अब तक के अनुभव से तो यही सामने आया है कि जब सिस्टम की शह पर ऐसे अवैध निर्माण खड़े हो जाते हैं तो राजनीतिक दलों को वोट बैंक की चिंता सताने लगती है। इसीलिए जानते-बूझते भी ऐसी बसावट को रोकने का प्रयास ही नहीं होता। अतिक्रमण उद्योग तो हमारे जनप्रतिनिधियों की शह पर ही रंगत में आता है। ऐसे हालात बनने के लिए कुछ तो नेताओं की मजबूरी है ही, प्रशासनिक ढिलाई और ऊपरी दबाव भी कम जिम्मेदार नहीं है। सबको पता है कि जिनको चुनाव लड़ना है उनको वोटों की चिंता भी है। इसीलिए एक बार अतिक्रमण हो गया तो फिर उसे बचाने के लिए राजनीतिक दबाव से लेकर कानूनी पेचीदगियों की अंधी सुरंगें भी खूब हैं। कभी-कभार विरोध भी हुआ तो अतिक्रमण हटाओ अभियान भी चार कदम चल कर फुस्स हो जाते हैं। भूमाफिया तो अपना काम कर जाते हैं, लेकिन कभी अदालतों की सख्ती से ऐसे अवैध निर्माण ध्वस्त करने की कार्रवाई भी होती है तो फिर पिसता वही आम आदमी है जो पाई-पाई जोड़कर अपना घरौंदा बनाता है। शायद इसी मानवीय पक्ष को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के सरोजनी नगर में 200 झुग्गियों को तोड़ने पर रोक लगा दी है। जाहिर है कि अवैध कॉलोनियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की चिंता भी यही है कि ऐसा बंदोबस्त किया जाना चाहिए जिससे बेतरतीब बसावट और शहरों के मास्टर प्लान की अनदेखी हो ही नहीं।
मास्टर प्लान को लेकर अदालत के आदेशों की पालना तो दूर सरकारें अपने ही मास्टर प्लान को लागू करने में असमर्थता व्यक्त करते हुए अदालतों तक गुहार लगाने लग जाती हैं। होना तो यह चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट खुद ऐसा सख्त कानून बनाने के लिए सरकारों को निर्देश दे जिसमें मास्टर प्लान की पालना सुनिश्चित करने का बंदोबस्त तो हो ही, इनकी अनदेखी कर बेतरतीब बसावट के लिए जिम्मेदारों पर सख्ती की व्यवस्था भी की जाए।
मास्टर प्लान को लेकर अदालत के आदेशों की पालना तो दूर सरकारें अपने ही मास्टर प्लान को लागू करने में असमर्थता व्यक्त करते हुए अदालतों तक गुहार लगाने लग जाती हैं। होना तो यह चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट खुद ऐसा सख्त कानून बनाने के लिए सरकारों को निर्देश दे जिसमें मास्टर प्लान की पालना सुनिश्चित करने का बंदोबस्त तो हो ही, इनकी अनदेखी कर बेतरतीब बसावट के लिए जिम्मेदारों पर सख्ती की व्यवस्था भी की जाए।