खुदरा निवेशकों को धोखाधड़ी से बचाने के लिए मजबूत तंत्र जरूरी
गबन और धोखे के बढ़ते मामलों को देखते हुए खुदरा निवेशकों की हिफाजत के लिए ठोस पहल जरूरी है। साथ ही, खुदरा निवेशकों के निवेश के लिए अपेक्षाकृत कम जोखिम वाले विकल्पों को और बढ़ाना होगा। हमें ऐसे आधुनिक बैंकिंग ढांचे की जरूरत है, जो धोखाधड़ी रोकने में कारगर हो।
Published: April 04, 2022 08:08:46 pm
वरुण गांधी
भाजपा सांसद
भारत में खुदरा निवेशकों को पिछले कुछ हफ्तों के दौरान भारी नुकसान हुआ। इस नुकसान की वजह कमोडिटी की कीमतों में वृद्धि, सुस्त अर्थव्यवस्था और यूक्रेन संकट है। इन निवेशकों में कई ने पहली बार बाजार में अपनी बचत को उत्साह के साथ लगाया था, पर उन्हें निराशा हाथ लगी। साथ ही, यह भी दिखा कि देश में खासतौर पर खुदरा निवेशकों को बाजार की अस्थिरता को लेकर समझ कम है। सामाजिक सुरक्षा की कमी जैसा मुद्दा तो खैर है ही। ऐसी सूरत में हमें देखना-समझना होगा कि हमारे युवा निवेशक कैसे निवेश करते हैं। इनमें से कई अपनी बचत को म्युचुअल फंड और इक्विटी में लगाते हैं। कुछ अन्य आकर्षक बचत योजनाओं का रुख करते हैं, जिनमें धोखाधड़ी की आशंका रहती है। इक्विटी को ही लें, तो इस दौरान सूचीबद्ध शीर्ष कॉर्पोरेट ने भी अपनी चमक गंवाई है। पेटीएम का मामला तो खासा चर्चित रहा।
इस बीच, बाजार को लेकर दिखे उत्साह ने कॉर्पोरेट गवर्नेंस की चुनौतियों को खासतौर पर छिपाया है। एनएसई में देखी गई अनियमितताओं ने एक गहरी संस्थागत सड़ांध को उजागर किया है। इस बीच सेबी ने अपने पहले के अनिवार्य रुख को वापस लिया है, जिसमें शीर्ष 500 सूचीबद्ध फर्मों में अध्यक्ष और एमडी की भूमिका को अलग करने की बात कही गई थी। यह कदम नियामकीय कब्जे का नया संकेत है। देश की शीर्ष 500 फर्मों में से 300 प्रमोटर-संचालित हैं। ऐसे में ये फर्म आमतौर पर दोनों भूमिकाओं को साथ निभाना जारी रखती हैं, जिससे बोर्ड की जिम्मेदारियों और दिन-प्रतिदिन के दायित्वों के बीच हितों का स्वाभाविक टकराव होता है। हालिया एबीजे शिपयार्ड घोटाले में 28 बैंकों के 22,842 करोड़ रुपए के कर्ज का डूबना दिखाता है कि बैंकिंग एनपीए का संकट गहराता जा रहा है। सूचीबद्ध फर्मों से इस्तीफा देने वाले स्वतंत्र निदेशकों की बढ़ी संख्या दिखाती है कि कई फर्म धोखाधड़ी में लिप्त हैं।
हमारे पास निवेशक संरक्षण के लिए विनियमन का दायरा और वास्तविक फंडिंग सीमित है। एनएसई के पास 594 करोड़ रुपए का निवेशक सुरक्षा कोष था (केवल ब्रोकर के दिवालिया होने पर पैसा गंवाने वाले निवेशकों को वापस करने के लिए), जबकि बीएसई के पास 31 मार्च, 2020 तक यह कोष 784 करोड़ रुपए का था। जाहिर है कि निवेशक सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने की दिशा में जोर देने के साथ, सेबी को अपने कॉपोर्रेट प्रशासन मानदंडों की समीक्षा करने की सख्त जरूरत है।
इस दौरान नई निवेश योजनाओं में कई निवेशकों के पैसे डूबे हैं। एक आंकड़े के मुताबिक पांच लाख भारतीयों ने मल्टीलेवल मार्केटिंग (एमएलएम) योजनाओं में मई और जून 2021 के महज दो महीने में 150 करोड़ रुपए गंवा दिए। पावर बैंक और ऐज प्लान जैसे एप के जरिए ऐसी धोखाधड़ी हुई। निवेशकों के साथ झांसे का यह खेल अपने तंत्र और विस्तार में कितना बड़ा है, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि बीते साल दिसंबर में पुलिस इनपुट के आधार पर गूगल प्ले स्टोर से ऐसे 400 अनधिकृत डिजिटल ऋण देने वाले एप हटाए गए थे। इसी महीने यह भी पता चला कि लाखों निवेशकों ने चिटफंड धोखाधड़ी मामले में (एग्री गोल्ड फार्म एस्टेट्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के साथ) 6,300 करोड़ रुपए गंवा दिए। इससे पहले कि प्रवर्तन निदेशालय आगे कोई कदम बढ़ाता क्रिप्टो-मुद्रा, जो अपने आप में एक विशाल अनियमित क्षेत्र है, ने नई चुनौती पेश की है।
कहने को तो देश में आम भारतीय निवेशकों को धोखाधड़ी से बचाने के लिए नियामकीय ढांचा है, पर यह निष्प्रभावी है। मौजूदा हालात में निवेशक जागरूकता में सुधार करने और चिटफंड योजनाओं की समीक्षा करने के लिए एक संस्थागत प्रणाली विकसित करने की दरकार है। इस तरह की प्रणाली आदर्श रूप से योजना को पहले से सत्यापित करेगी और भुगतान एकत्र करने के लिए एक मध्यस्थ मंच के रूप में काम करेगी। हमें आम भारतीय के लिए भी यह सत्यापित करने के लिए एक तंत्र की आवश्यकता है कि कोई योजना उनके लिए युक्तिसंगत है कि नहीं। आधार, यूपीआई और जीएसटी के बीच एकीकरण ऐसी प्रणाली को पुख्ता करने में मदद कर सकता है। उन निवेशकों के लिए भी, जिन्होंने अपना पैसा बैंक खातों में रखना चुना है, स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। धोखाधड़ी के मामलों में वहां भी वृद्धि हुई है। इस समस्या के समाधान के लिए पीएसयू बैंकों को महत्त्वपूर्ण स्वायत्तता प्रदान करने और आरबीआई के सख्त केवाइसी मानदंडों को अनिवार्य करने की जरूरत है। यह भी कि हमें व्यावसायिक हितों वाले लोगों पर बैंकों (सहकारिता सहित) के बोर्ड में शामिल होने पर सख्त प्रतिबंध लगाना चाहिए।
दिलचस्प है कि जिन्होंने सेवानिवृत्ति के लिए सरकार पर भरोसा रखा है, वे भी असुरक्षा महसूस कर रहे हैं। हालत यह है कि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) खातों से अवैध धन निकासी के मामले पिछले एक साल से खासे बढऩे लगे हैं। जाहिर है कि ईपीएफओ के कामकाज में ज्यादा पारदर्शिता और कर्मचारियों के हित और सुरक्षा के लिए संस्थागत तौर पर इसे नए सिरे से सुदृढ़ करने की जरूरत है।
गबन और धोखे के ऐसे मामलों को देखते हुए खुदरा निवेशकों की हिफाजत के लिए ठोस पहल जरूरी है। निवेशकों की जागरूकता के साथ उनकी सुरक्षा के लिए संस्थागत उपायों का दायरा और तंत्र खासा कमजोर है। साथ ही, खुदरा निवेशकों के निवेश के लिए अपेक्षाकृत कम जोखिम वाले विकल्पों को और बढ़ाना होगा। यह कहना ज्यादा मुनासिब होगा कि हमें बुनियादी तौर पर आधुनिक बैंकिंग ढांचे की जरूरत है, जो इस तरह के धोखों को रोकने में कारगर हो। खुदरा निवेशकों को सुरक्षा की आवश्यकता है और राज्य को इसे प्राथमिकता के साथ मुहैया कराना चाहिए।

खुदरा निवेशकों को धोखाधड़ी से बचाने के लिए मजबूत तंत्र जरूरी
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