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रजत रेखा

राजस्थान, मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के तीनों नए मुख्यमंत्रियों ने पदभार ग्रहण कर लिया। किसान, युवा, महिला, व्यापारी जैसे त्रस्त वर्गों में कुछ बदलाव होने की आस जगी तो है।

Dec 19, 2018 / 02:50 pm

Gulab Kothari

Farmer

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गुलाब कोठारी

राजस्थान, मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के तीनों नए मुख्यमंत्रियों ने पदभार ग्रहण कर लिया। किसान, युवा, महिला, व्यापारी जैसे त्रस्त वर्गों में कुछ बदलाव होने की आस जगी तो है। हालांकि मुख्यमंत्री पद की छीना-झपटी ने बदलाव के उत्साह का सारा वातावरण ठण्डा कर दिया। खुद अपनी कुर्सी के लिए लडऩे वाले जनता के लिए कितना काम करेंगे? फिर भी वोट दिया है तो उम्मीद तो करनी ही पड़ेगी। पहले ही दिन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने किसानों का दो लाख रुपए तक का कर्ज माफ कर दिया।

छत्तीसगढ़ के 16 लाख 65 हजार किसानों की भी नई सरकार ने पहले ही दिन कर्ज माफी कर दी। क्या यह समस्या का अन्त है? किसके सिर पड़ेगा इसका बोझ? नीतियां ऐसी बनें कि किसान को फसल का लाभदायक मूल्य मिले। बीज-खाद की खरीद, खराबे का आकलन, बीमा आदि में होने वाला भ्रष्टाचार इन्हें आत्महत्या करने के लिए प्रेरित न करे। गाय के मरने पर बवाल और किसान के मरने पर मौन? देश की 70 प्रतिशत आबादी किसान है। उसके बिना देश खुशहाल कभी नहीं होगा।

आत्महत्या तो आज बेरोजगार युवा भी कर रहा है। भत्ता उसे नकारा भी बनाएगा और वह इसे चाहता भी नहीं है। यह भ्रष्टाचार के नए मार्ग भी खोलेगा-मनरेगा की तरह। दूसरी ओर चीन का उदाहरण है। हमें आबादी का प्रबन्ध चीन से सीखना चाहिए। कैसे उसने आबादी की शक्ति को विश्व नेतृत्व में बदल दिया है? वहां लोकतंत्र नहीं है। वहां के नीति कार्यक्रम यहां हुबहू लागू तो नहीं किए जा सकते पर उनसे सीखा तो जा सकता है। हमें श्रमशक्ति का उपयोग बढ़ाने के तरीके ढूंढऩे पड़ेंगे। बेरोजगार युवा विकास का शत्रु होता है। खाली दिमाग शैतान का घर।

देश आज अपराधों से त्रस्त है। महिला सुरक्षा का नारा भी चुनावी जुमला बन गया है। बलात्कार और हत्याओं के आंकड़ों पर अट्टहास होते हैं। जनप्रतिनिधियों में दागियों की संख्या शर्मनाक रूप से बढ़ी है। पुलिस में हिम्मत नहीं, इनको छू भी सके। नई सरकारों से आशा है कि वे उन अपराधों में विशेषकर जिनमें राजनेता भी जुड़े हों, जहां महिला अत्याचार का वातावरण हावी हो, जहां बजरी, भूमि, सूदखोरी, नशीले पदार्थों की बिक्री चरम पर हो, तुरन्त कुछ कार्रवाई करें। पुलिस को जागरूक भी करना होगा और सम्बल भी प्रदान करना होगा। अपराधों के पुराने मामलों का निस्तारण करने के लिए न्यायपालिका को भी विश्वास में लेना होगा। सबकी नींद उड़ी हुई है। आज अंधेर नगरी, चौपट राजा है।

यही हाल कार्यपालिका का है। किसी का छोटे से छोटा कार्य भी स्वत: नहीं हो पाता। फिर सिस्टम क्या हुआ। दैनिक कार्यों के लिए तो सुचारू व्यवस्था तुरन्त होनी ही चाहिए। हर कार्य के लिए चक्कर लगाना कहां का सुख है! जैसे दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने ४० प्रकार के कार्य घर बैठे कराने की व्यवस्था की है, यहां हर शहर में क्यों नहीं हो सकती। उससे बड़ी बात पारदर्शिता की है। नौकरशाही का चयन इसी दृष्टि से किया जाए। सरकारें भी पारदर्शिता की गारंटी दे सकें। आज अहंकार शिखर पर है, नागरिक पैंदे में बैठा है।

नई सरकारों से आशा की जाती है कि मंत्रियों तक में नेतृत्व विकास की पहल की जाए। जो २०-२५ सालों से लगातार जीतकर आ रहे हैं, उन्हें भी सत्ता में भागीदारी के अवसर दिए जाएं, ताकि मतदाता आपके नाम से अपमानित तो महसूस नहीं करे। अवसरवादियों को सत्ता सुख देना लोकतंत्र का अपमान ही माना जाएगा। भ्रष्टाचार यहीं से शुरू हो जाता है। छोटे-बड़े सब भ्रष्टाचार से त्रस्त्र हैं। सरकारों को इसके रास्ते तुरन्त बन्द करने के प्रयास करने चाहिएं। भ्रष्टाचार के पुराने मामलों को भी सरकारों को खोलना चाहिए। जनता तो यह करेगी ही करेगी। क्या सरकार बदल जाने से महत्त्वपूर्ण पदों से हट जाना ही भ्रष्टाचार की पर्याप्त सजा है? संकल्प के साथ नए निर्णय नहीं किए गए तो मतदाता अब सहन नहीं करेगा।

राजस्थान भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबा है। धर्म के नाम पर भेदभाव चरम पर है। किसानों को बिजली-पानी, दैनिक सुविधाएं, पशुओं के चारे की व्यवस्था, खेतों की पशुओं से सुरक्षा, अपराधों पर लगाम तुरन्त चाहिए। छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की भूमि अधिग्रहरण के कानून तथा सलवा जुडुम से मुक्ति, कोल ब्लाक्स के मामलों का निपटारा, किसान आन्दोलन से जुड़े मुद्दों का हल, शिक्षा और नौकरी के लिए होने वाले पलायन की रोकथाम, चिकित्सा क्षेत्र में सुधार आदि पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है।

सरकार जनता को उपलब्ध रहे, यह तीनों राज्यों में सर्वत्र लागू हो। मध्यप्रदेश में किसानों और व्यापारियों में असुरक्षा का माहौल है। इंदौर भिन्न-भिन्न माफिया की राजधानी ही बन गया है। सूदखोरी, जुआखोरी, भूमाफिया तथा नाइट क्लबों की रंगरेलियों का बड़ा अड्डा बन चुका है। इनके ही नहीं व्यापमं और रेत खनन माफिया के तार भी अधिकतर ऊपर से ही जुड़े हुए हैं। अनेक नेता भी अपराधों से जुड़े हैं। परिवहन संचालन तक नेताओं के हाथ में हैं।

सबसे बड़ी चिन्ता का विषय राज्यों की अर्थव्यवस्था का है। न किसान राजी, न युवा। न व्यापारी खुश, न महिलाएं चैन से सो सकती हैं। सारी योजनाएं कर्ज के जोर से, फिर भी जनता भूखी! नए उद्योग नदारद, हर साल इन्वेस्टमेंट-मीट के नाम पर नाटक। बाजार में नकदी नहीं, चुनावों में बह रही थी। कैसी अर्थव्यवस्था हुई? नई सरकारों को दलगत राजनीति से उठकर बाहर से सलाहकार लाने चाहिए। गलत नीतियों की समीक्षा हो, उन्हें बन्द किया जाना चाहिए।

पहले तो नागरिकों को विश्वास में लेना पड़ेगा कि उनके धन से खिलवाड़ नहीं होगा, उनकी इज्जत से खिलवाड़ नहीं होगा, देश की संस्कृति से खिलवाड़ नहीं होगा। प्रत्येक निर्णय विवेकपूर्ण, सकारात्मक होगा। अच्छी बात तो यह भी है कि राजस्थान और मध्यप्रदेश में अब विपक्ष भी मजबूत है। उससे भी अपेक्षा है कि वह समय-समय पर सरकारों को कठघरे में खड़ा करेगा। अब तक विपक्ष चारों ओर नदारद दिखाई देता रहा है। सत्तादल और विपक्ष को लोकतंत्र का सम्मान बनाए रखने का संकल्प लेना होगा। दोनों दलों के नेताओं से उम्मीद है कि वे आपसी व्यवहार में सम्मानपूर्वक भाषा का उपयोग करेंगे और पदों की गरिमा बनाकर रखेंगे। पिछली सरकारों की आलोचना करने के स्थान पर वर्तमान हालात में से विकास के मार्ग खोजने होंगे। जनता को साथ रखना होगा। जनता के लिए जीने की सौगंध खा लेनी चाहिए। हमें नए युग की तलाश है। चुनौतियां बहुत हैं। रजत रेखा प्रतिदिन दिखती रहनी चाहिए।

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