scriptयोगी आदित्यनाथ की धरती से पूर्वांचल की राजनीति का रंग | The color of Purvanchal politics from the land of Yogi Adityanath | Patrika News

योगी आदित्यनाथ की धरती से पूर्वांचल की राजनीति का रंग

locationनई दिल्लीPublished: Feb 21, 2019 04:40:25 pm

Submitted by:

Navyavesh Navrahi

– पूर्वांचल की 26 सीटों पर भाजपा को मिलेगी गठबंधन से कड़ी टक्कर, गोरखपुर और बनारस में फ़ंसी प्रतिष्ठा

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योगी आदित्यनाथ की धरती से पूर्वांचल की राजनीति का रंग

गोरखपुर से आवेश तिवारी

गोरखपुर महोत्सव के समापन समारोह में आए उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हालांकि एक बार फिर पूर्वांचल को स्वर्ग बनाने का दावा किया, लेकिन उनके चेहरे के भाव मंच के सामने पड़ी खाली कुर्सियां को देख निरंतर बदलते रहे। पूर्वांचल की 26 सीटों की राजनीति का गुरुत्व थामे गोरखपुर के गोरखधाम मंदिर में भीड़ बढ़ी है। जिले में एम्स समेत 12 हजार करोड़ की
विकास परियोजनाओं को पूरा करने के लिए एजेंसियां दिन-रात एक कर रही हैं, उर्वरक कारखाना भी जल्द ही खुलेगा, तालाबों को सजाया जा रहा है, बाहरी इलाकों में सडक़ें चौड़ी हो रही हैं, लोग कहते हैं कि गुंडई कम हुई है।
कानून-व्यवस्था की स्थिति बेहतर है और पुलिस की वसूली फिलहाल नजर नहीं आती, दीवारों पर पेंटिंग्स नजर आ रही हंै, पर गोरखपुर शहर वहीं खड़ा हैं जहां वो पांच साल पहले खड़ा था। वही भीड़-भाड़, जाम, धक्का-मुक्की, गंदगी का साम्राज्य और वही नौनिहालों को बेमौत मारता इंसेफेलाइटिस। अफ सोस यह हाल केवल गोरखपुर का नहीं, बल्कि पूर्वांचल के उन सभी 17 जिलों का है जिसने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बनारस का सांसद बनाया और फिर गोरखनाथ मंदिर के महंत योगी आदित्यनाथ को बतौर मुख्यमंत्री पाया। पूर्वांचल के
विकास की गाड़ी कितनी तेज चल रही है इसका अंदाजा प्रधानमंत्री मोदी की संसदीय सीट से सीएम योगी के गोरखपुर को जोडऩे वाली सडक़ की दुर्दशा से लगाया जा सकता है। लगभग एक दशक से बदहाली का शिकार यह सडक़ प्रदेश की सर्वाधिक कुख्यात सडक़ साबित हुई है। यह हाल तब है जब योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद खाली हुई उनकी संसदीय सीट पर समाजवादी पार्टी के प्रवीण निषाद धामकेदार तरीके से जीत जाते हैं।
पूर्वांचल में गठबंधन का सबसे ज्यादा असर

गठबंधन के ऐलान का सबसे ज्यादा असर पूर्वांचल की 26 सीटों पर पड़ सकता है। यह वही सीटें हैं जिनमें 2014 में आजमगढ़ को छोड़ शेष सभी 25 सीटों पर भाजपा जीती थी। आजमगढ़ की सीट सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के पास रही। इस बार संभावना है कि अखिलेश आजमगढ़ से किसी और को उतारें, मुलायम मैनपुरी से लड़ें। लेकिन इक्का-दुक्का सीटों को छोड़ दें तो यह तय माना जा रहा है कि भाजपा अपने पुराने प्रत्याशियों को दोहराएगी। वहीं सपा, बसपा गठबंधन कुछ दिनो में अलग-अलग सीटों में अपनी ताकत के हिसाब से उम्मीदवारों का चुनाव करेंगे। राजनीतिक विश्लेषक एके लारी कहते हैं कि कांग्रेस का गठबंधन में शामिल न होना भाजपा की मुश्किलें बढ़ाएगा। वे कहते हैं कि इस गठबंधन से यह तय हो गया है कि पिछड़ों, दलितों के वोटों में विभाजन अगड़े वोटरों की तुलना में कम होगा, ऐसा हुआ तो कांग्रेस जिन सीटों पर उम्मीदवार खड़े करेगी वो सीधे भाजपा के उम्मीदवार को नुक सान पहुंचाएगा। गोरखधाम मंदिर के ठीक बाहर बने एक पंडाल में खड़े प्रवीण पांडे कहते हैं सपा-बसपा गठबंधन का असर हम गोरखपुर उपचुनाव में देख चुके हैं। भाजपा को अब हर संसदीय सीट पर अपनी रणनीति बदलनी होगी। चुनाव से ठीक पहले भाजपा के गठबंधन के साथी उससे नाराज हैं। अपना दल की अनुप्रिया पटेल और योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त भासपा के मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं, वे कभी भी साथ छोड़ सकते हैं।
अपनों की भीतरघात का भी डर

भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती गोरखपुर सीट ही है। इस सीट को बचाना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है। गोरखपुर से सटी बांसगांव सीट से भाजपा के कमलेश पासवान सांसद है जिनके पिता ओमप्रकाश पासवान और योगी आदित्यनाथ में हमेशा ठनी रही। चुनाव से ठीक पहले बांसगांव की फिजा बदली हुई है। आजकल बांसगांव में यह पोस्टर चहुंओर देखने को मिलता है जिस पर लिखा है कि योगी, मोदी से बैर नहीं, कमलेश, विमलेश तेरी खैर नहीं। कमलेश के भाई विमलेश भाजपा से विधायक हैं। कुशीनगर की जनता कांग्रेस के अपने पूर्व सांसद आरपीएन सिंह को फिर से याद कर रही है, लेकिन कहा यह जा रहा है कि यदि सपा बांसगाव से बालेश्वर यादव को खड़ा करती है तो उन्हें हरा पाना भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए मुश्किल होगा, महाराजगंज में भाजपा के पंकज चौधरी के लिए लड़ाई आसान हो सकती है क्योंकि उनके सामने टक्कर को कोई दूसरा नजर नहीं आता।
संत कबीर नगर में भाजपा के शरत त्रिपाठी के पास पिता रमापति त्रिपाठी की बनाई जमीन है। बनारस में यदि मोदी फिर चुनाव लड़ते हैं तो मुमकिन है कि इस बार सपा-बसपा गठबंधन की घेराबंदी ज्यादा होगी। यह भी संभव है कि बनारस सीट पर कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल मिलकर जंग लडं़े। सोनभद्र, मिर्जापुर, चंदौली में भाजपा का मुकाबला एंटी इनकंबेंसी के साथ जातीय समीकरणों से होना है। देवरिया से कलराज मिश्र की जगह नया प्रत्याशी लड़ाने की सुगबुगाहट है। मऊ से हरिनारायण राजभर के लिए इस बार लड़ाई पहले से मुश्किल होगी। इलाहाबाद से सांसद श्याम चरण गुप्ता पार्टी विरोधी अपने बयानों की वजह से भाजपा के लिए पहले ही किरकिरी करते रहे हैं। उनका टिकट कट सकता है।
पूर्वांचल का हर जिला सैफई जैसा चाहता है मतदाता

सरकार के लिए पांच साल का वक्त कम नहीं होता है। यह नहीं भूलना चाहिए कि पूर्वांचल की 26 लोकसभा सीटों से देश को प्रधानमंत्री के साथ तीन मंत्री मिले हैं। वहीं राज्य सरकार में सीएम और डिप्टी सीएम के अलावा 15 मंत्री पूर्वांचल से ही हैं, लेकिन कमबख्त दिन हैं कि बदलने का नाम नही लेते। रश्मि सिंह बनारस से गोरखपुर आई हैं। हम पूछते हैं कि कितना बदला है बनारस मोदी जी के कार्यकाल में? वो सहजता से कहती हैं द्ग घाट बेहतर हुए हैं, बाबतपुर से संदहा तक 16 किमी की रिंगरोड बनी है, लेकिन बनारस शहर की सडक़ों, मंदिरों और गंगा का हाल ज्यों का त्यों है। गोरखपुर के सौरभ कहते हैं कि गोरखपुर में हर आदमी चाहता है कि योगी आदित्यनाथ जी गोरखपुर को सैफई बना दें लेकिन यह संभव होता नहीं दिखाई देता।
शशांक शुक्ला एक्टिविस्ट हैं, मोदी सरकार के कामकाज को नजदीक से देख रहे हैं। वे कहते हैं द्ग ऐसा नहीं है कि पैसे की कमी है, बजट है लेकिन काम नहीं हो रहा। बनारस के ही अनिल यादव कहते हैं कि काम हो तो हो कैसे? बनारस, गोरखपुर, इलाहाबाद का विकास, दिल्ली, मुंबई के तर्ज पर नहीं हो सकता। इन शहरों का विकास यहां की तासीर के आधार पर ही करना होगा। ऐसा नहीं है कि पूर्वांचल का विकास नहीं हुआ है, पर यह विकास वोट में तब्दील हो पाएगा फिलहाल कहना मुश्किल है। मनोज
सिन्हा ने ट्रेनों के मामले में गाजीपुर को समृद्ध किया है, पर सडक़, बिजली, पानी समेत तमाम बुनियादी सुविधाओं के मामले में अभी जिला काफी पीछे है। देवरिया सांसद कलराज मिश्र के प्रयासों से मेडिकल कॉलेज अस्तित्व में आया, पर हरियाणा प्रभारी बनने के बाद वे कम समय दे पा रहे हैं। भाजपा के अन्य सांसदों का रिपोर्ट कार्ड कोई खास अच्छा नहीं है। मोदी-योगी की जय जयकार करने वाली जनता भी सांसदों के कामकाज को लेकर नाखुश है ।
जनता की उम्मीदों का पिटारा

उत्तरप्रदेश के पश्चिम में इटावा से पूरब के गोरखपुर तक किसानों, ग्रामीणों के दर्द एक से हैं। नोटबंदी का दंश किसान अब तक नहीं भूले हैं। फसल और खाद के संकट के साथ-साथ कर्जदारी उन्हें लगातार बेदम कर रही है। संत कबीर नगर चुनापाड़ी के अर्जुन 12 बीघा के काश्तकार हैं, कहते हैं कि हमारे गांव में न सडक़ है, न खड़ंजा। खेती-किसानी पशु तबाह कर रहे हैं। खाद भी समय से नहीं मिल रही। गोरखपुर शहर के लोग मानते हैं कि शहर को वीर बहादुर सिंह ने बहुत कुछ दिया, इसे योगी भी मानते हैं। हुमायंूगंज के फहीम कहते हैं गोरखपुर को अब शून्य से शुरुआत करनी होगी।
पूर्वांचल के सभी शहरों में ट्रैफिक बड़ी समस्या है। गोरखपुर में एम्स, देवरिया और आजमगढ़ में मेडिकल कॉलेज से लोगों की बहुत अपेक्षाएं हैं तो बनारस में बीएचयू अस्पताल को अपग्रेड किया जा रहा है। लेकिन जनता को और चाहिए, ज्यादा चाहिए, जल्दी चाहिए ।
इंसेफेलाइटिस से 260 मौतें

केवल इत्तेफाक नहीं है कि बनारस, गोरखपुर, इलाहाबाद के मुस्लिम बहुल इलाकों में गंदगी का साम्राज्य है। गोरखनाथ मंदिर के दोनों तरफ रसूलपुर और हुमायूंगंज नाम के दो मोहल्ले हैं, ये मोहल्ले गंदगी के ढेर पर बैठे हैं। इस साल भी गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में इंसेफेलाइटिस से 260 से ज्यादा मौतें हुई हैं।
जब आप इन मोहल्लों में फैली गंदगी को देखेंगे तो आपको असल वजह समझ में आएगी, कमोबेश यही हाल बनारस के जैतपुरा, कजाकपुरा मोहल्लों का है। हुमायूंगंज के राजकिशोर कहते हैं कि गोरखपुर में हर मोहल्ले में भाजपा के पार्षद हैं, पर हमारा हाल कभी नहीं बदलता। पूर्वांचल में सोनभद्र को छोडक़र अन्य जिलों में उद्योग खत्म हो रहे हैं, बनारस की बंकरी को मंदी और फिर नोटबंदी मार गई।
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