हमारे देश में दुष्कर्म और बाल विवाह कानूनों में सहमति की उम्र को लेकर विरोधाभास रहा है। संविधान के अनुसार बलात्कार के अपराध को परिभाषित करने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में एक अपवाद धारा है जो कहती है कि यदि पत्नी की आयु 15 वर्ष से कम नहीं है तो उसके साथ पति द्वारा शारीरिक संबंध बनाया जाना बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता। वहीं दूसरी ओर कानून के अनुसार यौन संबंधों के लिए अपनी सहमति देने की उम्र और विवाह की आयु 18 वर्ष तय की गई है।
सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला ऐसे समय में आया है जब सुप्रीम कोर्ट पहले ही वैवाहिक दुुष्कर्म को अपराध घोषित करने की मांग संबंधी विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है और पूरे देश में सहमति की उम्र पर बहस छिड़ी है। आधुनिक भारत के लिए यह तथ्य बड़ा शर्मनाक है कि सख्त कानूनों के बावूजद राजनीतिक संरक्षण और सामाजिक दबावों के चलते बालविवाह पर लगाम नहीं लग पा रही है। आज भी राजनेताओं को बालविवाह समारोह में नाबालिग दूल्हा-दुल्हन को आशीर्वाद देते हुए देखा जा सकता है।
कम उम्र में ही लड़कियों को पढ़ाई-लिखाई छुड़वाकर शादी के बंधन में बांध दिया जाता है। साथ ही उन्हें मां बनने पर भी मजबूर किया जाता है। अशिक्षा और रुढिय़ों के चलते देश के कई समुदाय लड़कियों को कच्ची उम्र में मां बनाकर उनकी जान से खिलवाड़ करते रहे हैं। कच्ची उम्र के चलते लड़कियों के कमजोर शरीर मां बनने की तकलीफों को नहीं झेल पाते। इससे कई तो गर्भावस्था के दौरान ही दम तोड़ देती हैं। यह भी देखने में आ रहा है कि कई मां-बाप गरीबी के चलते अपनी मासूम बच्चियों को मानव तस्करों के हाथों बेच देते हैं या कई बच्चियां विपरीत परिस्थितियों में फंसकर मानव तस्करों के हाथों में पड़ जाती है।
ये मानव तस्कर उन्हें बड़ी उम्र के व्यक्ति के साथ जबरन विवाह करवाकर सेक्स गुलाम जैसी जिंदगी बिताने को विवश कर देते थे। पूर्व में सउदी अरब के उम्रदराज शेखों से कम उम्र की गरीब बच्चियों के विवाह के कई मामले सामने आए हैं। ऐसे लोग अब तक कानून धाराओं में विसंगतियों का सहारा लेकर साफ बच निकलते थे। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में असमंजस को दूर करते हुए साफ व्याख्या की है।
आजादी के ७० साल बाद भी बाल विवाह पर तो अंकुश नहीं लग सका लेकिन इस फैसले से लगता है कि नाबालिग बच्चियों को कम उम्र में मां बनकर अपनी जान गंवाने से तो छुटकारा मिलेगा ही साथ ही वे अमीर-बूढों की सेक्स गुलाम बनने से भी बच सकेंगी। प्रशंसनीय तथ्य यह है कि यह फैसला किसी धर्म विशेष के विवाह कानूनों को ही प्रभावित नहीं करेगा। सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला सभी धर्मों पर समान रूप से लागू होगा।