सभी चिकित्सा पद्धतियों के बीच समन्वय की जरूरत
अब सवाल यह है कि रोगों और महामारियों की बढ़ती चुनौतियां तथा एलोपैथिक दवाओं की सीमा के बीच आम आदमी अपनी सेहत और जान की रक्षा के लिए आखिर किस चिकित्सा पद्धति को अपनाए? महंगी एलोपैथी के बरक्स किफायती होम्योपैथी की तरफ लोगों का झुकाव सहज है, लेकिन सच्चाई यह भी है कि जटिल रोगों की चुनौतियों से निपटने के लिए होम्योपैथी में शिक्षा का स्तर अब भी संतोषजनक नहीं है।
Published: April 07, 2022 08:00:15 pm
ए. के. अरुण
जन स्वास्थ्य वैज्ञानिक महामारियों और रोगों की वैश्विक चुनौतियों ने आम लोगों में दवा और उपचार की चिंता बढ़ा दी है। हाल के कोरोना वायरस संक्रमण के अनुभवों ने चिकित्सा एजेन्सियों को भी डरा दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने वर्ष 2022 में 'हमारी पृथ्वी हमारा स्वास्थ्यÓ को विश्व स्वास्थ्य दिवस की थीम के रूप में चुना है। यानी संदेश स्पष्ट है कि अपनी सेहत की रक्षा के लिए पृथ्वी की सेहत सुधारिये। जाहिर है कि स्वास्थ्य को एकांगी रूप में नहीं देखा जा सकता। इसलिए संकेत समझ लें कि 'पर्यावरण सुधरेगा तो पृथ्वी बचेगी, पृथ्वी बचेगी तभी मनुष्य की सेहत भी सुधरेगी।Ó सन् 1948 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना के बाद सम्भवत: पहली बार पृथ्वी की चिंता करते हुए संगठन ने स्पष्ट कर दिया है कि हम अपने लालच और पापों से पूरी पृथ्वी ग्रह को ही नष्ट कर रहे हैं। ऐसे में मनुष्य के स्वास्थ्य की रक्षा भला कैसे होगी?
विश्व स्वास्थ्य दिवस के बहाने मानव के स्वास्थ्य के साथ-साथ पृथ्वी के स्वास्थ्य की बात करना बेहद जरूरी है। कोरोना काल में ही दुनिया ने देखा कि प्रदूषण से प्रभावित लोगों में संक्रमण की दर बहुत ज्यादा थी और पहले से ही फेफड़े के रोगों से ग्रस्त लोगों की स्थिति दूसरों की अपेक्षा ज्यादा गम्भीर थी। आंकड़ों से साफ है कि ऐसे मरीजों की ज्यादा मृत्यु भी हुई। आंकड़े बताते हैं कि सालाना 13 लाख से ज्यादा मौतों की मुख्य वजह पर्यावरण प्रदूषण है। संगठन की चेतावनी है कि पर्यावरणीय कारणों से विश्व की 90 फीसदी आबादी प्रदूषित हवा श्वास के रूप में लेती है। ऐसे ही प्रदूषण के कारण दुनिया में मच्छर जनित रोगों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। प्रदूषण के कारण जीवन के सभी आवश्यक तत्व जैसे मिट्टी, पानी, हवा आदि प्रदूषित हंै, जो जीवन के लिये गंभीर खतरा है।
विश्व स्वास्थ्य दिवस के महज तीन दिन बाद ही विश्व होम्योपैथी दिवस (10 अप्रेल) भी दुनिया के स्वास्थ्य विशेषज्ञों का ध्यान आकृष्ट कर रहा है। वर्ष 2021 के आंकड़ों के अनुसार दुनिया के 70 देशों में 30 करोड़ से ज्यादा लोग होम्योपैथी की दवाओं से चिकित्सा ले रहे हैं। इनमें सबसे ज्यादा 20 करोड़ लोग तो भारत में हैं। सरकारी रेकॉर्ड में देश में होम्योपैथी के योग्य चिकित्सकों की संख्या 5 लाख से ज्यादा है और गम्भीर पुराने रोगों में स्थाई व हानिरहित उपचार के लिए प्रचलित इस चिकित्सा पद्धति पर करोड़ों लोगों की निर्भरता और उनका विश्वास अटूट है। कोरोना काल में दिल्ली सरकार ने महामारी से बचाव एवं उपचार के लिए होम्योपैथी दवाओं की प्रभाविकता का क्लिीनिकल अध्ययन कराया और इसके उत्साहजनक परिणाम भी सामने आए।
अब सवाल यह है कि रोगों और महामारियों की बढ़ती चुनौतियां तथा एलोपैथिक दवाओं की सीमा के बीच आम आदमी अपनी सेहत और जान की रक्षा के लिए आखिर किस चिकित्सा पद्धति को अपनाए? महंगी एलोपैथी के बरक्स किफायती होम्योपैथी की तरफ लोगों का झुकाव सहज है, लेकिन सच्चाई यह भी है कि जटिल रोगों की चुनौतियों से निपटने के लिए होम्योपैथी में शिक्षा का स्तर अब भी संतोषजनक नहीं है। होम्योपैथी चिकित्सक एवं शिक्षक स्वयं भी गम्भीर नहीं हैं। योग्य होम्योपैथी चिकित्सक के अभाव में गम्भीर रोगों से जूझते लोगों को उपचार कैसे मिल सकता है।
देश और दुनिया की सरकारें विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के समन्वय या आपसी तालमेल की योजना बनाकर दुनिया को स्वास्थ्य, मुकम्मल उपचार एवं बीमारों की सेवा का उपहार दे सकती हैं। चिकित्सा पद्धतियों के समन्वय और होलिस्टिक स्वास्थ्य व्यवस्था आज के समय की बड़ी जरूरत है। क्यों न हम हानिरहित कल्याणकारी स्वास्थ्य व्यवस्था एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए अपने ग्रह पृथ्वी, पर्यावरण एवं सम्पूर्ण मानवता व जीव जन्तु के कल्याण के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य को सम्बोधित एवं संरक्षित करने का संकल्प लें? केवल सरकारों पर यह जिम्मेदारी डालने से बात नहीं बनेगी। मानव के स्वास्थ्य के साथ-साथ पृथ्वी की सेहत को जन आन्दोलन के रूप में देखें, क्योंकि वैसे ही बहुत देर हो चुकी है और सम्पूर्ण मानवता विनाश के कगार पर खड़ी है। जागिए, अब भी वक्त है।

सभी चिकित्सा पद्धतियों के बीच समन्वय की जरूरत
पत्रिका डेली न्यूज़लेटर
अपने इनबॉक्स में दिन की सबसे महत्वपूर्ण समाचार / पोस्ट प्राप्त करें
अगली खबर
