पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया के जरिये फेक न्यूज से नफरत फैलाने का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह बहुत ही खतरनाक स्तर तक पहुंच गया। बच्चा चोरी की अफवाह हो या गो-तस्करी की सूचना, सांप्रदायिक वैमनस्य से जुड़ी खबरें हों या सरकार के खिलाफ तथ्यहीन खबरें। फर्जी समाचारों ने लोगों के बीच में एक अज्ञात भय और हिंसा का माहौल बना दिया। देश भर में बच्चा चोरी के मामलों में पिछले 3 महीनों में भीड़ ने कोई एक दर्जन से अधिक लोगों की जान ले ली। सोशल मीडिया से भ्रामक जानकारियों और अफवाहों को फैलाने की समस्या पर चिंता जाहिर करते हुए भारत के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने एक चेतावनी भी जारी की लेकिन प्रयास अभी भी नाकाफी ही हैं। फॉरवर्ड मैसेज की पहचान तो की जा रही है लेकिन मैसेज के मूल स्रोत की पहचान अभी भी दूर की कौड़ी है।
भारत में फेक न्यूज से निपटने और इस पर कार्ययोजना बनाने के लिए डिजिटल कम्पनियों ने सोशल रिसर्च भी शुरू किया है। हमें भी यह सोचना होगा कि जो संदेश हम दूसरों को फॉरवर्ड कर रहे हैं उसकी सत्यता कितनी है। यदि स्वविवेक से अपने स्तर पर तथ्यों की पड़ताल का काम हम कर लें तो समस्या से मिल कर निपटा जा सकता है।