संविधान की धारा 124/217 के अन्तर्गत सर्वोच्च/उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति केन्द्र सरकार द्वारा किये जाने का प्रावधान है और कई दशकों तक, इसी आधार पर न्यायाधीशों की नियुक्तियां हो रही थीं परन्तु 1993 में, एडवोकेट ऑन रिकार्ड बनाम केन्द्र सरकार के निर्णय द्वारा उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का चयन व नियुक्ति के समस्त अधिकार सर्वोच्च न्यायालय ने अपने हाथ में ले लिये तथा कॉलेजियम का गठन कर दिया, जिसका संविधान में कहीं उल्लेख नहीं है।
न्यायपालिका की स्वतंत्रता और राजनीतिक हस्तक्षेप से बचने के लिए यह व्यवस्था प्रारम्भ में ठीक थी परन्तु धीरे-धीरे इस व्यवस्था में कई दोष आ गए। मौजूदा केन्द्र सरकार ने न्यायाधीशों की नियुक्तियों आदि के संदर्भ में संवैधानिक संशोधन द्वारा कॉलेजियम व्यवस्था पर अंकुश लगाने की कोशिश की। जहां हर विषय पर राजनीतिक दलों में गहरे मतभेद दिखते हैं परन्तु संविधान के इस 120वें संशोधन को सर्वसम्मति से पारित किया गया। दुर्भाग्य से पूरे संवैधानिक संशोधन को सर्वोच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति केहर की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने असंवैधानिक घोषित कर दिया।
इस निर्णय में भी कई न्यायाधीशों ने स्पष्ट कहा कि मौजूदा कॉलेजियम व्यवस्था संतोषजनक नहीं है तथा इसमें सुधार की आवश्यकता है। 1993 में सर्वोच्च न्यायालय की नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति व स्थानान्तरण के बारे में दिये गये फैसले पर लम्बे समय तक वाद-विवाद चलता रहा। अंत में राष्ट्रपति द्वारा संविधान की धारा 143 के अन्तर्गत जुलाई 1998 में 11वें रेफरेन्स द्वारा सर्वोच्च न्यायालय से विभिन्न बिन्दुओं पर सलाह मांगी। सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ द्वारा 1998 में रेफरेन्स के संबंध में राय दी गई कि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए मुख्य न्यायाधीश, उस न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों की सलाह पर केन्द्र सरकार को प्रस्ताव भेजेंगे परन्तु यदि दो न्यायाधीश उस प्रस्ताव से सहमत नहीं हों तो मुख्य न्यायाधीश वह प्रस्ताव प्रेषित नहीं करेंगें।
यह भी स्पष्ट किया गया कि मुख्य न्यायाधीश की सहमति कॉलेजियम के प्रस्ताव के लिए आवश्यक है। उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के स्थानान्तरण के संबंध में भी सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों से परामर्श आवश्यक होगा तथा उसके अतिरिक्त उच्च न्यायालयों के उन मुख्य न्यायाधीषों से भी परामर्श करना आवश्यक होगा जहां से उक्त न्यायाधीश का स्थानान्तरण प्रस्तावित है और जिस उच्च न्यायालय में स्थानान्तरण किया जाना है। यह भी अंकित किया गया कि कॉलेजियम के संबंधित न्यायाधीशों से मुख्य न्यायाधीश द्वारा परामर्श लिखित में लेना चाहिये तथा संबंधित दस्तावेज केन्द्र सरकार को प्रेषित करना चाहिये।
मौजूदा समय में कॉलेजियम व्यवस्था पूर्णतया चरमरा गई है। इसका निराकरण तत्काल होना चाहिये। सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के रिक्त पदों की संख्या में वृद्धि के साथ विचाराधीन मामलों का अम्बार लग रहा है। अत: कॉलेजियम संरचना पर तत्काल पुनर्विचार की आवश्यकता है। प्रथम चरण में यदि इसकी संख्या पांच से बढ़ाकर दस कर दी जाती है तो निर्णय लेने में गति आयेगी अन्यथा एक या दो न्यायाधीश ही कॉलेजियम व्यवस्था को ठप करने की स्थिति में होते हैं।