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टेस्ट क्रिकेट पर बाजार की मार या हार का भय?

क्रिकेट पर बाजार इतना हावी है कि वह अपनी शर्तों पर इस खेल को चलाना चाहता है

Oct 16, 2017 / 12:53 pm

सुनील शर्मा

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– मनोज जोशी, वरिष्ठ खेल पत्रकार

चार दिनी टेस्ट क्रिकेट प्रस्ताव में क्या आईसीसी में मौजूद दिग्गज क्रिकेटर और उसकी तकनीकी समिति यह भूल गई कि टेस्ट क्रिकेट को ही सम्पूर्ण क्रिकेट कहा जाता है? क्या ऐसे फैसलों से क्रिकेट की यह सम्पूर्णता आहत नहीं होगी?
क्रिकेट पर बाजार इतना हावी है कि वह अपनी शर्तों पर इस खेल को चलाना चाहता है। इसकी अंतरराष्ट्रीय संस्था आईसीसी भी इन दिनों उसके दबाव में लग रही है। उसके मुख्य कार्यकारी डेव रिचर्डसन साबित करने में जुटे हैं कि इस खेल में पैसा केवल भारत से ही नहीं बल्कि अन्य देशों से भी आता है। क्रिकेट के सबसे छोटे प्रारूप की रिकॉर्ड तोड़ कामयाबी ने उन्हें उम्मीद जगाई कि टेस्ट क्रिकेट के दिन कम करके इसे अधिक रोमांचक बनाया जा सकता है। इससे ज्यादा प्रायोजक इस खेल से जुड़ेंगे।
आईसीसी मैचों के ब्रॉडकास्टर शुरू से ही नए के नाम पर टेस्ट क्रिकेट में अहम बदलाव के पक्ष में रहे हैं। जब चार दिवसीय टेस्ट मैच का प्रस्ताव आया तो इससे न सिर्फ ब्रॉडकास्टरों के हित सधते दिखे बल्कि आईसीसी से जुड़े ज्यादातर देशों को भी ये खूब रास आये। ब्रॉडकास्टर के हित इसलिए कि उसे अब अपने सभी स्टाफ सदस्यों को पांच दिन के बजाय चार दिन का भुगतान करना पड़ेगा और जहां पूरी श्रृंखला या खेल सत्र का करार होता है, भविष्य में उनकी भुगतान राशि भी कम हो सकती है जिससे दीर्घावधि में उसकी करोड़ों की बचत होगी। आईसीसी से जुड़े अधिकतर देशों ने ऐसे सम्भावित कदम का इसलिए स्वागत किया क्योंकि खासकर अब भारतीय उपमहाद्वीप में पांचवें दिन की पिच की प्रवृत्ति उनके लिए खलनायक नहीं बनेगी।
रिचर्डसन दक्षिण अफ्रीका के पूर्व विकेटकीपर हैं और वे इस क्षेत्र में अपनी टीम को पिछले वर्षों में आई परेशानियों से भली-भांति वाकिफ हैं। यहां तक कि इंग्लैंड और न्यूजीलैंड के क्रिकेट बोर्डों ने भी नए प्रयोग का समर्थन किया। ये वे देश हैं जिन्हें भारतीय उपमहाद्वीप में आयोजित टेस्ट मैच के पांचवें और अंतिम दिन के विकेट से काफी परेशानी होती है। आईसीसी की मंशा इस बारे में साफ होती तो वह परीक्षण के लिए दक्षिण अफ्रीका और जिम्बाब्वे की टीमों को न चुनती।
वास्तव में इन दोनों अफ्रीकी देशों की लड़ाई क्रिकेट के मैदान पर शेर और मेमने की लड़ाई जैसी है। इनका मैच चार दिन क्या, तीन दिन में ही खत्म हो सकता है। क्या आईसीसी में मौजूद दिग्गज क्रिकेटर और उसकी तकनीकी समिति यह भूल गई है कि टेस्ट क्रिकेट को ही सम्पूर्ण क्रिकेट कहा जाता है? क्या ऐसे फैसलों से यह सम्पूर्णता आहत नहीं होगी? क्या ऐसे फैसलों से टेस्ट क्रिकेट के सबसे अहम पहलू धैर्य यानी टेम्परामेंट को दरकिनार नहीं किया जा रहा? क्या इससे कॉपीबुक स्टाइल के शॉट्स और फ्लाइट जैसी गेंदों की संख्या में कमी नहीं आएगी? जाहिर है भारतीय उपमहाद्वीप की टीमों को इस दिशा में गम्भीरता से आगे आना होगा।

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