत राष्ट्र व्यवहार (एमएफएन) सिद्धान्त भी सदस्यों के मध्य गैर-भेदभाव का ही सिद्धान्त है जो स्वतंत्र व्यापार को बढ़ावा देता है। इसके अतिरिक्त बहुत सी बार एक राष्ट्र संरक्षणवाद की अंधी दौड़ में अपने उद्योगों को धनात्मक की बजाय ऋणात्मक संरक्षण देता हुआ पाया जाता है। अत: हमें प्रशुल्क की प्रभावी दर ज्ञात होनी आवश्यक है। आयातित उपादान पर प्रशुल्क में वृद्धि करने से तैयार माल वाले उद्योग का संरक्षण घटता है तथा कमी करने से बढ़ता है। अत: ऐसे राष्ट्र जो आगतों के आयातों पर प्रशुल्क घटा रहे हैं, वे वास्तव में उन आयातित आगतों के माध्यम से तैयार माल के उद्योगों के संरक्षण में वृद्धि कर रहे हैं। यह सिक्के का एक पहलू है कि बजट 2021-22 में वित्त मंत्री ने आयातित आगतों पर प्रशुल्क बढ़ाकर उन वस्तुओं के तैयार माल के संरक्षण में कमी की है, जिनमें ये आगत उपयोग में लिए जाते हैं।
(लेखक अर्थशास्त्री एवं पूर्व कुलपति हैं)

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