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मौन स्वीकृति

Published: Jul 08, 2015 09:02:00 am

Submitted by:

Kamlesh Sharma

केन्द्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संवैधानिक मर्यादाओं के बाहर जाकर ललित मोदी की विदेशी सरकार में सहायता की। कोई बात नहीं, मानवीय संवेदना का तकाजा था। किसी प्रकार की जांच की आवश्यकता नहीं है। 

केन्द्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संवैधानिक मर्यादाओं के बाहर जाकर ललित मोदी की विदेशी सरकार में सहायता की। कोई बात नहीं, मानवीय संवेदना का तकाजा था। किसी प्रकार की जांच की आवश्यकता नहीं है। 

आरोप लगाया गया कि राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने ललित मोदी की मदद के लिए और भी बड़ी गलती की। करना पड़ता है आपस के मामले में। इन्हीं का धौलपुर महल केन्द्र सरकार की सूची में निजी सम्पत्ति है या नहीं। 

इसका आदान-प्रदान केसर बाग की एवज में हुआ या नहीं। अपने-अपने प्रमाण दिए जा रहे हैं। सरकारें बदलती रहती हैं। हो गए होंगे कागज इधर-उधर। इसमें जांच क्या कराई जाए। 

मुख्यमंत्री के सांसद पुत्र दुष्यंत सिंह का कहना है कि सारा लेन-देन कागजों में है। आयकर विभाग की जानकारी में है। जांच अधिकारी आकर कागज देख ले।

छत्तीसगढ़ की रमन सिंह सरकार पर डेढ़ लाख करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप। कोई भी नेता इतनी बड़ी राशि पचा सकता है क्या, अकेला? फिर जांच करवाकर अपने पैर कौन कटवाना चाहता है? यहां तो खनन घोटाले, भू-अवाप्ति, विद्युत उत्पादन लाइसेंस, एनीकट निर्माण से लेकर माओवाद के मुखौटे में क्या-क्या नहीं हुआ और कहां-कहां नहीं बंटा! कांग्रेसी नेताओं के भी दर्जनों नाम सामने आएंगे। अपनों को बचाने के लिए तो उनको भी बचाना ही पड़ेगा न! प्रधानमंत्री मौन हैं।

केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, महाराष्ट्र की मंत्री पंकजा मुंडे, मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस एवं एक अन्य मंत्री विनोद तावड़े झूंठ, भ्रष्टाचार या सत्ता मद में फंसे। 

कौन सी नई बात है। सत्ता में तो ऐसा होता ही रहता है। क्या जांच करानी है? और अब लोकतंत्र का वीभत्स काण्ड-व्यापमं महाहत्याकांड! मोदी जी बार-बार दौरे पर विदेश भाग रहे हैं, मानो उनसे यह सब सुना नहीं जा रहा हो। केन्द्र सरकार, भाजपा, संघ सभी मौन! एनडीए के घटक भी मौन!! लालू, मुलायम, नीतीश, ममता, सोनिया, मायावती जैसों को भी मानो सांप सूंघ गया। 

मध्यप्रदेश सरकार का उद्घोष है- ‘जो हमसे टकराएगा, मिट्टी में मिल जाएगा। पहले कहती रही- जांच के लिए सीबीआई यहां कभी नहीं आएगी। दबाव बढ़ा तो जाकर सीबीआई जांच के लिए तैयार हुई। 

कल तक केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह भी खम ठोक कर कह रहे थे कि सीबीआई जांच की जरूरत नहीं है। अब वे क्या कहेंगे! पहले ही मान लेते तो जनता में कद तो बढ़ गया होता। दो दिन पहले एक महिला पुलिस उपनिरीक्षक के रूप में 46वीं मौत हो गई।

एक पत्रकार एवं जांच करने वाले डीन की संदिग्ध मौत पिछले चार दिनों में हो चुकी हैं। बहुत सहजता से पर्दा डाला जा सकता है, सत्ता के सहारे!!!

जनता एक स्प्रिंग की तरह होती है। दबाते जाओ, दबती चली जाएगी। किसी को प्रतिक्रिया दिखाई नहीं देगी। जैसे हर स्प्रिंग के दबने की एक सीमा है, जनता की भी है। उसके बाद- ‘धड़ाम ! पूरी शक्ति से ऊपर उछलती है तथा दबाने वाली शक्ति को चुनौती दे डालती है।

उदाहरण के लिए जयपुर मेट्रो कार्य के दौरान पुरामहत्व के शहर पर चलाए गए जेसीबी से सैकड़ों वर्ष पुराने देवालय, मंदिर ध्वस्त कर दिए गए। एक-दो नहीं दर्जनों। जनता मौन देखती रही। 

यहां तक कि स्थायी महत्व के स्मारकों को खतरे में देखकर भी चुप रही। तीन सौ साल पुरानी सुरंगें जमीन में तोड़ दी गईं। पुरातत्व संरक्षण विभाग के अधिकारी झूठी रिपोर्टें बनाते रहे। जनता ने धैर्य रखा। अगले चुनाव में निर्णय वैसे भी उसी के हाथों में रहेगा।

मेट्रो प्रशासन खुश था कि उसने व्यापारियों और पुजारियों को खरीद लिया। जयपुर का पूर्व राजपरिवार सत्ता के आगे जयपुर शहर से नाता तोड़ बैठा। सत्ता पक्ष की विधायक, सत्ता को चुनौती कैसे दे? सारे विधायकों एवं सांसद की जीभें भी चिमटे से पकड़ी हुईं थीं। सबको लग रहा था कि स्वर्ग तक सोने की सीढ़ी बन जाएगी। 

एक शिवलिंग बोल उठा- ‘मुझ से राज मांगकर मुझ पर ही जेसीबी चला रहे हो, भस्मासुर! और अचानक मंदिरों को ध्वस्त करने के मुद्दे पर संघ ने सरकार के सामने सिंहनाद कर दिया। जनता तो भरी बैठी थी, संघ के पीछे खड़ी हो गई। 

नौ जुलाई को चक्काजाम हड़ताल (दो घण्टे) तथा बाजार बंद की घोषणा कर दी। अब संघ कह रहा है कि सौ साल से ज्यादा पुराने मंदिरों को फिर बनवाओ। राज्य भर में आंदोलन फैलाने की बात भी कही जा रही है। 

संघ ने जयपुर के विधायकों, सांसद को भी फटकारा! ‘कहां थे तुम, जब मंदिर टूट रहे थे?‘ संघ ने एक अर्थ में अपने मातृत्व की भूमिका हाथ में ले ली है। संघ ने ही घर-घर जाकर भाजपा के लिए वोट मांगे थे। संघ के संस्कारों की परीक्षा की घड़ी है। वैसे तो यह कार्य विपक्ष को करना चाहिए था, किन्तु बोध का अभाव ही रहा।

प्रश्न तो यह है कि लोकतंत्र में दबाव एक स्थिति के आगे नहीं चलता। जयपुर में मंदिर तोडऩे के बाद दबाव सीमा से बाहर निकल गया। व्यापमं मामले में लगातार मौतों के बाद इतना दबाव बना कि मुख्यमंत्री को सीबीआई जांच की मांग माननी पड़ी। 

अन्य राज्यों में भी जनता इसी प्रकार संगठित होकर भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़ी होने लगी, तो केन्द्र द्वारा डाले गए पर्दों को गिरने में देर नहीं लगेगी। हां, इस बीच में केन्द्र का -बल्कि भाजपा का- ग्राफ जरूर गिर पड़ेगा, गिरने भी लगा है! 

मतदाता से बड़ा कोई रिश्तेदार नहीं होता। कुछ की बलि देकर भी भावी सुरक्षा निश्चित की जा सके तो, इस भाव कुछ बुरा नहीं है। ऐसा न हो मोदी जी का मौन, मतदाता कर दे गौण! 

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