scriptअदालत के सुझाव से निकल सकता है रास्ता | Supreme court may suggest solution to save environment | Patrika News

अदालत के सुझाव से निकल सकता है रास्ता

Published: Feb 19, 2021 08:02:22 am

सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे ने गुरुवार को सरकार से पूछा है कि ‘क्या कुछ खास प्रजाति और उम्र वाले पेड़ों को काटने से रोकने के लिए कुछ किया जा सकता है?’

सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे ने गुरुवार को सरकार से पूछा है कि ‘क्या कुछ खास प्रजाति और उम्र वाले पेड़ों को काटने से रोकने के लिए कुछ किया जा सकता है?’ उनके इस सवाल में पर्यावरण को बचाने की चिंता स्पष्ट है। हालांकि ऐसी चिंता सरकारों को भी होनी चाहिए, जो कहीं नजर नहीं आती है।
विकास के लिए पर्यावरणीय क्षति को जैसे जरूरी मान लिया गया है, वैसे ही उसके प्रति गैरजिम्मेदाराना व्यवहार भी लगभग स्वीकार्य हो गया है। इस बात का अहसास ही नहीं है कि जिन पेड़ों को काटकर या अन्य प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहुंचा कर परियोजनाएं लाई जा रही हैं, उसका मोल अंतत: भावी पीढ़ी को चुकाना होगा। पिछले कुछ दशकों से हम देख ही रहे हैं कि हमने जो लापरवाही बरती है, उसकी कीमत वर्तमान पीढ़ी चुका रही है।
हर साल प्रदूषणजनित बीमारियों से हजारों लोगों को समय से पहले दुनिया से विदा होना पड़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय संस्था ग्रीनपीस की हालिया रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाले पांच शहरों में ही प्रदूषित हवा के कारण एक लाख 60 हजार लोगों की मौत हुई है। सिर्फ राजधानी दिल्ली में 54 हजार से ज्यादा मौतें हुई हैं, जबकि इस दौरान कोरोना से होने वाली मौतों की संख्या 10,894 है।
प्रधान न्यायाधीश की चिंता में हम आशा की किरण देख सकते हैं। मामला पश्चिम बंगाल में रेलवे के पांच ओवरब्रिजों के निर्माण के लिए करीब 300 पेड़ों की बलि लेने का है। सुप्रीम कोर्ट से नियुक्त विशेषज्ञ समिति ने आश्चर्यचकित करने वाली रिपोर्ट दी है कि इन पेड़ों के काटे जाने से हमें 2,23,50,00,000 रुपए का नुकसान होगा।
समिति ने यह गणना अगले 100 सालों में इन पेड़ों से मिलने वाले लाभ का आकलन करते हुए की है। समिति का मानना है कि एक पेड़ से सालाना हमें 74,500 रुपए के उत्पाद प्राप्त होते हैं। जस्टिस बोबडे ने कु छ महत्वपूर्ण सुझाव भी सरकार को दिए हैं कि विकास परियोजनाओं के लिए पेड़ तभी काटे जाने चाहिए, जब कोई और विकल्प न हो। मसलन, यदि सडक़ के लिए पेड़ काटना जरूरी लग रहा हो, तो ऐसा तभी किया जाए, जब रेल या जल परिवहन का विकल्प न हो। फिर भी ऐसा करना ही पड़े, तो पेड़ों की कटाई से होने वाले नुकसान को परियोजना के खर्च में शामिल किया जाए। अभी पांच ओवरब्रिजों के लिए 500 करोड़ रुपए का बजट बनाया गया है। यदि पेड़ों के नुकसान की गणना की जाए, तो यह रकम कई गुना ज्यादा हो सकती है। प्रधान न्यायाधीश के सुझाव बहुमूल्य हैं। यदि ऐसी कोई व्यवस्था बनाई जा सके, तो पर्यावरण के नुकसान के प्रति न सिर्फ सरकारों को, बल्कि जनता को भी सजग बनाया जा सकेगा।
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