जब लेह शहर की सरगर्मियों को पीछे छोड़ मैं खारदुंगला की ओर बढ़ती हूं तो मेरे तसव्वुर में भी नहीं था कि मुझे आज कुछ ऐसा देखने को मिलेगा जिसका खयाल मुझे कभी खयालों में भी नहीं आया था। जैसे-जैसे शहर पीछे छूटा, आसमान का रंग गहरा और गहरा होता गया। ऐसा चमकीला नीला आकाश कि आंखें चौंधिया जाएं। मेरे पीछे लद्दाख और स्टॉक कांगड़ी की पर्वत मालाएं किसी कैनवस पर उभरी चित्रकारी-सी मालूम देती हैं। इन रास्तों पर इतने मोड़ हैं कि गिनती ही भूल गई। सोच कर आई थी कि याद रखूंगी। ये रास्ते जितने दिलफरेब हैं उतने ही जानलेवा भी हैं। बॉर्डर रोड आर्गेनाइजेशन ने पिछले किसी एक्सीडेंट में चकनाचूर हुई गाड़ी को किसी शो-पीस की तरह सजा कर रखा है ताकि यहां आने वाले भूल न जाएं कि सावधानी हटी दुर्घटना घटी। इन बर्फीले रास्तों पर ये निशानियां ही लोगों को सचेत करती हैं। हालांकि यह अजीब लगता है।
हम बमुश्किल एक घंटे में खारदुंगला दर्रे की चोटी पर पहुंच गए थे। इतनी ऊंचाई पर पहुंच कर दिल और दिमाग दोनों ठिकाने पर नहीं थे। तेज बर्फीली हवाओं ने बाहें फैला कर मेरा स्वागत किया। यह पहाड़ की चोटी पर एक समतल स्थान है जिसके दूसरी ओर ढलान के बाद नुब्रा घाटी आती है। यहां भारतीय सेना के सियाचिन वॉरियर्स का बेस कैंप है। ऊपर खारदुंगला कैफे, एटीएम और एक सोवेनियर शॉप भी मौजूद है। कुछ बौद्ध भिक्षु पताकाएं बांध रहे थे, जिनमें सभी की सलामती की प्रार्थना है। मैंने मन ही मन इन पताकाओं को आंखों से चूमा और वापस लद्दाख का रुख किया। एक अलग तरह का सुख अपने भीतर भर कर अब मैं प्रकृति की भव्यता से तृप्त थी।
(लेखिका फोटोग्राफर, ब्लॉगर, स्टोरीटेलर और देश की पहली सोलो फीमेल ट्रैवलर हैं)