scriptफिर टकराव की राह | Then the road to collision | Patrika News

फिर टकराव की राह

Published: Jun 29, 2017 10:57:00 pm

राज्यपाल और मुख्यमंत्री के अधिकारों पर संविधान में प्रावधान है
लेकिन उपराज्यपाल के अधिकारों की व्याख्या शायद ठीक ढंग से नहीं की गई है

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सरकारें बदलने के साथ देश और प्रदेश में बहुत कुछ बदल जाता है। नीतियां बदल जाती हैं। अफसर बदल जाते हैं। यहां तक कि काम करने की शैली भी बदल जाया करती है। कुछ नहीं बदलता तो वह राज्यपालों का सरकारों के साथ टकराव।

खासकर उन राज्यों में जहां केन्द्र सरकार के विरोधी मानसिकता वाली सरकारें हैं। पुडुचेरी में मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के बीच चल रहे टकराव के बीच केन्द्र सरकार ने साफ किया है कि केन्द्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपालों के पास राज्यपालों से अधिक शक्तियां हैं। पहले दिल्ली और फिर पुडुचेरी में चल रहे टकराव के बाद पूरे देश ने देख लिया है कि इन राज्यों के उपराज्यपाल कितने शक्तिशाली हैं। दोनों राज्यों में एनडीए विरोधी सरकारें हैं और उपराज्यपालों के साथ उनका टकराव लगातार चल रहा है।

इन राज्यों में भी एनडीए सरकारें होती तो शायद इतना टकराव देखने में नहीं आता। ये आज की बात नहीं, वर्षों पुराना आरोप है कि विपक्षी सरकारों को अस्थिर करने में राजभवन प्रमुख भूमिका निभाते हैं। फिर चाहे वहां राज्यपाल बैठा हो या उपराज्यपाल। दिल्ली में उपराज्यपाल नजीब जंग और मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के बीच टकराव का साक्षी समूचा देश बन चुका है। यही कहानी अब पुडुचेरी में दोहराई जा रही है।

उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच अधिकारों की लड़ाई चल रही है। केन्द्र का वरदहस्त उपराज्यपाल किरण बेदी पर है। अधिकारों की लड़ाई का ये मामला अनेक बार अदालतों की चौखट तक भी पहुंच चुका है। दिल्ली में जंग और केजरीवाल के बीच सत्ता संघर्ष के दौर में दिल्ली हाईकोर्ट ने उपराज्यपाल की सर्वोच्चता को ही वरीयता दी थी।

मुद्दा यहां अधिकारों का नहीं अपितु मिल-जुलकर काम करने का है। संविधान में अनेक मुद्दों पर साफ-साफ कुछ नहीं कहा गया है लेकिन फिर भी विधायिका और कार्यपालिका फैसले लेते ही हैं। राज्यपाल और मुख्यमंत्री के अधिकारों पर संविधान में प्रावधान है लेकिन उपराज्यपाल के अधिकारों की व्याख्या शायद ठीक ढंग से नहीं की गई है। लोकतंत्र में निर्वाचित सरकारों के पास ही अधिक अधिकार होते हैं।

राज्यपाल का काम संवैधानिक प्रमुख की भूमिका में रहकर सहयोग करना होना चाहिए। न कि सरकार चलाना। एक जमाने में राज्यपालों की भूमिका पर बरसने वाली भाजपा आज उनके बचाव में खड़ी नजर आने लगी है।
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