कश्मीर में राज्यपाल शासन के दौरान तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन के कार्यकाल को इस दृष्टि से याद किया जाता है। उन दिनों आतंकियों के हौसले पस्त हो गए थे और समाजकंटक व अलगाववादी जेलों में बंद थे। सेना, पुलिस और सीमा सुरक्षा बल के जवान पूर्ण रूप से सतर्क थे। लंबे समय बाद सुलग रहे कश्मीर में शांति का दौर आया था। पर्यटकों का आवागमन भयमुक्त और सुरक्षित हो गया था।
सबसे बड़ी जरूरत घाटी में पाकिस्तान की शह पर चलाए जा रहे आतंकी कैम्पों को नष्ट करने की है। अलगाववादियों के ठिकानों का भी पता लगाकर उन्हें जेल की हवा खिलानी होगी। अलगाववादी नेताओं को सुविधाएं देने की जरूरत नहीं है। ऐसे लोग जो हमेशा देश को तोडऩे की बात करें वे किसी भी सूरत में कश्मीर के हितों की चिंता नहीं कर सकते।
बड़ा सवाल कश्मीर में सोशल मीडिया के जरिए आतंक फैलाने की कोशिशों को रोकने का भी है। सोशल मीडिया पर कश्मीर को लेकर जो दुप्प्रचार होता रहा है उस पर भी निगरानी रखनी होगी। पिछले दिनों कश्मीर पुलिस ने ऐसे पांच सोशल मीडिया एकाउंट का पता लगाया है जिसके माध्यम से पाकिस्तान से लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी कश्मीर में आतंक फैलाने की साजिश रच रहे थे।
कश्मीर में माहौल बिगाडऩे में पत्थरबाजों का भी हाथ है। गुमराह हुए युवकों को सही रास्ते पर बातचीत के जरिए लाया जा सकता है। ऐसे युवकों को योग्यता के अनुरूप रोजगार देकर राह भटकने से रोका जा सकता है। जरूरत हो तो स्थानीय बुजुर्गों का भी सहयोग समझाइश में लिया जा सकता है। कश्मीर समस्या को अब और जिन्दा रखना हमारी बड़ी भूल होगी।