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नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने के साथ अपव्यय रोकना भी जरूरी

छोटे-छोटे उपाय कारगर साबित हो सकते हैं, जिनमें घरों में सौर ऊर्जा आधारित रूफ टॉप संयंत्र लगवाना, लाइट, पंखे, हीटर एवं अन्य उपकरणों का अनावश्यक उपयोग न करना, एयर कंडीशनर को औसत तापमान पर चलाना, लाल बत्ती होने पर अपना वाहन बंद कर देना, ज्यादा से ज्यादा पैदल चलना या साइकिल का उपयोग करना इत्यादि। इसके अलावा, हमें प्रकृति का संरक्षण भी करना होगा एवं ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाकर उन्हें बड़ा करना होगा, जिससे हमारे देश के विकास को पंख तो लगें पर प्रकृति की कीमत पर नहीं।

Jan 05, 2024 / 09:44 pm

Gyan Chand Patni

नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने के साथ अपव्यय रोकना भी जरूरी

नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने के साथ अपव्यय रोकना भी जरूरी

डॉ. अतुल अग्रवाल

भारतीय प्रबंधन संस्थान सिरमौर, हिमाचल प्रदेश भारत में दशकों से कारखानों में जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला, तेल और गैस का उपयोग हो रहा है। विकासशील अर्थव्यवस्था में इन जीवाश्म ईंधनों का उपयोग देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने एवं सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि के लिए आवश्यक माना गया। हालांकि, आज हम नवीकरणीय ऊर्जा के विकास को समर्थन देने के लिए इन जीवाश्म ईंधनों के उपयोग को हतोत्साहित कर रहे हैं। इसके कई कारण हैं। पहला कारण यह है कि जलने के बाद जीवाश्म ईंधन उच्च कार्बन पदचिह्न छोड़ते हैं। वर्तमान में भारत कार्बन-डाइऑक्साइड का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है, जिसमें विद्युत उत्पादन संयंत्र, कारखाने, परिवहन आदि मुख्य योगदानकर्ता हैं। इसलिए राष्ट्र के ऊर्जा मिश्रण में नवीकरणीय ऊर्जा की अधिक हिस्सेदारी आवश्यक है।
हमने 2030 तक लगभग पचास प्रतिशत ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए स्वच्छ ऊर्जा की 500 गीगावॉट क्षमता प्राप्त करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। स्वच्छ ऊर्जा की अधिशेषता से हम ऐसे उपकरण भी नवीकरणीय ऊर्जा से चला सकते हैं जो कि फिलहाल पेट्रोलियम उत्पादों से चलते हैं; जैसे कि खाना बनाने के उपकरण, सभी प्रकार के जमीनी वाहन एवं कारखानों में विभिन्न प्रकार के संयंत्र। दूसरा कारण यह है कि भारत ऊर्जा संसाधनों के हिसाब से बहुत ज्यादा समृद्ध देश नहीं है। हम पेट्रोलियम उत्पादों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर हैं। वित्तीय वर्ष 2022-23 में, भारत ने घरेलू खपत के लिए आवश्यक पेट्रोलियम का 87.3 प्रतिशत आयात किया था। कोयले के लिए आयात परिदृश्य थोड़ा अलग है। हम कोयले के लिए अन्य देशों पर पेट्रोलियम पदार्थों जितना निर्भर नहीं हैं, फिर भी समान वित्तीय वर्ष में हमने अपनी मांग का लगभग 5त्न कोयला आयात किया जो कि 238 मिलियन टन था। यह सच है कि पेट्रोलियम उत्पादों और कोयले; दोनों के आयात से भारत का व्यापार घाटा काफी बढ़ रहा है। अत: नवीकरणीय ऊर्जा की वृद्धि होने से, न केवल हम देश के आयात और व्यापार घाटे में कमी की अपेक्षा करते हैं, बल्कि ईंधन पर निर्भरता कम होने के कारण हम अधिक ऊर्जा सुरक्षित भी बनते हैं। तीसरा कारण सीधे रूप से विद्युत क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। हम जानते हैं कि कोयला आधारित विद्युत उत्पादन की कार्बन उत्सर्जन में हिस्सेदारी सबसे अधिक है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन क्षमता में काफी वृद्धि हुई है। फिर भी कम रूपांतरण दक्षता एवं हर समय उपलब्ध न होने के कारण नवीकरणीय स्रोतों से ऊर्जा उत्पादन, कोयला आधारित विद्युत को प्रतिस्थापित करने में समय ले रहा है। इसके लिए इनकी अधिक नवीकरणीय क्षमता का विकास, रूपांतरण दक्षता बढ़ाने के लिए शोध एवं वित्तीय प्रोत्साहन तथा ऊर्जा भंडारण की दिशा में नीतिगत प्रयास किए जा रहे हैं। इन प्रयासों के परिणाम कुछ हद तक उनसे उत्पादित सस्ती विद्युत के रूप में दिखने लगे हैं। जीवाश्म ईंधन के उपयोग को हतोत्साहित करने एवं नवीकरणीय ऊर्जा की वृद्धि पर ध्यान देने के कारण स्पष्ट हैं। धीरे-धीरे नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाना और जीवाश्म ईंधन से दूरी बनाने को ऊर्जा परिवर्तन यानी एनर्जी ट्रांजिशन के रूप में भी जाना जाता है। सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में ऊर्जा परिवर्तन की भूमिका महत्त्वपूर्ण है, परन्तु यह मुख्यत: आपूर्ति पक्ष का पहलू है। इसलिए, उपभोग पक्ष से ऊर्जा दक्षता और ऊर्जा संरक्षण का साथ मिलना अति आवश्यक है, तभी हम 2070 तक नेट जीरो की परिकल्पना को साकार कर सकते हैं। ऊर्जा दक्षता और ऊर्जा संरक्षण; दोनों मिलकर एनर्जी इंटेंसिटी को कम करते हैं। इसका अर्थ है कि समान मात्रा में उत्पादन के लिए आप पहले से कम ऊर्जा का उपयोग कर रहे हैं।
छोटे-छोटे उपाय कारगर साबित हो सकते हैं, जिनमें घरों में सौर ऊर्जा आधारित रूफ टॉप संयंत्र लगवाना, लाइट, पंखे, हीटर एवं अन्य उपकरणों का अनावश्यक उपयोग न करना, एयर कंडीशनर को औसत तापमान पर चलाना, लाल बत्ती होने पर अपना वाहन बंद कर देना, ज्यादा से ज्यादा पैदल चलना या साइकिल का उपयोग करना इत्यादि। इसके अलावा, हमें प्रकृति का संरक्षण भी करना होगा एवं ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाकर उन्हें बड़ा करना होगा, जिससे हमारे देश के विकास को पंख तो लगें पर प्रकृति की कीमत पर नहीं।

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