जैसे तैसे हमने नींद लेने का प्रयास किया तो इतिहास ने हमारे पेट पर गुदगुदी शुरू कर दी और हार कर हमें जागना पड़ा। खाट पर बैठे- बैठे हमने पूछा- आखिर तुम हमारे पीछे क्यों पड़े हो? ज्यादा तंग किया तो हम तुम्हें बदल देंगे। हम चाहे तो तुझे सीधे की बजाय उल्टा कर सकते हैं।
इतिहास हंस कर बोला- आज तक तुमने मेरे साथ यही तो किया है। जिस ताकतवर का बस चला उसने मुझे उसी रंग में रंग दिया। तुम्हें लगता है कि सिर्फ हार शब्द की जगह जीत लिखने से सब कुछ बदल जाएगा। ऐसा तो मेरे संग हजारों बार हुआ है।
युद्ध में जीते हर क्रूर विजेता ने किया क्या है? उसने ताकत और पैसे के दम पर अपना प्रशस्ति गान करवाया है और उसे किताबों में घुसा दिया। मजे की बात कि जो इंसान अपने आपको दुनिया का सबसे बुद्धिमान जीव समझता है सदियों से उसकी औलादें एक क्रूर तानाशाह द्वारा लिखवाया इतिहास पढ़-पढ़ कर ही सिविल सर्वेन्ट बन जाते हैं।
कसम से इतिहास की यह बात हमें तमाचे की तरह लगी। हमें याद हो गया कि जब हम पेड़ों के लिए प्राण बलिदान करने वालों की अमर नाट्य गाथा लिख रहे थे तो उस सत्य घटना का जिक्र इतिहास की किताबों में नहीं मिला।
हमारे मन की बात जानकर इतिहास ठहाके मार कर हंसा और बोला- अरे मूर्ख! उस वक्त का इतिहास लिखने वाला राजा का दरबारी लेखक था। क्या वह राजा की क्रूरता को लिखकर अपनी चमड़ी खिंचवाना चाहता था क्या? वह तो दमड़ी का गुलाम था।
असली इतिहास तो जनता के गीतों, लोककथाओं और गरीब गरबों के किस्सों में छिपा पड़ा है। तुम तो नया इतिहास लिखकर अपने आकाओं को खुश करना चाहते हो, बस। व्यंग्य राही की कलम से