कसम कच्ची-पक्की मय की, हम बड़े राजी हो गए। इसलिए कि नशे का एक कायदा होता है। अगर नशा आपके सामने हैं तो आप उसका सेवन करने को आतुर हो जाएंगे। लेकिन जब असला है ही नहीं तो क्या करेंगे? फडफ़ड़ा कर रह जाएंगे। माननीय कोर्ट ने दारूबाजों के सामने से बोतलें हटा दीं।
पहले जब हम राजमार्गों से गुजरते थे तो चाहे गाड़ी की गति सौ किलोमीटर प्रति घंटा ही क्यों नहीं हो, सामने बड़े-बड़े इश्तिहार नजर आ जाते थे। ठंडी बीयर,अंग्रेजी शराब, देशी शराब का अड्डा। अब आप ही बताइए, ऐसे दिलफरेब विज्ञापन पढ़कर अच्छे-अच्छों के पैर एक्सीलेटर से हटकर ब्रेक पर आ जाते और स्टेयरिंग अपने आप ठेके की तरफ घूम जाता। मानो ठेके पर छम्मकछल्लो बाई का मुजरा चल रहा है।
बहरहाल सरकार ने जब ये आदेश सुने तो उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गर्ई। अफसरों में खलबली मच गई। कोर्ट के एक आदेश से सारी कमाई लुटती नजर आई। फिर क्या था, सरकार ने अपना चिर-परिचित जादू शुरू किया। सड़कों का नाम ही बदल दिया। बधाई हो। शराबियों की तरफ से सरकार का आभार।
वैसे हम एक सुझाव मुफ्त में हमारी सरकार को देना चाहते हैं। क्यों नहीं वह कानून में संशोधन करवा दे और घोषणा कर दे कि आज के बाद शराब को शरबत और दारू को पानी कहा जाएगा।
नाम ही बदल जाएगा तो देशी-अंग्रेजी, कच्ची-पक्की सब कानून के दायरे से बाहर हो जाएंगी। यूं भी देख लो। सरकारों के नाम बदलते हैं, चरित्र नहीं। जनता की सेहत जाए तेल लेने। व्यंग्य राही की कलम से