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कला से जुड़े बाजार में हैं विपुल संभावनाएं

locationनई दिल्लीPublished: Jul 12, 2020 04:18:59 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

प्राकृतिक सुंदरता के मामले में भी भारत एक धनी देश है। इसके बावजूद उस संख्या में दुनिया के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाता है, जितना कि कई छोटे-छोटे यूरोपीय या अमरीकी मुल्क कर लेते हैं।

art and culture

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डॉ. संजय वर्मा, विश्लेषक, निजी विवि में अध्यापन

फ्रांस की राजधानी पेरिस में ढीले पड़ते लॉकडाउन के बीच खबर आई कि वहां के मशहूर लोवएरे म्यूजियम को फिर खोल दिया गया है। इस म्यूजियम की प्रसिद्धि अपनी मोहक मुस्कान के जरिए अंतरराष्ट्रीय कलात्मक प्रतीक वहां रखी पेंटिंग- मोनालिसा के कारण ज्यादा है। म्यूजियम खोले जाने के फौरन बाद खींचे गए मोनालिसा के चित्र पूरी दुनिया समेत भारत के भी कई अखबारों में छपे। दावा है कि मोनालिसा की पेंटिंग की वजह से लोवएरे दुनिया का ऐसा खास म्यूजियम बना है जहां सबसे ज्यादा टूरिस्ट जाते हैं। लोवएरे म्यूजियम की तरह हमारे देश में भी जारी अनलॉक की प्रक्रिया के तहत दिल्ली स्थित लाल किला, हुमायूं का मकबरा और पुरातत्व महत्व के कई स्थानों को खोला गया। लेकिन उनकी ऐसी चर्चा नहीं हुई, जैसी मोनालिसा को नसीब हुई। अगर मोनालिसा की ही बात करें, तो भारत में भी देसी मोनालिसा के रूप में राजस्थान की बणी-ठणी की ख्याति है। लेकिन कुछ हो जाए, कोई नहीं बताता कि बणी-ठणी की पेंटिंग किस हाल में है। यह भी नहीं बताया जाता कि बणी-ठणी की पेंटिंग में क्या खास खोजा गया है, जिससे लोगों (पर्यटकों) की उसमें दिलचस्पी जगे।

यह मामला असल में अपनी धरोहरों की सतत ब्रांडिंग का है। यह ब्रांडिंग क्यों जरूरी है और कैसे की जाती है- हमें इस बारे में यूरोप से सीखने की जरूरत है। खास तौर से मोनालिसा से। इससे इनकार नहीं कि मोनालिसा एक अद्भुत पेंटिंग हैं, लेकिन इससे ज्यादा अद्भुत हैं वे चर्चाएं जो मोनालिसा को दुनिया के आकर्षण का केंद्र बनाए रखने के लिए पैदा की जाती हैं। तमाम उन रहस्यों और घटनाओं की बारी-बारी से सप्रयास खोज की जाती है ताकि मोनालिसा लोगों की आंखों से ओझल न होने पाए। जैसे, तीन साल पहले 2017 में जर्मनी की यूनिवर्सिटी ऑफ फ्रीबर्ग के साइंटिस्टों ने अपने प्रयोगों के आधार पर दावा किया कि लियोनार्दो दा विंची ने अपनी मशहूर पेंटिंग मोनालिसा के जरिए असल में प्रसन्नता को दर्शाने की कोशिश की थी और इसकी 97 फीसदी संभावना है। मोनालिसा के रहस्यों और गुत्थियों के प्रकाश में आने का यह कोई पहला मामला नहीं था।
मोनालिसा नामक पेंटिंग में नजर आने वाली महिला और उसकी मुस्कराहट को अरसे से कला विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों के लिए पहेली बताया जाता रहा है। वर्ष 2013 में भी मोनालिसा की एक चर्चा तब उठी थी, जब अमेरिकी स्पेस एजेंसी- नासा के एक अंतरिक्ष यान (लूनर रिनांयसा) के जरिए वैज्ञानिकों ने लेजर किरणों से चंद्रमा की परिक्रमा कर रहे उपग्रह की सतह पर मोनालिसा का चित्र उकेरा था। नासा ने लेजर किरणों से बनाया गया यह चित्र नेक्स्ट जेनरेशन सैटेलाइट लेजर रेजिंग स्टेशन से रवाना किया था, जो 24 हजार मील की यात्रा पूरी करने के बाद लूनर ऑरबिटर लेजर ऑल्टीमीटर(एलओएलए) नामक उपग्रह पर पहुंचा। ऐसे वैज्ञानिक करिश्मे और प्रयोग अपने आप में जितने अद्भुत और हैरतअंगेज हैं, उतनी ही विस्मयकारी यह जिज्ञासा है कि आखिर मोनालिसा में ऐसा क्या है, जो वह पश्चिम की नजर से उतर नहीं पा रही है। दुनिया में उससे बढ़कर और भी कलाकृतियां और पेंटिंग हैं, कलाकारी के एक से एक शानदार नमूने अलग-अलग देशों में बिखरे हुए हैं, लेकिन जब कभी भी सौंदर्य और मोहक मुस्कान के सम्मिलन का कोई प्रतीक खोजने की बात होती है, तो पश्चिम जगत की आँख मोनालिसा पर जाकर ही टिक जाती है।

यह पहेली भी काफी विचित्र है कि पूरा पश्चिमी कला जगत मोनालिसा के विशेषताओं और रहस्यों के अनेक कोणों से समीक्षा करने के बाद संतुष्ट नजर नहीं आता है और हर साल- दो साल में इस पेंटिंग से जुड़ा कोई नया पहलू या रहस्य सामने आ खड़ा होता है। कुछ साल पहले यह चर्चा भी जोरशोर से उठी थी कि मोनालिसा कोई महिला नहीं, बल्कि पुरुष मॉडल था। कभी तो यह भी कहा जाता है कि खुद लियोनार्दो दा विंची ही इस पेंटिंग के मॉडल थे। इस पेंटिंग के मॉडल के रूप में फ्लोरेंस में रहने वाली लिसा जिअकांदो, तो कभी ड्यूक मिलआंसे की बेटी बिनाका जिअवान्ना का नाम भी लिया जाता रहा है। मोनालिसा की मुस्कान को रहस्यमय बताने वाली इतनी जानकारियाँ और शोध सामने आ चुके हैं कि उन्हें मिलाकर नए ग्रंथों की रचना हो सकती है।
इनसे यह भी लगता है कि मोनालिसा की आंखों की पुतलियों में छिपे रहस्य, पेंटिंग के बैकग्राउंड, इसकी रचना के साल आदि को लेकर इतिहासकार कभी एक मत नहीं हो सकेंगे। पर इन रहस्यों और घटनाओं के पीछे पश्चिमी जगत की कोशिश असल में पर्यटन को बढ़ावा देने की है।
पश्चिमी देशों को यह लगता है कि दुनिया में जिस दिन मोनालिसा के किसी न किसी पहलू की चर्चा होनी बंद हो जाएगी, उसी दिन से पूरे पश्चिम के कला जगत का अवसान शुरू हो जाएगा। ऐसा होने वह वह बाजार ढह जाएगा जो मोनालिसा की मुस्कान के रहस्य के जरिए पूरी दुनिया में कायम हुआ है। सच्चाई यह है कि अपनी ऐतिहासिक कलाकृतियों को इस तरह चर्चा में बनाए रख कर पश्चिमी जगत अपनी कलाओं की मांग दुनिया के बाजार में बनाए रखना जानता है। लंदन स्थित मैडम तुसाद का संग्रहालय इसका एक और उदाहरण है जहां भारतीय सिनेमा के नामी कलाकारों और राजनेताओं के पुतलों का जब-तब अनावरण होता रहता है। वहां ऐसा करने का उद्देश्य भारतीय पर्यटकों को लुभाना है ताकि वे संग्रहालय का महँगा टिकट खरीद कर उसके बाजार को सहारा देते रहें। अब तो ऐसा संग्रहालय देश की राजधानी दिल्ली में भी मौजूद है।

मोनालिसा के जरिए पश्चिमी कलाओं की ब्रांडिंग से एशियाई या फिर भारतीय कलाओं की तुलना करें, तो हमें अपना पिछड़ापन साफ नजर आता है। जबकि भारत या बड़े संदर्भ में कहें तो पूरब की कलाओं में ऐसी चर्चाएं बटोरने और उनके सहारे अपने लिए बाजार विकसित करने का भरपूर माद्दा है। राजस्थान की मशहूर पेंटिंग बणी-ठणी के बारे में भी ऐसे ही रहस्य गढ़े जा सकते हैं। राजस्थान के किशनगढ़ रियासत के तत्कालीन राजा सावंत सिंह की दासी व प्रेमिका बणी-ठणी सुंदरता की अद्भुत मिसाल थी। बताते हैं कि वह कृष्णभक्त होने के साथ-साथ उच्च कोटि की कवयित्री भी थी। चित्रकार राजा सावंतसिंह ने इस कृष्णभक्त दासी को रानियों जैसी पोशाक और आभूषण पहनाकर एकांत में जो चित्र बनाया था और उसके सजे-संवरे (सजे-धजे) रूप को देखकर उस चित्र को जो बणी-ठणी नाम दिया था, वह इतिहास में अमर हो गया। खोजे जाएं तो मोनालिसा की तरह बणी-ठणी के चित्र में भी तमाम रहस्य, घटनाएं और कहानियां मिलेंगी।

सवाल है कि क्यों हम बणी-ठणी की ब्रांडिंग में दिलचस्पी नहीं लेते। शायद इसके पीछे एक डर यह है कि एक बार अगर लोगों को घर बैठे बणी-ठणी के दर्शन हो गए, तो वे इसे देखने राजस्थान नहीं आएंगे। देश के कई मंदिरों में देवी-देवताओं की मूर्तियों के फोटो खींचने पर इसी आशय से प्रतिबंध लगाए जाते हैं। हमें यह गफलत दूर करनी होगी कि इस तरह की चर्चाओं और ब्रांडिंग से कलाओं को कोई नुकसान पहुँचता है। समझना होगा कि इस तरह बाजार विकसित करने की कोशिश का मतलब कलाओं से हाथ धो बैठना नहीं है। बल्कि इससे तो कलाओं के संरक्षण के नए अवसर और पूंजी पैदा होती है। यह पूँजी कलाओं के संरक्षण तक में काम आ सकती है और स्थानीय स्तर पर ढेरों रोजगार पैदा कर सकती है।

हमारे देश में कलात्मक धरोहरों की कोई कमी नहीं है। प्राकृतिक सुंदरता के मामले में भी भारत एक धनी देश है। इसके बावजूद उस संख्या में दुनिया के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाता है, जितना कि कई छोटे-छोटे यूरोपीय या अमेरिकी मुल्क कर लेते हैं। ये मुल्क अपनी मामूली चीजों की भी ऐसी ब्रांडिंग करते हैं कि पूरी दुनिया उनकी चर्चा करने लगती है। विचारणीय है कि मोनालिसा की पेंटिंग में ऐसा कुछ नहीं है, जो राजा रवि वर्मा या हमारे आधुनिक पेंटर स्व. एमएफ हुसैन की पेंटिंग्स में या अजंता-एलोरो व खजुराहो की स्थापत्य कला में नहीं है। इनमें भी मोनालिसा की पेंटिंग के मुकाबले कई गुना ज्यादा रहस्य और दिलचस्पियों के किस्से कैद हैं। पर हमने अभी तक इनकी ऐसी ब्रांडिंग करना नहीं सीखा है, जिससे हमारे देश में इनसे जुड़ा बाजार और पर्यटन के बेशुमार अवसर पैदा होते हैं।
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