scriptविकास दर की डगर पर अनिश्चितता का साया | uncertainty on the path of growth rate | Patrika News

विकास दर की डगर पर अनिश्चितता का साया

locationनई दिल्लीPublished: Jan 20, 2022 11:10:49 pm

Submitted by:

Giriraj Sharma

दावा किया जा रहा है कि 2021-22 तथा 2022-23 के वर्षों में स्थिर मूल्यों पर हमारी वृद्धि दरें क्रमश: 11 प्रतिशत तथा 12.5 प्रतिशत रहेंगी। भारत सरकार के इस आशावादी अनुमान के पीछे चार प्रमुख कारण बताए जा रहे हैं। लेकिन यह सोचना अपरिपक्वता होगी कि पिछले कुछ वर्षों में किए गए सुधारों के कारण हमारी विकास दर अपने आप बढ़ जाएगी तथा हमारे कार्यक्रमों का लाभ समाज के सभी वर्गों को मिल जाएगा। जाहिर है विकास दर को लेकर अनिश्चितता है।

विकास दर की डगर पर अनिश्चितता का साया

विकास दर की डगर पर अनिश्चितता का साया

प्रो. सी.एस. बरला
(कृषि अर्थशास्त्री, विश्व बैंक और योजना आयोग से संबद्ध रह चुके हैं)

दावा किया जा रहा है कि 2021-22 तथा 2022-23 के वर्षों में स्थिर मूल्यों पर हमारी वृद्धि दरें क्रमश: 11 प्रतिशत तथा 12.5 प्रतिशत रहेंगी। भारत सरकार के इस आशावादी अनुमान के पीछे चार प्रमुख कारण बताए जा रहे हैं। पहला, आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि के अच्छे संकेत मिल रहे हैं। दूसरा, टीकाकरण की गति अच्छी है। तीसरा, 2021-22 में हमारी सकल राष्ट्रीय आय की वृद्धि दर 8.5 प्रतिशत तक पहुंच गई है। और चौथा, कुल मिलाकर अमरीका तथा यूरोप में कोरोना की तीसरी लहर को देखते हुए वहां की विकास दर काफी कम हो गई है। यह भी उल्लेखनीय है कि चीन भी कोविड के प्रकोप में उलझ गया है, जिसके कारण उसकी विकास दर 2021-22 की 10.9 प्रतिशत से गिरकर 2021-22 में 9.23 प्रतिशत हो गई है। हो सकता है कि चीन की विकास दर आगामी वर्ष में और कम हो जाए।
जब 1950 में भारत सरकार ने देश के आर्थिक विकास को गति देने के लिए योजना आयोग का गठन किया था, तब दो प्रमुख लक्ष्य रखे गए थे। पहला, योजना आयोग विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों की मदद से देश के दीर्घकालीन विकास के लिए जीडीपी की दीर्घकालीन वृद्धि दर का लक्ष्य निर्धारित करेगा।

दूसरा, सभी क्षेत्रों (सेक्टरों) की परस्पर निर्भरता के लिए योजनाएं बनाई जाएंगी। वस्तुत: हर सेक्टर के इनपुट-आउटपुट को एक इनपुट-आउटपुट मैट्रिक्स से जोड़ा जा सकता है। यह इनपुट-आउटपुट मैट्रिक्स लगभग 100 सेक्टरों के परस्पर संबंधों को दर्शाता था।

आज योजना आयोग की समाप्ति के साथ ही इनपुट-आउटपुट गुणांक महत्त्वहीन हो गए हैं तथा विभिन्न सेक्टरों के परस्पर संबंध भी अर्थहीन हो गए हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि एक सार्थक विकास नीति के लिए इनपुट-आउटपुट गुणांक आवश्यक है। दूसरी बात यह कि गत कुछ वर्षों में हमारी आर्थिक नीतियों में दीर्घकालीन नजरिया गायब लगता है।

हम तदर्थ रूप में अलग-अलग कार्यक्रम बना रहे हैं। उदाहरण के लिए, हमने गांव के लोगों के लिए जन-धन खाते खुलवाए। यदि इन खातों में जमा की जा रही राशि को गांवों में मौजूद कृषि, पशुपालन, कुटीर उद्योगों के लिए वित्त-पोषण से जोड़ दिया जाए, तो प्राप्त राशि का सार्थक तथा इष्टतम उपयोग हो सकता है।

यह भी पढ़ें – भ्रष्टाचार व छुआछूत सबसे बड़ा दंश

तीसरी विसंगति कृषकों व कृषि-इतर लोगों के लिए लागू नीतियों से सम्बद्ध है। हमें उन्हें दी जाने वाली वित्तीय सहायता का उपयोग (छोटे व सीमांत कृषकों के संदर्भ में) प्रौद्योगिकी सुधारों के लिए करना चाहिए। यह नहीं भूलना है कि भारत में 82 प्रतिशत कृषक सीमांत तथा लघु कृषक हैं, जिन्हें छोटी उन्नत मशीनें उपलब्ध करवा कर इन छोटे व सीमांत खेतों में उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है।

अब तक किए गए शोध से ज्ञात होता है कि इन छोटे तथा सीमांत कृषकों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता प्राय: घरेलू उपयोग में ही प्रयुक्त होती है। इनका प्रौद्योगिकी विकास अधिक सार्थक परिणाम दे सकता है।

एक और विसंगति यह कि हमने प्राकृतिक आपदाओं से किसानों को बचाने के लिए किसान फसल बीमा योजना शुरू की। करोड़ों किसानों ने बीमा पॉलिसी ली, लेकिन बीमाकर्ताओं की मानसिकता में किसान के प्रति न्याय की भावना न होकर व्यावसायिक दृष्टिकोण ही प्रमुख रहा है।

बीमाकर्ता प्राय: फसल के ओलावृष्टि, सूखे या अन्य किसी कारण से पूर्णत: नष्ट हो जाने पर भी न्यायसंगत तरीके से क्षतिपूर्ति नहीं देते। यह देखना आवश्यक है कि कृषकों के हितार्थ बनाई जाने वाली नीतियां कृषि-विशेषज्ञ ही बनाएं तथा संकट के समय उनके साथ न्याय हो।

कोविड ने भारतीय उद्योगों की विकास दर को गहरा झटका दिया। आज भी वस्त्र उद्योग, रसायन उद्योग, मोटर वाहन उद्योग और सीमेंट जैसे उद्योगों में वृद्धि का दौर आशानुरूप नहीं हो पा रहा है। रेडीमेड कपड़ों, जूतों आदि निर्यात-आधारित उद्योगों में निर्यात-मांग कम होने के कारण उत्पादन नहीं बढ़ पा रहा है। इन सबके बावजूद दवा बनाने वाली कंपनियां, खाद्य सामग्री बनाने वाली इकाइयों तथा द्रुतगति से उपभोक्ताओं की जरूरत पूरी करने वाले एफएमसीजी उद्योग पूर्व की भांति सक्रिय हो गए हैं।

यह भी पढ़ें – नेतृत्व: ‘अनंत’ खिलाड़ी बनकर खेलें

इन सबके विपरीत कोविड की तीसरी लहर तथा डेल्टा-ओमिक्रॉन के प्रकोप ने होटल व्यवसाय, अतिथि-सत्कार से जुड़ी इकाइयों के गणित को पूरी तरह बिगाड़ दिया है। रही बात कृषि की, तो वहां दिसंबर 2021 से लेकर जनवरी 2022 के बीच बाढ़, बर्फबारी तथा ओलावृष्टि के कारण उत्तरी, मध्य व दक्षिण के अनेक राज्यों में फसलों को भारी क्षति हुई है।

शायद 2022 में कृषि की विकास दर 2 प्रतिशत से अधिक नहीं हो पाएगी। इसी संदर्भ में भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर सी. रंगराजन का एक लेख प्रासंगिक है, जिसमें उन्होंने भारत की विकास दर से सम्बद्ध अनेक चुनौतियों की बात की है।

प्रथम, हमारे निवेश की दर 2019-20 की अपेक्षा 2020-21में कम हुई है। साथ ही घरेलू बचत के अनुपात में भी कमी हुई है। इसी कारण रोजगार का स्तर भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुआ है। द्वितीय, 1991 में लागू किए गए आर्थिक सुधारों के साथ कुछ वर्षों से नए सुधारों के नाम पर खिलवाड़ हो रहा है, जिसके अन्तर्गत लाभ कमा रहे बड़े सरकारी उपक्रमों का निजीकरण किया जा रहा है।

तृतीय, भारत के निर्यातों को अधिक स्पर्धाशील बनाने के लिए प्रयास न होने के कारण हमारी स्पर्धाशीलता चीन, दक्षिण कोरिया तथा मलेशिया से भी कम हो गई है। रंगराजन ने स्पष्ट कहा है कि यह सोचना अपरिपक्वता होगी कि पिछले कुछ वर्षों में किए गए सुधारों के कारण हमारी विकास दर अपने आप बढ़ जाएगी तथा हमारे कार्यक्रमों का लाभ समाज के सभी वर्गों को मिल जाएगा। जाहिर है विकास दर को लेकर अनिश्चितता है।

यह भी पढ़ें – शरीर ही ब्रह्माण्ड : ज्ञान-कर्म-अर्थ हमारे अन्न

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो