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बड़ी चुनौती है फेक न्यूज पर लगाम

हमें भी यह सोचना होगा कि जो संदेश हम दूसरों को फॉरवर्ड कर रहे हैं, उस की सत्यता कितनी है। यदि स्वविवेक से अपने स्तर पर तथ्यों की पड़ताल का काम हम कर लें तो समस्या से मिल कर निपटा जा सकता है।

Aug 15, 2018 / 12:43 pm

सुनील शर्मा

fake news on social media

fake news

– कुंजन आचार्य, शिक्षक

इंटरनेट ने जितनी तकनीकी सुविधाएं हमें उपलब्ध करवाई हैं, उतनी ही दुविधाओं से भी रूबरू कराया है। इनमें सोशल मीडिया पर फेक न्यूज बहुत बड़ी चुनौती के रूप में उभर कर सामने आई है। एक तरफ जहां भारत में स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है, वहीं इनके जरिए इस्तेमाल किए जा रहे विभिन्न सोशल मीडिया एप्स से फेक न्यूज का लगातार प्रसार हो रहा है। इनसे निपटने के लिए सरकारी प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं।

फेक न्यूज से तात्पर्य उन निराधार खबरों से है जो सोशल मीडिया पर एक साथ हजारों लोगों तक पहुंचाई जाती है। इससे अफवाहें तो फैलती ही है, कानून व्यवस्था तक प्रभावित होती है। सोशल मीडिया का बड़ा माध्यम व्हाट्सएप भारत में काफी इस्तेमाल होता है। तकरीबन 20 करोड़ से अधिक लोग प्रतिदिन अरबों संदेशों का आदान-प्रदान करते हैं। इनमें फोटो और वीडियो भी शामिल हैं। इनमे से अधिसंख्य मैसेज फॉरवर्ड होते हैं। यही हाल फेसबुक, टेलीग्राम और अन्य प्लेटफॉर्म का है। सोशल मीडिया पर जो सन्देश एक को मिला तो उसने बिना उसकी विश्वसनीयता को जांचे दूसरे को भेज दिया।
पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया के जरिये फेक न्यूज से नफरत फैलाने का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह बहुत ही खतरनाक स्तर तक पहुंच गया। बच्चा चोरी की अफवाह हो या गो-तस्करी की सूचना, सांप्रदायिक वैमनस्य से जुड़ी खबरें हों या सरकार के खिलाफ तथ्यहीन खबरें। फर्जी समाचारों ने लोगों के बीच में एक अज्ञात भय और हिंसा का माहौल बना दिया। देश भर में बच्चा चोरी के मामलों में पिछले 3 महीनों में भीड़ ने कोई एक दर्जन से अधिक लोगों की जान ले ली। सोशल मीडिया से भ्रामक जानकारियों और अफवाहों को फैलाने की समस्या पर चिंता जाहिर करते हुए भारत के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने एक चेतावनी भी जारी की लेकिन प्रयास अभी भी नाकाफी ही हैं। फॉरवर्ड मैसेज की पहचान तो की जा रही है लेकिन मैसेज के मूल स्रोत की पहचान अभी भी दूर की कौड़ी है।
भारत में फेक न्यूज से निपटने और इस पर कार्ययोजना बनाने के लिए डिजिटल कम्पनियों ने सोशल रिसर्च भी शुरू किया है। हमें भी यह सोचना होगा कि जो संदेश हम दूसरों को फॉरवर्ड कर रहे हैं उसकी सत्यता कितनी है। यदि स्वविवेक से अपने स्तर पर तथ्यों की पड़ताल का काम हम कर लें तो समस्या से मिल कर निपटा जा सकता है।

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