मध्यप्रदेश के दमोह में जिला अस्पताल में तो भीड़ ऑक्सीजन का सिलेण्डर लेकर पहुंचे ट्रक में से ही सिलेण्डर लूट ले गई। आपदा के मौके पर राज्यों को भी एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए, लेकिन हरियाणा ने तो दिल्ली सरकार पर ऑक्सीजन लूटने का आरोप लगा दिया। हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने यहां तक कह दिया कि पहले हम अपनी जरूरत पूरी करेंगे, बाद में दूसरों को ऑक्सीजन की आपूर्ति करेंगे। रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी व जमाखोरी की शिकायतें भी खूब आ रही हैं। भारत के औषधि महानियंत्रक (डीजीसीआइ) ने पिछले साल जुलाई में भी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को पत्र लिखकर कहा था कि रेमडेसिविर को अधिकतम खुदरा मूल्य से अधिक दामों पर बेचा जाता है, तो तुरंत जांच की जानी चाहिए। कोरोना खतरा टला जानकर सरकारों ने न तो इस इंजेक्शन समेत दूसरी जीवन रक्षक दवाइयों की उपलब्धता पर ध्यान दिया और न ही जमाखोरों के खिलाफ सख्ती की। पिछले साल की कोरोना मार ने भी सरकारों को ऑक्सीजन का बंदोबस्त करने के लिए भले ही चेतावनी दी हो, लेकिन उन्हें राजनीति से फुर्सत मिले तब ना। अब भी ऑक्सीजन की कमी को लेकर पक्ष-प्रतिपक्ष में बयानबाजी का दौर जारी है।
अब सवाल उठता है कि ऑक्सीजन से दवाओं व इंजेक्शन तक की किल्लत का असली जिम्मेदार कौन है? केन्द्र की सरकार हो या फिर राज्यों की, दोनों ने ही अब तक मुनाफाखोरों व जमाखोरों पर कितनी सख्ती की? संक्रमण के बढ़ते खतरे के बीच उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह बयान स्वागत योग्य है कि जीवन रक्षक दवाइयों की जमाखोरी करने वालों पर सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाने तक की सख्ती करेगी। मानवता के दुश्मनों को सजा में किसी भी किस्म की रियायत नहीं होनी चाहिए, लेकिन ऐसा हो तब ना।