scriptआभार! | Thanks - Shri Gulab Kothari | Patrika News

आभार!

Published: Jan 20, 2018 09:36:44 am

Submitted by:

Gulab Kothari

पानी मीठा नहीं होता। किन्तु कषाय-युक्त खाद्य के बाद (आंवला-बबूल) पीने से मीठा लगता है।

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पानी मीठा नहीं होता। किन्तु कषाय-युक्त खाद्य के बाद (आंवला-बबूल) पीने से मीठा लगता है। जीवन के कषाय-मान, माया, लोभ, क्रोध-भी इसीलिए मीठे लगते हैं। वरना सत्ता में मिठास नहीं होती। युगों-युग से यह द्वन्द्व मानव को घेरे रहता आ रहा है। कम से कम भारतीय परम्परागत जीवन शैली में जो संस्कृति का ज्ञान जनमानस में है, वह स्तुत्य है। इसने बड़ी-बड़ी संस्कृतियों के प्रहार सहे हैं, सदियों सहे हैं। फिर भी अपने स्वरूप में जीवित है। तब पांच-दस वर्षों के लिए होने वाले आज के आक्रमण क्या अर्थ रख सकते हैं। ये आक्रमण तो वैसे भी जनता से चुने हुए लाड़लों द्वारा ही किए जाते हैं। बच्चे बिगड़ते भी तो हैं।
राजस्थान पत्रिका सच पूछो तो विपक्ष की भूमिका निभाता है। आज विपक्ष की स्थिति क्या है? तीनों पाए सरकार के सामने आज सीना तानकर कहां खड़े हो पा रहे हैं? हाल ही की उच्चतम न्यायालय की दुर्घटना ने बहुत स्पष्ट कर दिया। जनता का मौन अर्थ पूर्ण है। जनता अपने हित-अहित करने वालों को छान लेती है। उसे सहन करना भी आता है। उसकी आखों पर पट्टी नहीं है। अपने खून-पसीने की कमाई से सरकारों को पालती है। सरकार खा-पीकर मुकर जाती है। जनता पर ही वार करती रहती है।
मैं तो सदा जनता का ऋणी रहूंगा। सदा आभार मानूंगा। जितना विश्वास जनता मुझे लौटाती है, वह पत्रिका के संघर्ष की शक्ति है। चाहे अमृतम् जलम् हो, एक मुट्ठी अनाज हो, अकालादि प्राकृतिक आपदाओं मेें भूमिका रही हो अथवा हाल ही ‘काले कानून’ के विरुद्ध का शंखनाद हो। जनता ने सदा ही हमारे कंधे से कंधा मिलाकर जताया है कि, वह हर अभियान में पूर्ण मनोयोग से साथ है। पाठकों की इस शक्ति के कारण ही पत्रिका समय-समय पर कीर्तिमान बनाता रहा है। हम प्रतिदिन शब्दों पर सवार होकर पाठक के हृदय तक पहुंचते हैं। हमारे राधा-कृष्ण की तो यही मूर्ति है। कौन रोक सकता है?
‘काले कानून’ के संघर्ष ने हमें भी कई नए अनुभव कराए। कई मुखौटे सामने आए, कई गुर्राए भी। नुकसान तो भौतिक थे, आत्मा की शक्ति बढ़ी। विशेषकर इसलिए भी कि इस संघर्ष में पाठक पूरी संकल्प शक्ति के साथ हमारे साथ चल रहा है। कल ही राष्ट्रीय स्तर के पाठक सर्वेक्षण के आंकड़े जारी हुए हैं। पत्रिका पाठकों में अच्छी खासी बढ़ोतरी हुई। ऐसा मुझे कार्यालय की सूचना से पता चला। आंकड़ों का अब कोई मोह नहीं रहा मुझे। हां! पाठकों को नमन करना चाहता हूं। अब तक के सभी दुष्प्रचारों को झुठला दिया। हमारा संघर्ष पाठकों का संघर्ष ही है। पाठकों ने इसे स्वीकार किया। इसके लिए आभार! आभार!! आभार!!!
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