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ओपिनियन

टीकाकरण कार्यक्रम को गति मिलना जरूरी

विभिन्न बीमारियों के टीकों को गांवों तक पहुंचाने की क्षमता रखने वाले देश में लोग कोरोना टीके के लिए संघर्ष कर रहे हैं

Jun 01, 2021 / 09:40 am

विकास गुप्ता

टीकाकरण कार्यक्रम को गति मिलना जरूरी

राजेंद्र बंधु

पिछले साल मार्च में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के कार्यकारी निदेशक डॉ. माइकल रेयान ने कहा था कि भारत ने चेचक और पोलियो जैसी बीमारियों से लडऩे में दुनिया को राह दिखाई है। उन्हें उम्मीद थी कि कोरोना के मामले में भी भारत अपनी इसी कुशलता का परिचय देगा। टीकाकरण की सफलता का भरोसा सिर्फ डब्ल्यूएचओ को ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को था। भारत के वर्तमान हालात ने न सिर्फ दुनिया का यह भरोसा तोड़ा, बल्कि भारत की गौरवशाली छवि को भी नुकसान पहुंचाया, क्योंकि विभिन्न बीमारियों के टीकों को दूरदराज के गांवों तक पहुंचाने की क्षमता रखने वाले देश में लोग कोरोना टीके के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

आजादी के बाद भारत के सामने सामाजिक—आर्थिक चुनौतियों के साथ कई जानलेवा बीमारियों से नागरिकों को बचाने की भी चुनौती थी। सन् 1948 में टीबी को महामारी जैसा माना गया। इससे लडऩे के लिए मद्रास और तमिलनाडु में बीसीजी वैक्सीन लेबोरेटरी स्थापित की गई। 1962 में शुरू हुए राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम में बीसीजी वैक्सीनेशन को शामिल किया गया। सन् 1977 तक देश में कई बीमारियों के टीके बनने लगे। भारत में 1985 में सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया गया। उस समय यहां पोलियो के करीब 1 लाख 50 हजार मामले थे। भारत में संसाधनों की कमी और दूरदराज के गांवों तक वैक्सीन की पहुंच एक बड़ी चुनौती थी, जिसे देखकर पूरी दुनिया को भारत की सफलता पर संदेह था। उस समय दुनिया के लगभग सभी देश टीकाकरण केंद्रों तक लोगों के पहुंचने का इंतजार करते थे, लेकिन भारत ने सघन रणनीति बनाई। इसने टीकाकरण केंद्रों तक लोगों की पहुंचने की जरूरत ही खत्म कर दी। दुनिया के इतिहास में पहली बार भारत में लोगों के दरवाजे तक वैक्सीन पहुंचाई गई। देश में करीब 33 हजार से अधिक निगरानी केंद्र बनाए गए। 23 लाख से ज्यादा कर्मचारियों ने घर—घर जाकर बच्चों को पोलियो की खुराक पिलाई।

टीकाकरण में भारत के इसी अनुभव और विशेषज्ञता के कारण पूरी दुनिया को यह विश्वास था कि कोरोना टीका बनने के बाद भारत के लिए अपने नागरिकों तक टीका पहुंचाना कठिन नहीं होगा। किन्तु आज हम हर भारतवासी तक टीका पहुंचाने के बारे में सोच भी नहीं पा रहे हैं। गौरतलब है कि आज हमने दशकों पुरानी उस टीकाकरण नीति को उलट दिया, जिसके जरिए हम घर-घर टीका पहुंचाने में सफल रहे हैं।

पहले जहां हम टीकाकरण को सुलभ बनाते थे, लोगों को आकर्षित करते थे और उनके घर जाकर टीका लगाते थे, वहीं आज लोगों को टीकाकरण केंद्रों से बाहर धकेला जा रहा है। पहले तो टीकाकरण के लिए ऑनलाइन पंजीयन करवाना जरूरी कर दिया गया। इस व्यवस्था की दो सबसे बड़ी कमजोरी नजर आई। एक, सर्वर डाउन होने, स्लॉट नहीं मिलने की शिकायत रही। फिर, देश में असंख्य लोग मोबाइल फोन होने के बावजूद इंटरनेट के उपयोग का हुनर नहीं जानते। दूसरी बात, देश में करीब 50 प्रतिशत लोगों के पास इंटरनेट की सुविधा नहीं हैं। यही वजह है कि सरकार को ऑनलाइन पंजीकरण की शर्त हटानी पड़ी। ऐसी शर्तें लगाई ही क्योंं जाती हैं?

(लेखक समसामयिक मामलों के जानकार )

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