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चिंताजनक है चकाचौंध की राजनीति का नया दौर

– विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा पिछले कई माह से सौरव गांगुली को अपनी टीम में लाने की कोशिश में जुटी है

Mar 06, 2021 / 07:16 am

विकास गुप्ता

चिंताजनक है चकाचौंध की राजनीति का नया दौर

चिंताजनक है चकाचौंध की राजनीति का नया दौर

भारतीय राजनीति के पिछले 73 वर्षों में अपवादों को छोड़ दें, तो राजनीतिक दलों पर पूर्णकालिक राजनेताओं का ही आधिपत्य रहा है। अपने-अपने दलों के लिए ये ही वोट खींचने वाली मशीन रहे। चाहे पं.जवाहर लाल नेहरू हों या लालबहादुर शास्त्री। इंदिरा गांधी व राजीव गांधी हों या फिर अटल बिहारी वाजपेयी। आज के दौर के नरेंद्र मोदी को जोड़ लें, तो बीच के वक्त में अपने-अपने दलों के लिए यही काम सोनिया गांधी, ज्योति बसु, मायावती, ममता बनर्जी और दूसरे राजनेताओं ने किया। एनटी रामाराव, एमजी रामचन्द्रन और जयललिता जैसी शख्सियतें ग्लैमर की दुनिया से राजनीति में तो आईं, लेकिन बाद में उनकी प्राथमिकता राजनीति ही रही।

पूर्णकालिक राजनेताओं में अधिकांश ने सामान्य कार्यकर्ता के रूप में राजनीतिक जीवन की शुरुआत की, लेकिन इन वर्षों में ग्लैमर की दुनिया से राजनीति में आने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। ज्यादातर फिल्मी दुनिया या फिर खेल जगत से होते हैं। ताजा कोशिश पश्चिम बंगाल में दादा यानी सौरव गांगुली को लेकर चल रही है। विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा पिछले कई माह से दादा को अपनी टीम में लाने की कोशिश में जुटी है, लेकिन सौरव शायद तैयार नहीं हैं। हर व्यक्ति का अपना नजरिया होता है। सौरव शायद राजनीति में खुद को अमिताभ और धर्मेन्द्र की श्रेणी में मानते हैं, जो दबाव में आकर इस अखाड़े में कूद तो गए, लेकिन जल्दी ही पीछे हट गए।

राजनीति में आने को लेकर किए सवालों पर उनका यह कहना कि हर आदमी, हर काम के लिए नहीं होता, उनके दृष्टिकोण को साफ दर्शाता है। राजनीति के प्रति उनकी तल्खी इस जवाब में साफ झलकती है कि, ‘मैं एक खिलाड़ी हूं, कृपया अपना प्रश्न क्रिकेट तक सीमित रखिए।Ó निश्चित ही संविधान प्रत्येक नागरिक को चुनाव लडऩे की आजादी देता है। पर यह भी सच है कि राजनीतिक दलों के पूर्णकालिक कार्यकर्ता, ग्लैमर की दुनिया से आने वालों को अपने हितों पर चोट करने वाला मानते हैं। ऐसी ही सोच अन्य दलों से आने वाले मौकापरस्तों के लिए भी होती है। यह किसी एक दल की बात नहीं है। हर दल ऐसा करके उसके परिणाम भी भोगता है।

वोट खींचने के लिए लाए गए ऐसे सेलेब्रिटी हों या फिर मर्जी से राजनीति का सुख भोगने आनी वाले सेलेब्रिटी, सब राजनीतिक दलों में उस नई संस्कृति को जन्म देते हैं, जिससे आज भारतीय राजनीति जूझ रही है। बेहतर हो, राजनीतिक दल फिर तमाम तरह की चकाचौंध से दूर सिद्धांतों की राजनीति की नींव रखें, जिसमें मेहनत करने वाले समर्पित कार्यकर्ता की पूछ हो।

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