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खर्च घटाकर केन्द्रीय योजनाओं का लाभ लें

locationनई दिल्लीPublished: Jun 16, 2020 04:41:47 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

कोरोना के दौर में राज्यों की अर्थव्यवस्था कठिन दौर से गुजर रही हैं। राज्यों के सामने आ रही चुनौती एक तरह से परीक्षा की घड़ी है। ऐसी चुनौतियों से पार पाना आसान तो नहीं पर नामुमकिन भी नहीं।

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प्रो. सीएस बरला, अर्थशास्त्री

कमोबेश सभी राज्यों को इन दिनों जबर्दस्त संकट का सामना करना पड़ रहा है। आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। एक तरह से राज्यों के सामने बड़ी चुनौती है। इसके लिए जरूरी है कि राज्य अपने प्रशासनिक खर्चों पर अंकुश तो लगाएं ही इसके साथ-साथ आय के संसाधनों का सूझबूझ के साथ इस्तेमाल किया जाए। राजस्थान समेत सभी राज्यों को इसके लिए अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए तत्काल अमल में लाने होंगे। इसके लिए कुछ उपाय इस प्रकार से हो सकते हैं।

तात्कालिक उपाय
विधायकों को दी जाने वाली क्षेत्रीय विकास राशि (2 करोड़ रूपए प्रति विधायक) को बन्द कर दिया जाए। सरकारी फोन तथा गाडिय़ों के पेट्रोल पर किए जाने व्यय की सीमा तय कर दी जाए। अति आवश्यक होने पर ही विदेश यात्रा की अनुमति दी जाए, तथा इकोनॉमी क्लास की ही अनुमति हो। जो अनवरत रूप से घाटे में चल रहे हों ऐसे सरकारी उपक्रमोंंं को तत्काल बन्द कर दें।

2. मध्यकालीन (2 से 4 वर्ष के लिए) उपाय

एमएसएमई इकाइयों में तत्काल अनुकूल वातावरण बनाकर उत्पादन की प्रक्रिया को गति दी जाए जिससे हमारा जीएसटी शेयर बढ़े तथा वित्तीय घाटे में कमी हो। बिजली की छीजत वर्तमान में लगभग 30 प्रतिशत है। इसे 3-4 वर्षों में 20 प्रतिशत लाया जाए। उल्लेखनीय है कि 1.0 प्रतिशत छीजत कम होने पर विद्युत क्षेत्र की आय 120 करोड़ रूपए बढ़ती है। इस उपाय से राज्य सरकार को 1200 करोड़ रूपए की आय हो सकती है।
3. दीर्घकालीन उपाय (4 वर्ष से उपर के लिए)
पर्यटन तथा होटल क्षेत्रों का विकास करके इनसे स्वदेशी तथा विदेशी यात्रियों की संख्या बढ़ें। विदेशी निवेश सहित उपयुक्त नीतियों के माध्यम से बड़े उद्योगों का विकास करें। निर्यातोन्मुख उद्योगों (जैम स्टोन, ज्वैलरी, हस्त कलाओं, संगमरमर, मसालों, बासमती चावल, ग्रेनाइट) को प्रोत्साहन देकर निर्यात बढ़ाए जाएं। परन्तु इस बात का ध्यान रहे कि सरकार के राजस्व व्यय (लगभग 2 लाख करोड़ रूपए) की तुलना में पूंजीगत व्यय 40,000 करोड़ रूपए ही है। पूंजीगत व्यय में कटौती से दीर्घकालीन विकास पर प्रतिकूल प्रभाव होगा।
भारत सरकार का आर्थिक पैकेज:
भारत सरकार ने कोरोना संकट के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने हेतु लगभग 20 लाख करोड़ रूपए के पैकेज की घोषणा की है। अन्य बातों के अतिरिक्त इसमें देश के कृषकों, पशु पालकों तथा सम्बद्ध अन्य वर्गो के लिए अनेक प्रकार की घोषणाएं की गई है। इन क्षेत्रों के विकास की जिम्मेदारी संविधान के अनुसार राज्य सरकारों की है, तथा किसी राज्य को केन्द्र सरकार की घोषणाओं से कितना लाभ मिलता है, यह मूलत: सम्बद्ध राज्य प्रशासन की सूझबूझ तथा प्रस्तुत परियोजनाओं पर निर्भर करेगा। राजस्थान की बात करें तो कुछ विचारणीय बिन्दु ऐसे हैं जिन पर अमल किया जाए तो काफी लाभप्रद हो सकेंगे।
1. औषधीय फसलों का विस्तार
राजस्थान की मिट्टियां सफेद मूसली, अश्वगंधा, ग्वारपाठा, अदरक, लहसुन, बज्रदंती, छोटी दूदी, खूबकला आदि औषधीय पौधों के लिए काफी उपयोगी है। किसी न किसी रूप में कहीं कहीं पर ये पौधे प्रदेश में उगाए भी जाते है। लेकिन राज्य में क्षमता के अनुसार इनका उत्पादन नहीं किया जा रहा है। साथ ही जितना उत्पादन होता है उसका परिनिर्माण (प्रोसेसिंग) राज्य में नहीं होता। न केवल राजस्थान में औषधीय पौधों के क्षेत्रफल को बढ़ाना चाहिए, अपितु इनके उत्पादों की प्रोसेसिंग भी प्रदेश में ही की जानी चाहिए। राजस्थान में रतनजोत (डीजल सीड) के क्षेत्रफल तथा उत्पादन को बढ़ाने की क्षमताओं का भी उपयोग करने की आवश्यकता है।
2. कृषि उत्पादन
इंदिरा गांधी, चम्बल तथा माही जैसी बड़ी सिंचाई परियोजनाओं के फलस्वरूप राजस्थान में रबी फसलों के क्षेत्र तथा उत्पादन में आशातीत वृद्धि हुई है। इनके साथ ही मसालों (जीरा, धनिया, मिर्च) का उत्पादन भी काफी बढ़ा है। यह भी संतोष की बात है कि अंगूर, अमरूद, टमाटर, सीताफल, प्याज आदि की उपलब्धता भी गत दशकों में काफी बढ़ी है। सरसों के उत्पादन में भी राजस्थान शीर्ष पर पहुंच गया है। आश्चर्य की बात है कि प्रदेश में उत्पन्न धनिया व जीरे का अधिकांश भाग गुजरात चला जाता है, जिस कारण मूल्य संवद्र्धन का लाभ प्रदेश को नहीं मिलता। टमाटर, सीताफल, अमरूद का उत्पादन थोड़ा भी अधिक होने पर कृषक इन्हें कौडिय़ों के मोल बेचने को बाध्य हो जाते है।
अब राज्य सरकार का यह दायित्व है कि न केवल मसालों के प्रोसेसिंग हेतु यहां सार्थक नीति बनाए, अपितु फलों के प्रोसेसिंग हेतु उद्योग प्रदेश में ही स्थापित करे ताकि प्रदेश के लोगों को रोजगार तथा उत्पादकों को फसलों के लिए उचित मूल्य प्राप्त हो। कुछ वर्ष पूर्व तक राजस्थान (विशेष रूप से कोटा, बूंदी व बासं जिले) का बासमती चावल पर्याप्त मात्रा में निर्यात किया जाता था। हाल के वर्षों में इसमें गिरावट आने से व्यापारियों तथा किसानों को पर्याप्त क्षति हुई है। इस दिशा में से सरकार को उपयुक्त नीति बनानी चाहिए।
पशु पालन तथा दूध
केन्द्रीय वित्त मंत्री द्वारा कृषि हेतु पैकेज की घोषणा के समय इस क्षेत्र के लिए अनेक घोषणाएं की गई। यह एक संतोष की बात है कि राजस्थान में लगभग 1.35 करोड़ दुधारू पशु है (2012 की पशु जनगणना के अनुसार) तथा 2016-17 में यहां 2.1 करोड़ टन दूध का उत्पादन हुआ था जो हमारे प्रदेश की कुल मांग से अधिक था। परन्तु पशु पालन क्षेत्र की प्रमुख समस्याओं का समाधान होने पर इस स्थिति में पर्याप्त सुधार संभव है।
1. दुधारू पशुओं में 87 प्रतिशत देशी गाएं हैं जिनका प्रति इकाई दुग्ध उत्पादन 2 लीटर के लगभग है। आश्चर्य जनक बात यह है कि प्रदश्ेा की विश्व विख्यात नस्लों (राठी व थार पार कर) की हमने पूर्णतया उपेक्षा करके विदेशी (एक्जोटिक) ब्रीड को प्रोत्साहन दिया। यह उल्लेखनीय है कि बीकानेर व बाड़मेर में जहां भी राठी या थारपारकर गाय हैं, प्रतिगाय 20 लीटर प्रतिदिन दूध की प्राप्ति होती है।
2. पशुपालकों के समक्ष प्राय: चारे का अभाव बना रहता है। चारा बैकों की नीति बनी थी, इसके बावजूद संकट के समय पशुपालकों को उचित मूल्य पर चारा नहीं मिलता।
दुखद बात यह है कि राजस्थान के पश्चिमी जिलों में दुधारू पशुओं की संख्या अधिक है। इन जिलों में कुछ दशकों पूर्व विश्व प्रसिद्ध सेवण घास पर्याप्त मात्रा में उत्पन्न होती थी – जो पौष्टिक होने के साथ ही खेतों की मेड़ पर ही उगाई जाती थी। आज यह घास बाड़मेर व जैसलमेर जिलों में लगभग लुप्त हो गई है।
यह उचित प्रतीत होता है कि राज्य सरकार राठी व थार पार कर नस्ल को प्रोत्साहन दे तथा साथ ही सेवण घास का क्षेत्रफल बढ़ाने हेतु आवश्यक कदम उठाए। इन दो उपायों पर अधिक पूंजी निवेश नहीं होगा लेकिन दुग्ध की मात्रा तथा गुणवत्ता में पर्याप्त सुधार होने की अपेक्षा है।
3. दुग्ध-आधारित उत्पादों को बढ़ाना
चूंकि दुग्ध उत्पादन में राजस्थान एक अतिरेक (सरप्लस) वाला प्रदेश है, यह उपयुक्त प्रतीत होता है कि पनीर, क्रीम, पाउडर तथा आईसक्रीम जैसे उत्पादों के लिए मध्यम आकार की औद्योगिक इकाइयां प्रदेश में स्थापित की जाएं, ताकि मूल्य संवद्र्धन का लाभ प्रदेश को मिल सकें।
4. बंजर भूमि तथा सौर ऊर्जा उत्पादन
राजस्थान में प्रति व्यक्ति भूमि की उपलब्धता काफी अधिक है क्योंकि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का हमारे पास 10 प्रतिशत है जबकि जनसंख्या में हमारा अनुपात केवल 5 प्रतिशत है। गत बजट में केन्द्रीय वित्त मंत्री ने देश के किसानों का आह्वान किया था कि वे अतिरिक्त भूमि पर सौर ऊर्जा का प्लांट लगाएं।
यह सर्व विदित है कि लाखों प्रवासी युवा जहां यू.पी., बिहार, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में लाखों की संख्या में हाल ही में लौटे है, राजस्थान में भी बड़ी संख्या में ये लोग अन्य प्रदेशों से लौट चुके हैं। इन युवाओं को प्रदेश की कृषि में हम रोजगार दे पाएंगे, यह कहना कठिन हैं लेकिन गांव की बंजर जमीन पर छोटे-छोटे सौर ऊर्जा प्लांट लगाने से दो लाभ होंगे: 1. सौर ऊर्जा का उत्पादन बढ़ेगा तथा 2. इन श्रमिकों को रोजगार मिलेगा।

लेकिन यह प्रस्ताव केवल इसी शर्त पर सफल होगा कि सरकार युवाओं की आवश्यक मार्गदर्शन उपलब्ध कराए, तथा इनसे प्राप्त सौर ऊर्जा को स्वयं खरीदे। निश्चित तौर पर इन उपायों को अपनाने के बाद राजस्थान की अर्थव्यवस्था उगते सूरज की तरह तेजी से आगे बढऩे लगेगी।
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