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आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था ने बढ़ाई खाई

locationनई दिल्लीPublished: Apr 28, 2020 05:04:34 pm

Submitted by:

Prashant Jha

पत्रिका के प्रधान सम्पादक गुलाब कोठारी के अग्रलेख ‘पुनर्विचार आवश्यक’ पर पाठकों की प्रतिक्रियाएं

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पत्रिका के प्रधान सम्पादक गुलाब कोठारी के 28 अप्रैल के अंक में प्रकाशित अग्रलेख ‘पुनर्विचार आवश्यक’ पर पत्रिका के पाठकों नेे सक्रियता से प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने पुनर्विचार को सही ठहराते हुए कहा है कि आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था ने जाति प्रथा की बेडिय़ों को और मजबूत किया है तथा जिस सामाजिक व आर्थिक खाई को पाटने के लिए आरक्षण व्यवस्था लागू की गई थी, उसमें अब नई तरह की समस्या पैदा हो गई है। राजनीतिक दल आरक्षण को खाई पाटने वाला नहीं, बल्कि अपने स्वार्थ के लिए हथियार के रूप में इस्तेमाल करने में लगे हैं।

पाठकों की प्रतिक्रियाएं विस्तार से:-

जाति प्रथा की बेड़ियां और मजबूत हुईं

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आरक्षण ने जाति प्रथा को और मजबूत किया है। पत्रिका के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी के लेख पर गौर किया जाना चाहिए, क्योंकि हकीकत यही है कि आरक्षण का लाभ उन लोगों को नहीं मिल रहा है जिन्हें इसकी मूल आवश्यकता है। जाति का लाभ उठाकर समृद्ध समुदाय आरक्षण का लाभ दे रहा है। एनपी तिवारी, वरिष्ठ नागरिक, सिंगरौली

राजनीतिक हथियार बना आरक्षण

कोठारी ने अपनी दमदार लेखनी से उस विषय पर तथ्यपरक सवाल उठाए हैं जिनकी चर्चा तक करने से अब परहेज किया जाने लगा है। आरक्षण पूरी तरह से अब राजनीतिक हथियार बन चुका है। इसमें बदलाव की बात तो दूर सत्ता करने वाले दल तक समीक्षा तक नहीं चाहते। हरप्रसाद शर्मा, पूर्व शिक्षक, सतना

सामाजिक व आर्थिक खाई नहीं पटी

जिस सामाजिक और आर्थिक खाई को पाटने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई थी, अब उसमें उसी तरह की नई समस्या पैदा हो गई है। समीक्षा से यह तो पता चलेगा ही कि अब आरक्षण की किसे जरूरत है और किसे नहीं। गुलाब कोठारी ने ऐसा मुद्दा छेड़ा है जिस पर सत्ता में बैठी सरकारें आंख मूंदे रहती हैं। श्रवण कुमार तिवारी, निजी शिक्षक और लेखक, सतना

आर्थिक आधार पर ही आरक्षण पर बात

अब जाति के आधार पर आरक्षण की नहीं बल्कि आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात होनी चाहिए। वर्षों से जाति आधारित आरक्षण मिलने के कारण कुछ लोग ही इसका लाभ ले रहे हैं। समाज के गरीब शोषित वर्ग तक इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। लेकिन आरक्षण मामले में राजनीतिक दल गंभीर नहीं हैं। यह सही है कि आरक्षित वर्ग बड़ा वोट बैंक है। इसलिए न तो राजनीतिक दल इसके मामले में गंभीर हैं और न ही सरकारें इस बारे में खुलकर चर्चा करती हैं। कोठारी ने सही कहा है कि आरक्षण के नाम पर हम लक्ष्य से भटक गए हैं। जो चाहा, कुछ नहीं हुआ। अनचाहा सब हो गया। गरीब को उठाना था, नहीं उठाए, बल्कि गरीबों की संख्या बढ़ी है। मैं तो यही कहूंगा कि इस पर विचार हो कि जातिगत आरक्षण होना चाहिए या नहीं। प्रो. नीरज सिंह, भोपाल

सरकारें करें पुनर्विचार

कोठारी ने सही लिखा है अब वक्त आ गया है सरकारों को यह परीक्षण करना चाहिए कि आरक्षण जिन वर्गों के उत्थान के लिए लागू किया गया था, उन्हें उसका लाभ मिल भी रहा है या नहीं। उन वर्गों के केवल उच्च श्रेणी के लोग ही तो इसका लाभ नहीं उठा रहे हैं। किसी जाति या धर्म के आधार पर आरक्षण बिल्कुल नहीं होना चाहिए। आरक्षण का आधार आर्थिक होना चाहिए ताकि सभी वर्गों के निचले स्तर के लोगों को उसका लाभ मिल सके। सुरेंद्र तिवारी, भोपाल सिटीजन फोरम, भोपाल

विशुद्ध योग्यता हो आरक्षण का आधार

आरक्षण की व्यवाहरिकता और उपयोगिता पर लेख में सरकार को चिंतन करने के लिए बाध्य करने का प्रयास किया गया है। आरक्षण का आधार विशुद्ध रूप से योग्यता होनी चाहिए। योग्य बनाने के लिए सरकार जरूरतमंदों की मदद करे, क्योंकि अयोग्य लोग जब व्यवस्था में बैठ जाते हैं तो इससे राष्ट्र का कौशल प्रभावित होता है। शत्रुघ्न सिंह सिकरवार, जिला सचिव, पूर्व सैनिक संघ, मुरैना

सरकारों की नाकामी

आरक्षण विषय लंबे समय बाद भी विवादित बना रहा है। यह हमारी सरकारों की नाकामी है। कोठारी का चिंतन सत्ता को आईना दिखा रहा है। वहीं आरक्षण की व्यवस्था पुरानी होने की वजह से इसमें वर्तमान आधार पर संशोधन का मार्गदर्शन भी दिया है। जातियों को लेकर हुए विवादों के तारतम्य में देश का आर्थिक नुकसान भी हुआ है। आयोगों की सिफारिशों को कैसे राजनीति स्वार्थ में झोंका जाता है, इसका भी उल्लेेख है। जातियों के भंवर में हमारा युवा भी फंसा हुआ है। यह बेहद चिंतनीय विषय है, जिसे बेबाकी के साथ अभिव्यक्त किया गया है। जातिगत आरक्षण के बारे में इस तरह का आलेख सरकारों को सीख देने वाला है। अम्बरीश रघुवंशी, एडवोकेट, गुना

आपसी वैमनस्यता का कारण आरक्षण

आरक्षण समाज में सबसे बड़े विवाद और आपसी वैमनस्यता का कारण बना हुआ है। अब समय है कि आरक्षण धर्म व जाति को देखकर नहीं, बल्कि व्यक्ति की आर्थिक दशा को देखकर मिले। कोठारी का लेख बेहद सारगर्भित और सामयिक है। सरकार को आरक्षण पर पुन: विचार करने की जरूरत है। देवेश आर्य, सेवानिवृत्त अधिकारी, एसएटीआई, विदिशा

मूल उद्देश्य से भटकी व्यवस्था

आरक्षण की व्यवस्था अपने मूल उद्देश्य से भटक गई है। सरकारें भी अपने लाभ के लिए इसका उपयोग करती रहती हैं। इसी का नतीजा रहा है कुछ समय पहले हरियाणा में हुआ जाट आंदोलन। यदि समय रहते इस तरफ ध्यान नहीं दिया गया तो और भी आंदोलन हो सकते हैं। समय-समय पर इसकी समीक्षा होनी चाहिए कि इसका लाभ जरूरतमंद को मिल रहा है कि नहीं।
संतोष जैन, जैन कंस्ट्रक्शन, होशंगाबाद

आरक्षण ने सभी को बांट दिया

देश में आरक्षण व्यवस्था ने जाति, धर्म, संप्रदाय को विभिन्न हिस्सों में बांट दिया है। पहले हिंदू मुस्लिम दो संप्रदाय हो गए तो अब हिंदुओं को भी सवर्ण एवं गरीब में बांट दिया गया है। सरकारों में अपनी कुर्सी बचाने के लिए 70 सालों से आरक्षण के पहलुओं पर एवं चिंताओं पर कभी ध्यान नहीं दिया गया। कोठारी ने इस मुद्दे को बहुत ही गंभीरता के साथ रखा है। प्रो. शोभना खरे, सेवानिवृत्त प्रोफेसर, जबलपुर

गंभीर मुद्दा

कोठारी ने आज जो मुद्दा उठाया है वो वाकई बहुत ही गम्भीर है। इस संबंध में अनारक्षित जाति वालों ने कई बार इस पर चिंता व्यक्त की है। अब सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर टिप्पणी की है। मेरा मत ये भी था कि नई जातियों को जोडऩे से पहले पुरानी उन जातियों का आरक्षण या तो कम किया जाना चाहिए था या जहां संतृप्ति की स्थिति आ चुकी हो उसे पूर्णत: बन्द किया जाना चाहिए था। वैसे आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग भी बहुत जोर-शोर से उठी थी, लेकिन मामला चुनावी राजनीति के कारण दबा हुआ है।

अशोक मिज़ाज बद्र, शायर, सागर

आरक्षण को समाप्त करना होगा
पत्रिका में आज गुलाब कोठारी का आलेख ” पुनर्विचार आवश्यक ” दिल को छू गया । यह लेख आरक्षण विषय पर समग्र,सटीक व अत्यंत प्रेरणादायी है। आरक्षण ने देश को जातियों में बांट दिया है, देश की गुणवत्ता को कमजोर कर दिया है । आज समस्त समाज को देश हित में आरक्षण को समाप्त करना होगा, और इसे यदि रखा भी जाए तो समीक्षा आवश्यक है. अर्थात आरक्षण जाति के आधार पर न होकर आर्थिक आधार पर हो और वो भी नौकरियों में नहीं बल्कि पढ़ाई लिखाई में मदद तक सीमित हो तभी देश का सच्चा विकास संभव है ।
पूरण सिंह राजावत , जयपुर ।
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वास्तविक हकदार भी वंचित
पत्रिका में गुलाब कोठारी का विश्लेषणात्मक लेख सारगर्भित व आरक्षण की को बेपर्दा की विसंगतियों को उजागर करने वाला है। वास्तव में आज आरक्षण जाति आधारित हो गया है. इसमें योग्यता को ताक पर रख दिया गया है आरक्षित जातियों में भी वास्तविक हकदार आज भी इसके लाभ से वंचित है | इसकी वर्तमान परिप्रेक्ष्य में समीक्षा आवश्यक है |
— प्रेम शर्मा रजवास, टोंक
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जीवन में एक बार ही मिले आरक्षण
अग्रलेख “पुनर्विचार आवश्यक”में प्रस्तुत विचार बेहद प्रासंगिक हैं। जातिप्रथा विरोधी भी आज घोर जातिवादी हो गए हैं। संविधान की अस्थाई व्यवस्था को संबधितों ने मौलिक हक समझ लिया हैं। अब आरक्षित वर्गों के अत्यंत गरीब, जिन्होंने जीवन में कभी लाभ नहीं लिया उनको आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। वह भी जीवन में एकबार, नियुक्ति में ले या पदोन्नति में। संसद व विधानमंडलों की सदस्यता में भी यह शर्त हो।
– राधेश्याम ताम्बटकर वाया इ -मेल
सत्ता में बने रहने का ग्लूकोज
आरक्षण सत्ता में बने रहने का ग्लूकोज है। सभी दल मख्खी के इस छत्ते से शहद पाना चाहते है। जो भी इन मक्खियों को उड़ाने की कोशिश करेगा वो सत्ता से बाहर होने का खतरा मोल क्यों ले। सरकार मौन ही नहीं है, कान में रुई डाल रखी है। गांवों में देखते है घर के अन्दर कृषि के सब आधुनिक उपकरण और लग्जरी गाड़ी खड़ी है लेकिन दरवाजे पर लिखा रहता है बीपीएल। इस व्यवस्था के जिम्मेदार भी सरकारी मुलाजिम ही है। सब शहद खाने में लगे हैं पुनर्विचार कौन करेगा।
– सुरेन्द्र कुमार राजपुरोहित, बीकानेर

जगाने का प्रयास

आज की पत्रिका में गुलाब कोठारी ने आरक्षण को लेकर जो बिंदु उठाए हैं वह बेहद विचारणीय हैं ।
ऐसे समय में उन्होंने विधायिका एवं न्यायपालिका को जगाने का प्रयास किया है, वर्तमान में जहां पर भी आरक्षण लागू है उन सब जगहों पर पहले क्रीमीलेयर का सिद्धांत लागू हो, उसके पश्चात अगली कड़ी में आरक्षण को समाप्त किए जाने पर विचार करना होगा। अन्यथा यह क्रीमी लेयर वाले ही इतना जोर से शोर मचाते हैं कि सारी बात दब के रह जाती है ।
पवन काला, नागौर
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शिक्षा प्राप्ति के अवसरों तक ही सीमित रहे
आरक्षण जाति के आधार पर ना होकर अपितु परिवार की आर्थिक स्थिति के आधार पर हो तो ही यह सही मायनों में संविधान की अपेक्षा के अनुरूप होगा। आरक्षण का लाभ शिक्षा प्राप्ति के अवसरों तक ही सीमित रहे किसी प्रतियोगी परीक्षा में इस आरक्षण का लाभ ना दिया जाए। इससे समाज को जो हानि हो रही है उसके अत्यंत दुष्परिणाम अगले 10 15 वर्षों में और ज्यादा सामने आएंगे। समाज को ऐसे चिकित्सक भी नहीं चाहिए जिनके सिर्फ आरक्षण के आधार पर ही किसी मेडिकल कॉलेज में दाखिला हुआ हो। एक तरफ हम भारत को चीन से भी आगे ले जाना चाहते हैं और दूसरी तरफ हम अभी भी आरक्षण के जाल में फंसे नजर आते हैं।
डॉ विजय शर्मा, सहायक आचार्य बीकानेर
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तार्किक मुद्दा उठाया

पत्रिका में प्रकाशित गुलाब कोठारी के अग्रलेख में आरक्षण को लेकर बहुत ही अच्छा ओर तार्किक मुद्दा उठाया है। आज लोग इस मुद्दे को उठाना ही नही चाहते। ओर अगर कोई इसको उठता भी है तो सामजिक डर और घृणा के कारण उठा नही पाता , सब हो सकता पर इक्छा शक्ति किसी मे नही है।अजय गोस्वामी – वाया ईमेल
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वास्तविक पिछड़ों का मिले लाभ
वास्तव में आज आरक्षण जाति आधारित हो गया है और योग्यता को ताक पर रख दिया गया है.. विभिन्न सरकारी नौकरियों में आरक्षित कोटे की सीटे भरने के लिये ऋणात्मक अंक लाने वाले परीक्षार्थियों का चयन कर लिया जाता है और सवर्णो वर्ग का 70 प्रतिशत अंक लाकर भी असफल सिद्ध हो जाता है | अयोग्य अधिकारी, अभियंता, चिकित्सक, शिक्षक क्या आरक्षण की बैशाखी के सहारे नौकरी प्राप्त करके देश का गुणात्मक विकास कर सकते है? कदापि नहीं |वास्तव में आरक्षित जातियों में भी वास्तविक हकदार आज भी इसके लाभ से वँचित है |किसी भी आरक्षित जाति का सक्षम व्यक्ति आरक्षण के लाभों से भावी पीढ़ी व स्वयं की पदोन्नति में वँचित किया जाना चाहिए, तभी अन्य वास्तविक पिछडो को लाभ मिलेगा व वह मुख्यधारा में आ सकेगा |
– आशीष, वाया ईमेल
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शोषित वर्ग की भी सोचें
आरक्षण पर पुनर्विचार होना चाहिए यह आवश्यक है. परंतु दशकों के शोषण के परिणाम स्वरूप उपजी सामाजिक व्यवस्था से शोषित वर्ग को निकालना होगा। इसका कहीं आपने जिक्र नहीं किया। आरक्षण की वर्तमान स्थिति पर आंकड़े आपने नहीं बताए। आरक्षण से कितने आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को लाभ हुआ इसका भी कोई आंकड़ा नहीं दिया। क्या इससे आरक्षण के लाभार्थियों जानकारी मिलती है या इसका तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है। आरक्षण में सवर्ण और अन्य जातिगत वर्गों में शिष्टता का भाव भी यह खाई उत्पन्न कर रहा है ना की आरक्षण से उपजी स्थिति।
धीरज कुमार- वाया ईमेल
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वोटो की राजनीति
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पत्रिका के 28 अप्रेल को “पुर्नविचार आवश्यक” शीर्षक से अग्र लेख पढ़ा, ‘कोरोना’ महामारी के चलते सरकार को वर्तमान स्थिति को देखते हुए कड़े फैसले लेने पड़ रहे है। समय का आकलन से आरक्षण के ऊपर भी पुर्नविचार की जरूरत है हर समाज मे गरीब मिल जायेगे आप ने सही कहा है आत्मा एक है कर्म फलो के कारण योनि भोगनी पड़ती है फिर जाति विशेष से हिन्दुओ को ही बांटा ही है मुस्लिमों से व्यवहार कभी इतना बुरा नही रहा जितना आरक्षित वर्ग से. वोटो की राजनीति जब खत्म होगी तब ही भारत महान बनेगा।
– गोपाल अरोड़ा जोधपुर
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