जरा सी लापरवाही और...
भारतीय सैन्य एवं सुरक्षा प्रतिष्ठान आए दिनों चर्चाओं में रहने लगे हैं। चाहे पठानकोट एयरबेस पर आतंकियों का घुसकर कोहराम मचाना हो या हमारे सैन्य प्रतिष्ठानों की जानकारी लीक करने वाले जासूसों का पकड़ा जाना

भारतीय सैन्य एवं सुरक्षा प्रतिष्ठान आए दिनों चर्चाओं में रहने लगे हैं। चाहे पठानकोट एयरबेस पर आतंकियों का घुसकर कोहराम मचाना हो या हमारे सैन्य प्रतिष्ठानों की जानकारी लीक करने वाले जासूसों का पकड़ा जाना या फिर हमारे आयुधों में आग की घटनाएं। मंगलवार को महाराष्ट्र के पुलगांव में स्थापित सबसे बड़े आयुध डिपो में लगी आग ने हमारी सैन्य व्यवस्थाओं पर फिर सवालिया निशान लगाया है। आग की वजह जांच का विषय है पर इतने बड़े हादसे के पीछे लापरवाही से इनकार नहीं किया जा सकता, जिसमें हमारे जवानों की जान चली गई। वैसे ही हम पाकिस्तान, चीन जैसे पड़ोसियों से घिरे हैं, जिनकी नजरें हमारे सैन्य ठिकानों पर टिकी हैं, ऐसे में हमें सर्वाधिक चौकसी रखने की दरकार है। एक चूक पुलगांव, पठानकोट जैसे हादसों को जन्म देती है, वह चाहे कुदरती हो या फिर आतंकी...
पिछली घटनाओं से नहीं सीखा सबक
अफसर करीम रक्षा विशेषज्ञ
यह संतोष की बात है कि देश के सबसे बड़े आयुध कारखाने में लगी भीषण आग पर काबू पा लिया गया है। लेकिन, जानमाल का जो नुकसान इस हादसे में हुआ है, वह भयावह है। लगता है कि इससे पहले देश के अलग-अलग हिस्सों में सेना के आयुध डिपो में आग लगने की घटनाओं से हमने सबक नहीं लिया है। हर बार हमें लापरवाही की पहले से ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है। आग लगने के कारणों की पड़ताल के लिए सेना ने जांच बैठा दी है पर सबसे बड़ा सवाल यही है कि समय-समय पर जो जांच समितियां बनती हैं, आखिर उनकी सिफारिशों का क्या होता है? क्यों नहीं देश की रक्षा से जुड़े इन महत्वपूर्ण आयुध डिपो की सुरक्षा का इंतजाम होता? क्यों नहीं आग लगने की ऐसी घटनाओं की रोकथाम के पुख्ता प्रबंध हो पाते?
कारण कई बनते हैं
आम तौर पर गर्मी में होने वाले आग लगने के ऐसे हादसों का कारण अत्यधिक तापमान माना जाता है। आशंका यह बनी रहती है कि तेज गर्मी के कारण आयुध डिपो में कहीं सूखी घास हो तो आसानी से आग लग सकती है। ऐसी रिपोर्ट कई बार आती रहीं हैं कि आयुध डिपो में गोला-बारूद को जिस तरह से रखा जाता है, उससे आग लगने की ऐसी घटनाएं होना स्वाभाविक है। लेकिन, हमें इसे मानवीय भूल अथवा तकनीकी खामी ही नहीं मानना चाहिए।
इसे हमारे रक्षा तंत्र को नुकसान पहुंचाने के दुश्मन देश के प्रयासों से भी जोडऩे से इनकार नहीं किया जा सकता। हालांकि सेना ऐसे तथ्यों को आसानी से स्वीकार नहीं करती। यह बात सही है कि सेना से जुड़े मसलों में गोपनीयता अहम है लेकिन ऐसे हादसों में यदि कोई लापरवाही हुई है तो निश्चित ही दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। यह जानते हुए भी कि इससे पहले भी कश्मीर, सूरतगढ़, भरतपुर, बीकानेर, चण्डीगढ़, भुज और पानागढ़ के आयुध डिपो में ऐसे हादसे हो चुके हैं। इन सब प्रकरणों में जांच भी हुई लेकिन सुरक्षा उपायों में ढिलाई रोकने के ठोस कदम उठाए ही नहीं गए।
सुरक्षा मानकों की उपेक्षा
जहां तक मेरी जानकारी हैं, आयुध डिपो में हथियारों को उनकी आग्नेय क्षमता के हिसाब से अलग-अलग रखा जाता है। सुरक्षा से जुड़े बिन्दुओं का लिखित में जिक्र है, जिनका पालन करना हर आयुध डिपो में जरूरी होता है। मसलन कौनसा हथियार और गोला-बारूद कितनी मात्रा में कहां रखा जाएगा? किन इलाकों में विद्युत उपकरणों का इस्तेमाल नहीं हो पाएगा, यहां तक कि वहां बिजली लाइन ही नहीं होगी। आबादी क्षेत्र से कितना दूर होगाï? आयुध डिपो में बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश निषेध होगा आदि सब बातों का ध्यान रखने को कहा जाता है। वर्धा के पुलगांव स्थित इस आयुध डिपो में आग कैसे लगी यह जांच का विषय है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि आयुध उपकरणों की सुरक्षा को लेकर बने मानदण्डों की पूरी तरह से पालना नहीं की जा रही।
यूं तो आयुध डिपो के आसपास की निश्चित परिधि में आबादी नहीं हो सकती लेकिन यह भी देखने में आ रहा है कि समय के साथ-साथ कई स्थानों पर आयुध डिपो तक बसावट होने लगी है। ऐसे में दो ही विकल्प हैं, या तो वहां से बसावट हटाई जाए अथवा आयुध डिपो अन्यत्र स्थानांतरित किए जाएं। इस बात का ध्यान रखना होगा कि आबादी क्षेत्र से सटे आयुध डिपो में ऐसे हादसों के परिणाम ज्यादा भयावह हो सकते हैं। वर्धा के इस डिपो में आग रात के वक्त लगी है इसलिए किसी साजिश की आशंका को भी बल मिलता है।
पहले भी होते रहे हैं ऐसे ही हादसे
8-12-15 : विशाखापत्तनम
नौसेना के आयुध डिपो में धमाके हुए और आग लग गई। डिटोनेटर और रसायन अलग करने से लगी इस आग में पांच लोग घायल हुए।
26-03-2010 : पानगढ़
बर्धवान के निकट पानागढ़ में आर्मी के आयुध डिपो में लगी भीषण आग से बड़ी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद जलकर खाक हो गया।
4-12-2008 : भुज
सेना के गोला-बारूद में गोपालदर गांव के निकट लगी आग से सेना के दो जवान मारे गए और छह अन्य घायल हुए।
11-01-02 : बीकानेर
शहर से करीब तीन किलोमीटर दूर उदासर सैन्य क्षेत्र में सेना के अस्थाई आयुध डिपो में जबर्दस्त आग लगी। धमाके इतने तेज थे कि दो रॉकेट निकटवर्ती धर्मशाला में आकर गिरे जिससे दो नागरिकों की मौत हो गई और पांच अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए।
24-05-01 : सूरतगढ़
राजस्थान में सूरतगढ़ कस्बे से 20 किलोमीटर दूर बिर्धवाल में ं सेना के आयुध डिपो में लगी आग लगने से आर्मी के 3 अधिकारी घायल हुए।
29-04-01 : चंडीगढ़
गुरदासपुर में पठानकोट के पास सेना के गोला-बारूद में आग लगी। आस-पास की कॉलोनियों में दहशत का माहौल बना रहा।
29-04-01: भरतपुर
पश्चिमी क्षेत्र के प्रमुख आयुध डिपो में भीषण आग लगी। यहां बोफोर्स तोपों और अन्य आधुनिक हथियारों के इस्तेमाल का गोला-बारूद था।
बढ़ते तापमान का खतरा
आर. के. साहनी रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल
लगातार दो साल सूखे के कारण महाराष्ट्र में काफी गर्मी है। तापमान बढ़ा हुआ है। जहां आयुध डिपो होते हैं, वहां तेज गर्मी में आसपास जंगल में तपिश ज्यादा होती है। डिपो प्रबंधन व तकनीकी विशेषज्ञ तापमान कम रखने, आसपास के इलाके को ठंडा रखने की कोशिश करते हैं पर बारूद में एक चिंगारी ही काफी होती है।
पुलगांव डिपो में आग लगने की वजह बढा़ तापमान एक संभावित कारण हो सकता है। आग लगने की दूसरी एक बड़ी वजह आसमानी बिजली गिरना या आंधी में बिजली के तारों का आपस में टकराकर गिरना भी हो सकता है। इसके कारण भी डिपो में आग पकड़ सकती है। इस ओर भी जांच होगी क्योंकि वहां बड़े-बड़े बिजली के तार गुजर रहे हैं। यह बहुत बड़ा डिपो है। अगर इसमें एक बार आग पकड़ ले तो बड़े हादसे की आशंका रहती है। एक के बाद बारूद में आग लगने के बाद नियंत्रण करना मुश्किल हो जाता है। हालांकि डिपो का अपना 'फायर फाइङ्क्षटग मैकेनि•ामÓ होता है लेकिन बारूद में आग लगने पर लोगों को बचाना बहुत मुश्किल होता है।
सुरक्षित हैं ये ठिकाने
जहां तक बाहरी तत्व द्वारा घुसपैठ या आग लगाने का सवाल है तो इससे मैं सहमत नहीं हूं। ये डिपो काफी सुरक्षित इलाकेे में होते हैं। किसी तरह की घुसपैठ वहां संभव नहीं होती है। आर्मी ऑड्र्नंस कोर से तकनीकी विशेषज्ञ ऐसे डिपो को सुरक्षित रखते हैं। वे बारूद-हथियार को भिन्न-भिन्न श्रेणी बनाकर अलग-अलग रखते हैं। इनमें कुछ अंडर ग्राउंड होते हैं। काफी दक्षता के साथ इनकी हैंडलिंग होती है। बहुत अनुभवी लोगों के हाथ में कमान होती है। अब आग लगने से इनकार नहीं किया जा सकता पर आतंकी घुसपैठ नहीं हो सकती। वैसे हादसों से बचने के लिए पहले रोकथाम के निश्चित उपाय किए जाते हैं। बारूद को एक सही पैटर्न में रखना, उसकी जांच और पुनर्निरीक्षण किया जाता है। 45 डिग्री तापमान में सेफ्टी मैनुएल व्यापक होता है, जिसका पालन किया जाता है। लेकिन सिर्फ आग लगने पर ही डिपो को असुरक्षित करार देना गलत होगा।
सैन्य आधुनिकीकरण की जरूरत
अनिल शर्मा लीडर, स्टाफ साइड, जेसीएम-3 लेबल, आर्मी हेडक्वार्टर, जबलपुर
सेंट्रल ऑर्डनेंस डिपो देश की सेना की ताकत हैं। इसलिए जरूरी है कि इनकी सुरक्षा और संरक्षा का विशेष ध्यान रखा जाए। जहां गोला-बारूद संग्रहित किए जाते हों वहां सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली बात तापमान पर नियंत्रण की होती है। दरअसल, डिपो में ऐसे खतरनाक एवं संवेदनशील आयुध होते हैं। जिन्हें एक निश्चित तापमान की जरूरत होती है। कई उपाय व सावधानियों की जरूरत है और इनका अनुसरण होना ही चाहिए। पुलगांव डिपो की घटना देश के इस किस्म के भीषण हादसों में शामिल हो गई है। इतने फौजियों का मारा जाना वाकई दु:खद है। ऐसे में जांच में सभी पहलुओं पर गौर करने की जरूरत है।
लगाने होंगे पौधे
देश के अलग-अलग हिस्सों में स्थापित डिपो का मुख्य काम देश की आयुध निर्माणियों में बने सैन्य साजो सामान को एकत्रित कर रखना है। इनमें कई आयुध तो इतने संवेदनशील होते हैं कि उनके रखरखाव में मामूली चूक भी बड़े हादसे का सबब बन सकती है। इन दिनों तो खास ध्यान रखने की जरूरत इसलिए भी है कि गर्मी अपने कई रिकॉर्ड ध्वस्त करती दिख रही है। सबसे अच्छा उपाय यही है कि जहां इन्हें रखा जाता है, वहां का तापमान नियंत्रित किया जाए। इसके कई तरीके हो सकते हैं। बड़ी तादाद में आसपास पौधे लगाए जा सकते हैं।
जहां मैगजीन रखीं हों उसके आसपास नियमित अंतराल में सिंचाई की जानी चाहिए। यही स्थिति आग को रोकने के सम्बंध में हो सकती है। सामान्यत: देखा जाता है कि आग रोकने के आयुध डिपो में जो उपाय बताए जाते हैं उनकी पालना नहीं हो पाती। ऐसे में हादसे हो जाते हैं। अलग-अलग किस्म के आयुधों को भी अलग-अलग जगह रखना चाहिए ताकि आग की स्थिति में ये एक-दूसरे के सम्पर्क में न हों।
कम ही होते हैं विस्फोट
यही हाल फायर उपकरणों का है। डिपो में आगजनित हादसों से निपटने के लिए आधुनिक उपकरण उपलब्ध कराए जाने चाहिए। कई एेसे उपकरण हैं जो पुराने हो गए हैं। फायर विभाग के आधुनिकीकरण पर ध्यान देने की जरूरत है। जहां दमकलें पुरानी हो गईं हों वहां इन्हें बदलकर आधुनिक वाहन उपलब्ध कराए जाने चाहिए। आग बुझाने के उपकरणों का रखरखाव भी नियमित रूप से होना चाहिए ताकि आपात स्थिति में इनका उचित इस्तेमाल हो सके। यूं तो प्रत्येक डिपो में एमुनेशन को रखने की सुदृढ़ व्यवस्थाएं होती हैं। अलग-अलग रैक बनाए जाते हैं। इनमें आयुध का भंडारण किया जाता है। इससे विस्फोट जैसी घटनाएं बहुत कम सुनने को मिलती हैं।
बारीकी से हो छानबीन
देश के ज्यादातर डिपो की सुरक्षा की जिम्मेदारी सेना के पास है। इसलिए सुरक्षा मामले में ज्यादा चूक की गुंजाइश नहीं रहती। पुलगांव की घटना की गहनता से जांच होनी चाहिए। क्योंकि यह हादसा कहीं न कहीं हमारी व्यवस्थाओं में कमी को तो दर्शाता ही है। सबसे जरूरी बात यह है कि जांच में जो भी तथ्य सामने आएं उस पर तत्परता से कार्रवाई भी की जाए।
उपकरणों को रखें दुरुस्त
यूं तो हमारे देश के आयुध डिपो में सुरक्षा की चाक-चौबंद व्यवस्था रहती है। लेकिन जब इस तरह का कोई हादसा होाता है तो तमाम तरह की चर्चाओं को बल मिलना स्वाभाविक है। बड़ी जरूरत यह है कि ऐसे आग लगने के ऐसे हादसों से निपटने के लिए आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल हो। अभी भी कई स्थानों पर अग्रिशमन उपकरणों की हालत खस्ता है। इन्हें बदलने की जरूरत है।
पिछली घटनाओं से नहीं सीखा सबक
अफसर करीम रक्षा विशेषज्ञ
यह संतोष की बात है कि देश के सबसे बड़े आयुध कारखाने में लगी भीषण आग पर काबू पा लिया गया है। लेकिन, जानमाल का जो नुकसान इस हादसे में हुआ है, वह भयावह है। लगता है कि इससे पहले देश के अलग-अलग हिस्सों में सेना के आयुध डिपो में आग लगने की घटनाओं से हमने सबक नहीं लिया है। हर बार हमें लापरवाही की पहले से ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है। आग लगने के कारणों की पड़ताल के लिए सेना ने जांच बैठा दी है पर सबसे बड़ा सवाल यही है कि समय-समय पर जो जांच समितियां बनती हैं, आखिर उनकी सिफारिशों का क्या होता है? क्यों नहीं देश की रक्षा से जुड़े इन महत्वपूर्ण आयुध डिपो की सुरक्षा का इंतजाम होता? क्यों नहीं आग लगने की ऐसी घटनाओं की रोकथाम के पुख्ता प्रबंध हो पाते?
कारण कई बनते हैं
आम तौर पर गर्मी में होने वाले आग लगने के ऐसे हादसों का कारण अत्यधिक तापमान माना जाता है। आशंका यह बनी रहती है कि तेज गर्मी के कारण आयुध डिपो में कहीं सूखी घास हो तो आसानी से आग लग सकती है। ऐसी रिपोर्ट कई बार आती रहीं हैं कि आयुध डिपो में गोला-बारूद को जिस तरह से रखा जाता है, उससे आग लगने की ऐसी घटनाएं होना स्वाभाविक है। लेकिन, हमें इसे मानवीय भूल अथवा तकनीकी खामी ही नहीं मानना चाहिए।
इसे हमारे रक्षा तंत्र को नुकसान पहुंचाने के दुश्मन देश के प्रयासों से भी जोडऩे से इनकार नहीं किया जा सकता। हालांकि सेना ऐसे तथ्यों को आसानी से स्वीकार नहीं करती। यह बात सही है कि सेना से जुड़े मसलों में गोपनीयता अहम है लेकिन ऐसे हादसों में यदि कोई लापरवाही हुई है तो निश्चित ही दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। यह जानते हुए भी कि इससे पहले भी कश्मीर, सूरतगढ़, भरतपुर, बीकानेर, चण्डीगढ़, भुज और पानागढ़ के आयुध डिपो में ऐसे हादसे हो चुके हैं। इन सब प्रकरणों में जांच भी हुई लेकिन सुरक्षा उपायों में ढिलाई रोकने के ठोस कदम उठाए ही नहीं गए।
सुरक्षा मानकों की उपेक्षा
जहां तक मेरी जानकारी हैं, आयुध डिपो में हथियारों को उनकी आग्नेय क्षमता के हिसाब से अलग-अलग रखा जाता है। सुरक्षा से जुड़े बिन्दुओं का लिखित में जिक्र है, जिनका पालन करना हर आयुध डिपो में जरूरी होता है। मसलन कौनसा हथियार और गोला-बारूद कितनी मात्रा में कहां रखा जाएगा? किन इलाकों में विद्युत उपकरणों का इस्तेमाल नहीं हो पाएगा, यहां तक कि वहां बिजली लाइन ही नहीं होगी। आबादी क्षेत्र से कितना दूर होगाï? आयुध डिपो में बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश निषेध होगा आदि सब बातों का ध्यान रखने को कहा जाता है। वर्धा के पुलगांव स्थित इस आयुध डिपो में आग कैसे लगी यह जांच का विषय है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि आयुध उपकरणों की सुरक्षा को लेकर बने मानदण्डों की पूरी तरह से पालना नहीं की जा रही।
यूं तो आयुध डिपो के आसपास की निश्चित परिधि में आबादी नहीं हो सकती लेकिन यह भी देखने में आ रहा है कि समय के साथ-साथ कई स्थानों पर आयुध डिपो तक बसावट होने लगी है। ऐसे में दो ही विकल्प हैं, या तो वहां से बसावट हटाई जाए अथवा आयुध डिपो अन्यत्र स्थानांतरित किए जाएं। इस बात का ध्यान रखना होगा कि आबादी क्षेत्र से सटे आयुध डिपो में ऐसे हादसों के परिणाम ज्यादा भयावह हो सकते हैं। वर्धा के इस डिपो में आग रात के वक्त लगी है इसलिए किसी साजिश की आशंका को भी बल मिलता है।
पहले भी होते रहे हैं ऐसे ही हादसे
8-12-15 : विशाखापत्तनम
नौसेना के आयुध डिपो में धमाके हुए और आग लग गई। डिटोनेटर और रसायन अलग करने से लगी इस आग में पांच लोग घायल हुए।
26-03-2010 : पानगढ़
बर्धवान के निकट पानागढ़ में आर्मी के आयुध डिपो में लगी भीषण आग से बड़ी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद जलकर खाक हो गया।
4-12-2008 : भुज
सेना के गोला-बारूद में गोपालदर गांव के निकट लगी आग से सेना के दो जवान मारे गए और छह अन्य घायल हुए।
11-01-02 : बीकानेर
शहर से करीब तीन किलोमीटर दूर उदासर सैन्य क्षेत्र में सेना के अस्थाई आयुध डिपो में जबर्दस्त आग लगी। धमाके इतने तेज थे कि दो रॉकेट निकटवर्ती धर्मशाला में आकर गिरे जिससे दो नागरिकों की मौत हो गई और पांच अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए।
24-05-01 : सूरतगढ़
राजस्थान में सूरतगढ़ कस्बे से 20 किलोमीटर दूर बिर्धवाल में ं सेना के आयुध डिपो में लगी आग लगने से आर्मी के 3 अधिकारी घायल हुए।
29-04-01 : चंडीगढ़
गुरदासपुर में पठानकोट के पास सेना के गोला-बारूद में आग लगी। आस-पास की कॉलोनियों में दहशत का माहौल बना रहा।
29-04-01: भरतपुर
पश्चिमी क्षेत्र के प्रमुख आयुध डिपो में भीषण आग लगी। यहां बोफोर्स तोपों और अन्य आधुनिक हथियारों के इस्तेमाल का गोला-बारूद था।
बढ़ते तापमान का खतरा
आर. के. साहनी रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल
लगातार दो साल सूखे के कारण महाराष्ट्र में काफी गर्मी है। तापमान बढ़ा हुआ है। जहां आयुध डिपो होते हैं, वहां तेज गर्मी में आसपास जंगल में तपिश ज्यादा होती है। डिपो प्रबंधन व तकनीकी विशेषज्ञ तापमान कम रखने, आसपास के इलाके को ठंडा रखने की कोशिश करते हैं पर बारूद में एक चिंगारी ही काफी होती है।
पुलगांव डिपो में आग लगने की वजह बढा़ तापमान एक संभावित कारण हो सकता है। आग लगने की दूसरी एक बड़ी वजह आसमानी बिजली गिरना या आंधी में बिजली के तारों का आपस में टकराकर गिरना भी हो सकता है। इसके कारण भी डिपो में आग पकड़ सकती है। इस ओर भी जांच होगी क्योंकि वहां बड़े-बड़े बिजली के तार गुजर रहे हैं। यह बहुत बड़ा डिपो है। अगर इसमें एक बार आग पकड़ ले तो बड़े हादसे की आशंका रहती है। एक के बाद बारूद में आग लगने के बाद नियंत्रण करना मुश्किल हो जाता है। हालांकि डिपो का अपना 'फायर फाइङ्क्षटग मैकेनि•ामÓ होता है लेकिन बारूद में आग लगने पर लोगों को बचाना बहुत मुश्किल होता है।
सुरक्षित हैं ये ठिकाने
जहां तक बाहरी तत्व द्वारा घुसपैठ या आग लगाने का सवाल है तो इससे मैं सहमत नहीं हूं। ये डिपो काफी सुरक्षित इलाकेे में होते हैं। किसी तरह की घुसपैठ वहां संभव नहीं होती है। आर्मी ऑड्र्नंस कोर से तकनीकी विशेषज्ञ ऐसे डिपो को सुरक्षित रखते हैं। वे बारूद-हथियार को भिन्न-भिन्न श्रेणी बनाकर अलग-अलग रखते हैं। इनमें कुछ अंडर ग्राउंड होते हैं। काफी दक्षता के साथ इनकी हैंडलिंग होती है। बहुत अनुभवी लोगों के हाथ में कमान होती है। अब आग लगने से इनकार नहीं किया जा सकता पर आतंकी घुसपैठ नहीं हो सकती। वैसे हादसों से बचने के लिए पहले रोकथाम के निश्चित उपाय किए जाते हैं। बारूद को एक सही पैटर्न में रखना, उसकी जांच और पुनर्निरीक्षण किया जाता है। 45 डिग्री तापमान में सेफ्टी मैनुएल व्यापक होता है, जिसका पालन किया जाता है। लेकिन सिर्फ आग लगने पर ही डिपो को असुरक्षित करार देना गलत होगा।
सैन्य आधुनिकीकरण की जरूरत
अनिल शर्मा लीडर, स्टाफ साइड, जेसीएम-3 लेबल, आर्मी हेडक्वार्टर, जबलपुर
सेंट्रल ऑर्डनेंस डिपो देश की सेना की ताकत हैं। इसलिए जरूरी है कि इनकी सुरक्षा और संरक्षा का विशेष ध्यान रखा जाए। जहां गोला-बारूद संग्रहित किए जाते हों वहां सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली बात तापमान पर नियंत्रण की होती है। दरअसल, डिपो में ऐसे खतरनाक एवं संवेदनशील आयुध होते हैं। जिन्हें एक निश्चित तापमान की जरूरत होती है। कई उपाय व सावधानियों की जरूरत है और इनका अनुसरण होना ही चाहिए। पुलगांव डिपो की घटना देश के इस किस्म के भीषण हादसों में शामिल हो गई है। इतने फौजियों का मारा जाना वाकई दु:खद है। ऐसे में जांच में सभी पहलुओं पर गौर करने की जरूरत है।
लगाने होंगे पौधे
देश के अलग-अलग हिस्सों में स्थापित डिपो का मुख्य काम देश की आयुध निर्माणियों में बने सैन्य साजो सामान को एकत्रित कर रखना है। इनमें कई आयुध तो इतने संवेदनशील होते हैं कि उनके रखरखाव में मामूली चूक भी बड़े हादसे का सबब बन सकती है। इन दिनों तो खास ध्यान रखने की जरूरत इसलिए भी है कि गर्मी अपने कई रिकॉर्ड ध्वस्त करती दिख रही है। सबसे अच्छा उपाय यही है कि जहां इन्हें रखा जाता है, वहां का तापमान नियंत्रित किया जाए। इसके कई तरीके हो सकते हैं। बड़ी तादाद में आसपास पौधे लगाए जा सकते हैं।
जहां मैगजीन रखीं हों उसके आसपास नियमित अंतराल में सिंचाई की जानी चाहिए। यही स्थिति आग को रोकने के सम्बंध में हो सकती है। सामान्यत: देखा जाता है कि आग रोकने के आयुध डिपो में जो उपाय बताए जाते हैं उनकी पालना नहीं हो पाती। ऐसे में हादसे हो जाते हैं। अलग-अलग किस्म के आयुधों को भी अलग-अलग जगह रखना चाहिए ताकि आग की स्थिति में ये एक-दूसरे के सम्पर्क में न हों।
कम ही होते हैं विस्फोट
यही हाल फायर उपकरणों का है। डिपो में आगजनित हादसों से निपटने के लिए आधुनिक उपकरण उपलब्ध कराए जाने चाहिए। कई एेसे उपकरण हैं जो पुराने हो गए हैं। फायर विभाग के आधुनिकीकरण पर ध्यान देने की जरूरत है। जहां दमकलें पुरानी हो गईं हों वहां इन्हें बदलकर आधुनिक वाहन उपलब्ध कराए जाने चाहिए। आग बुझाने के उपकरणों का रखरखाव भी नियमित रूप से होना चाहिए ताकि आपात स्थिति में इनका उचित इस्तेमाल हो सके। यूं तो प्रत्येक डिपो में एमुनेशन को रखने की सुदृढ़ व्यवस्थाएं होती हैं। अलग-अलग रैक बनाए जाते हैं। इनमें आयुध का भंडारण किया जाता है। इससे विस्फोट जैसी घटनाएं बहुत कम सुनने को मिलती हैं।
बारीकी से हो छानबीन
देश के ज्यादातर डिपो की सुरक्षा की जिम्मेदारी सेना के पास है। इसलिए सुरक्षा मामले में ज्यादा चूक की गुंजाइश नहीं रहती। पुलगांव की घटना की गहनता से जांच होनी चाहिए। क्योंकि यह हादसा कहीं न कहीं हमारी व्यवस्थाओं में कमी को तो दर्शाता ही है। सबसे जरूरी बात यह है कि जांच में जो भी तथ्य सामने आएं उस पर तत्परता से कार्रवाई भी की जाए।
उपकरणों को रखें दुरुस्त
यूं तो हमारे देश के आयुध डिपो में सुरक्षा की चाक-चौबंद व्यवस्था रहती है। लेकिन जब इस तरह का कोई हादसा होाता है तो तमाम तरह की चर्चाओं को बल मिलना स्वाभाविक है। बड़ी जरूरत यह है कि ऐसे आग लगने के ऐसे हादसों से निपटने के लिए आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल हो। अभी भी कई स्थानों पर अग्रिशमन उपकरणों की हालत खस्ता है। इन्हें बदलने की जरूरत है।
Hindi News अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें (Hindi News App) Get all latest Opinion News in Hindi from Politics, Crime, Entertainment, Sports, Technology, Education, Health, Astrology and more News in Hindi