सरकारी आकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2020-21 की अप्रेल-जून तिमाही में अर्थव्यवस्था में 23.9 फीसदी की अब तक की सबसे बड़ी गिरावट आई है। इस दौरान कृषि को छोड़कर विनिर्माण, निमार्ण और सेवा समेत सभी क्षेत्रों का प्रदर्शन खराब रहा है। सबसे अधिक प्रभाव निर्माण उद्योग पर पड़ा है जो 50 फीसदी से भी अधिक गिरा है। राष्ट्रीय सांख्यिकीं (एनएसओ) के आंकड़ो के अनुसार सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में इससे पूर्व 2019-20 की इसी तिमाही में 5.2 की वृद्धि हुई थी। सरकार ने विचार नहीं किया, लम्बी लाॅक डाउन का अर्थव्यवस्था, उत्पादन, रोजगार में मांग पर कैसा प्रभाव पड़ेगा व बगैर तैयारी व आवश्यक कदम उठाये 25 मार्च से 68 दिन का पूरे देश में पूर्ण बन्दी की इसका असर अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों पर पड़ा। विनिर्माण क्षेत्र में सकल मूल्यसंवर्धन (जीवीए) में 2020-21 की पहली तिमाही में 39.3 फीसदी की गिरावट हुई जबकी एक साल पहले इसी तिमाही में इसमें 3 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। निर्माण क्षेत्र में जीवीए में 50.3 की गिरावट आई, खनन क्षेत्र में उत्पादन 23.3 प्रतिशत गिरावट आई। बिजली, गैस, जल आपूर्ति, उपयोगी सेवा क्षेत्र में सात फीसदी गिरावट आई जबकि पूर्व वर्ष में 8.8 की वृद्धि हुई थी।
व्यापार, होटल, परिवहन, संचार और प्रसारण से जुड़ी सेवाओं में 47 प्रतिशत की गिरावट आई। लोकप्रशासन, रक्षा व अन्य सेवाओ मंें 10 प्रतिशत कि गिरावट आई। देश के आठ बुनियादी ढ़ाचों क्षेत्र के उद्योगों में इस्पात एवं रिफाइनरी उत्पादन में आई भारी गिरावट से जुलाई में उत्पादन में 9.6 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। लगातार पांच माह से, प्रत्येक क्षेत्र में गिरावटबढ़ रही है।
केन्द्र सरकार का राजकोषीय घाटा जुलाई में ही वार्षिक बजट अनुमान से उपरनिकल गया है। राजकोषीय घाटा वार्षिक अनुमान की तुलना में 103.1 फीसदीयानि 8.21 लाख करोड़ तक पहंुच गया है। खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर जुलाई में 6.38 फीसदी रही, जिसके आधार पर गेेहूं आटा, सरसों तेल, दूध, हरि सब्जियां, बस का किराया, पेट्रोल, सिलाई शुल्क आदि के सूचकांक में बढ़ोतरी हई है। लाॅकडाउन में कामवाली बाई का काम छूट गया, ठेकेदारों ने मजदूर भगा दिये, सेठों ने सेल्समैनों को हटा दिया, पूरे अंसगठित क्षेत्र की दुर्दशा हो गई। रोज कुआं खोदकर पानी पीने वालों की संख्या करीब 40 करोड़ हैं। 2 करोड़ वेतन भोगी बेरोजगार हुए। 10 करोड़ रोजी-रोटी कमाने वाले गांव से शहर आए।
तेल, साबुन, सिन्दूर, कास्मेटिक आदि कि बिक्री नहीं होती। किसानों को उपज में लाभ कम हो गया। चीन 3.2 प्रतिशत जीडीपी विकास दर के झटके से निकल गया। भारत नये आर्थिक भवर में फस गया। लाॅकडाउन खुलने के बाद स्थितियां बद से बदतर हो गई। मजदूरो का पेशा बदलने पर भी राहत नहीं मिली।
पैट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने से टैक्सी उद्योग भी खत्म हो गया। अन्र्तराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार इसमें कोई विवाद नहीं है कि भारत में गरीबी बढे़गी। नेशनल संेपल सर्वे के अनुसार 2017-18 में देश की 21.2 प्रतिशत यानि 27 करोड़ लोग गरीबी की सीमा रेखा के नीचे रहते थे। नवीन गणना के अनुसार 7.1 करोड़ लोग कोविड-19 के झटके से गरीब हो गये। भारत में गरीबी की दर 46.3 प्रतिशत हो गई, 35.4 करोड़ गरीब बढ़ गये। 2011-12 के मुकाबले 62.3 करोड़ हो जायेंगे।
2012 के बाद बेरोजगारी व घरेलू कर्ज में वृद्धि हुई है, न्यूनतम जीवन स्तर बनाए रखना भी मुश्किल हो गया है। हाल की घोषित योजनाओं का लक्ष्य गरीबों की समस्या सुलझाने से अधिक, वोट जुटाने का है। 2017-18 में 3 करोड़ या 6.81 प्रतिशत श्रमिक शक्ति बेरोजगार थी। 2020-21 में आर्थिक हालात और बिगड़ जायगा। बेरोजगारों की संख्या प्रधानमंत्री सलाहकार परिषद के अनुसार ही 4 से 5 करोड़ तक बढ़ जायेंगे। आबादी के सबसे गरीब तबके की हालत और खराब कर देगी। 2013 के अखिल भारतीय ऋण व सर्वेक्षण के अनुसार 9 करोड़ किसान परिवारों में 51.9 प्रतिशत कर्जदार थे, वह कर्ज उपभोग के लिए था, कृषि के लिए नहीं।
यदि इस वक्त गरीबों को आय की गारंटी नहीं मिलती तो सामाजिक संघर्ष बढ़ जायेगा। लाॅक डाउन के दौरान सर्वेक्षण में शामिल 11,100 प्रवासी श्रमिकों में से 98 प्रतिशत ने बताया उन्हें कोई सहायता नहीं मिली। ग्रामीण क्षेत्रों के आधे, शहरी क्षेत्रों के एक तिहाई श्रमिको को सरकार से नकद हस्तांतरण नहीं मिला। 37 प्रतिशत ने बताया खर्च को चलाने के लिए कर्ज लेना पड़ा रहा है। पढ़ लिखे युवाओं को काम नहीं मिल रहा। नकद स्थानान्तरण की सख्त आवश्यकता है। सरकार डीबीटी के तहत प्रति व्यक्ति दर महिने 312 रूपया देती है तो अधिकांश लोग कोविड-19 से पहले के एमपीसीई के स्तर पर पहुंच सकते है। 10.9 करोड़ या 60-65 प्रतिशत ग्रामीण परिवार ऐसे है जिन्हें न्यूनतम आय गारन्टी के लाभार्थी के रूप में शाामिल किया जायें।