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फिर दर्द दे गई रेल

Published: Aug 05, 2015 11:49:00 pm

मध्य प्रदेश में हरदा के पास एक ही जगह हुए दो रेल
हादसे मानवीय दृष्टि से जितने दुखद हैं,

Kamayani Express and Janata Express

Kamayani Express and Janata Express

मध्य प्रदेश में हरदा के पास एक ही जगह हुए दो रेल हादसे मानवीय दृष्टि से जितने दुखद हैं, प्रशासनिक दृष्टि से उतने ही शर्मनाक। आधी रात कामायनी एक्सप्रेस और जनता एक्सप्रेस में रेलवे भरोसे निद्रामग्न यात्रियों के प्रति जितनी संवेदना प्रकट की जाए, कम होगी।


अंधेरी बरसाती रात, आबादी से दूर सूनसान इलाका, उफनती नदी, रेल टै्रक पर कमर तक बहता पानी और फिर ट्रेन के भार से ट्रैक का धसक जाना, पहले कामायनी एक्सप्रेस शिकार हुई और उसके बाद जनता एक्सप्रेस। वहां रात का मंजर कितना भयानक रहा होगा, सोचकर ही रूह कांप जाती है।


कई यात्री बह गए, 30 से ज्यादा लोगों की मौत बताई जा रही है लेकिन यह संख्या बढ़ भी सकती है। सबसे बड़ी विफलता तो यह कि मारे गए लोगों की सही संख्या का पता शायद कभी नहीं चल पाएगा क्योंकि भारतीय रेल की सबसे बड़ी कमी यह है कि किसी को नहीं पता- किस टे्रन में कितने यात्री सफर कर रहे हैं।


रेलवे को पता ही नहीं है कि उसकी ट्रेनों का कुल भार कितना है, जो रेल की पटरियां हैं, उनमें रेल भार झेलने की क्षमता है भी या नहीं?

तय है, अगर बारिश के मौसम में पटरियों और उनके ढांचे का पूरा खयाल रखा जाता तो यह हादसा नहीं होता। पूर्वोत्तर राज्यों से लेकर राजस्थान तक भारी बारिश हुई है और हो रही है , कई जगह पटरियों पर पानी भरा है जिन पर ट्रेनें भगवान भरोसे दौड़ रही हैं।


क्या बारिश के दिनों में पटरियों की निगरानी और दिनों के मुकाबले ज्यादा चाक-चौबंद नहीं होनी चाहिए? पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने कहा कि ट्रैक की अगर निगरानी सही तरीके से की जाती तो हादसा नहीं होता। उन्होंने यह भी कहा कि यह रेलवे के सिस्टम में गहरे तक फैले कैंसर का लक्षण है।


उनके बयान में राजनीति का संकेत है लेकिन क्या रेलवे तंत्र की सेवा काबिले तारीफ है? वर्ष 2014 में देश भर में हुई विभिन्न तरह की रेल दुर्घटनाओं में हजारों लोगों को जान गंवानी पड़ी। यह आंकड़ा असुरक्षित रेल सफर की गवाही देता है।


अब समय आ गया है, रेलवे को अपनी प्राथमिकताएं दुरूस्त करनी चाहिए। पहली जरूरत – पटरियों की देखभाल और खराब मौसम में उनकी कुछ-कुछ घंटे बाद निगरानी। दूसरी जरूरत- अंग्रेजों के जमाने में बने जर्जर पुलों को दुरूस्त कर नए पुल बनाना। तीसरी जरूरत – बोर्ड सदस्यों-रेल अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करना।

विडंबना देखिए, रेल मंत्री सुरेश प्रभु स्मार्ट मंत्रियों में गिने जाते हैं। उनकी स्मार्टनेस तभी सार्थक होगी जब वे संपूर्ण रेल तंत्र को स्मार्ट बना देंगे और रेल सफर करते हुए किसी को डर नहीं लगेगा।

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