समाज और देश के प्रति प्रतिबद्धता और जिम्मेदारी के अभाव में सूचना क्रांति का असर आत्मघाती रूप में सामने आता रहा है। इसमें सोशल मीडिया का फैलाव ‘करेले पर नीम’ का काम कर रहा है। ऐसे लोग कुकुरमुत्ते की तरह उग आए हैं, जो या तो कुत्सित मंशा के साथ सक्रिय हैं या जिनका उद्देश्य कैसे भी मीडिया तकनीकों का इस्तेमाल कर सिर्फ लाभ कमाना है। ऐसे लोग समाज के लिए काफी खतरनाक साबित हो रहे हैं। केंद्र सरकार ने गुरुवार को आठ यू-ट्यूब चैनलों को प्रतिबंधित किया। पहले भी विभिन्न वेबसाइटों और चैनलों पर रोक लगाई जा चुकी है। सरकार का कहना है कि ये चैनल भ्रामक सूचनाओं (फेक न्यूज) का प्रसार कर देश विरोधी भावनाएं भड़काने की मंशा से काम कर रहे थे। कुछ उदाहरण भी दिए गए हैं जिनसे पता चलता है कि ये चैनल वाकई भ्रामक सूचनाएं फैला रहे थे। सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक सामग्री हटाने की कार्रवाइयां दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं, जो इसका सबूत भी है कि ऐसे प्लेटफॉर्म का दुरुपयोग खूब हो रहा है। सरकार का ऐसे चैनलों-साइटों को प्रतिबंधित करने का कदम जायज ही माना जाएगा। क्योंकि, यदि सरकार इन्हें नहीं रोकेगी तो गलत सूचनाओं के साथ जवान होती पीढ़ी देश को रसातल में ही ले जाएगी। प्रतिबंधात्मक कार्रवाई करते वक्त सरकार को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि किसी तरह का राजनीतिक मकसद इन्हें रोकने के पीछे नहीं दिखना चाहिए।
अंतिम सावधानी तो आम जनता को ही बरतनी होगी। हम इतने मासूम भी बने नहीं रह सकते कि कोई भ्रामक सूचनाओं से हमें साध ले। सूचना क्रांति का गलत इस्तेमाल करने वालों की बाढ़ आ गई है। इनसे अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर भी असर पडऩे लगा है। काट-छांट कर बनाए गए वीडियो या तोड़-मरोड़ कर तथ्यों को वायरल करना मात्र एक क्लिक करने भर दूर रह गया है। इसलिए सूचनाओं के भरोसेमंद स्रोत को चिह्नित करना अब हमारी पहली शर्त होनी चाहिए।