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बदलाव लाएगी ये बयार!

Published: Dec 07, 2015 11:44:00 pm

किसी भी समस्या से निपटने के लिए विचार की शक्ति अहम होती है। ‘जहां है
जैसा है’ और ‘चलता है’ से आगे बढ़कर कुछ अलग सोच की जरुरत होती है। वायु
प्रदूषण गंभीर समस्या है

Air pollution

Air pollution

किसी भी समस्या से निपटने के लिए विचार की शक्ति अहम होती है। ‘जहां है जैसा है’ और ‘चलता है’ से आगे बढ़कर कुछ अलग सोच की जरुरत होती है। वायु प्रदूषण गंभीर समस्या है। इससे निपटने की शुरुआत दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने की है। निजी कारों के लिए सम/विषम नंबर प्लेट के आधार पर चलने के दिन निर्धारित करने का उपाय खोजा है। नई पहल है। समर्थन-विरोध के स्वर उठ रहे हैं। इस अल्पकालिक उपाय को बरतकर दीर्घकालिक हल खोजने होंगे। अन्य शहर भी पहल करें। कार पूल व सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था के इस्तेमाल से आवागमन संबंधी असुविधा का मुकाबला किया जा सकता है। हमें अपने ‘सुविधा स्तर’ में भी बदलाव करने होंगे। दिल्ली की पहल क्या देश में प्रदूषण के स्तर में बदलाव की बयार ला पाएगी…

साहसिक व चतुराई से भरा फैसला है यह
जी.डी. अग्रवाल पूर्व अति.परिवहन आयुक्त, राजस्थान
दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बहुत ही खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने प्रदूषण की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए ही तो इस राज्य को गैस चैंबर कहकर संबोधित किया। इतनी खतरनाक स्थिति के मद्देनजर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक-एक दिन छोड़कर सम और विषम संख्या वाहन चलाने का फैसला लिया है। इस फैसला का स्वागत किया जाना चाहिए। मेरी निजी राय में तो यह बहुत ही साहस से परिपूर्ण चतुराई से भरा फैसला कहा जा सकता है।

कम हो जाएगा प्रदूषण
दिल्ली में रोजाना बड़ी संख्या में वाहनों की बिक्री होती है और शायद संसार में सर्वाधिक वाहनों का संचालन इसी शहर में होता है। यहां केवल स्थानीय वाहन ही नहीं बल्कि विभिन्न प्रदेशों से आने वाले वाहनों का भी भारी संख्या में संचालन होता है। दिल्ली में हरियाली काफी है, इसके बावजूद वाहनों के कारण होने वाले प्रदूषण को रोक पाना नाकाफी साबित हो रहा है। ऐसे में यदि एक-एक दिन छोड़ कर सम और विषम संख्या वाले वाहनों का संचालन होगा तो निश्चित तौर पर 50 फीसदी प्रदूषण में कमी आ सकती है। यह फैसला मील का पत्थर साबित होगा।

इस फैसले के संदर्भ में मेरी राय यह है कि भले ही एक बार को यह फैसला असुविधाजनक लगे लेकिन यह आम जनता के हित में लिया गया फैसला है। आखिरकार इससे आम जनता को ही लाभ मिलने वाला है। मेरी राय में तो इस फैसले को अन्य राज्यों के मेट्रो शहरों और बी ग्रेड कहे जाने वाले शहरों में भी इसे लागू किया जा सकता है। सरकारों को एक बार राजनीतिक हितों को छोड़कर फैसला लेना होगा। इस बात से मैं पूर्ण रूप से सहमत हूं कि यदि फैसला लागू हो गया तो शुरुआत में आम जनता को कुछ परेशानियां उठानी पड़ सकती हैं। लेकिन, दिल्ली सरकार इस मामले में सार्वजनिक यातायात व्यवस्था को बेहतर करने का वायदा भी कर रही है। यदि इस फैसले को सकारात्मक तरीके से देखेंगे तो तो हम पाएंगे कि किसी भी नई बात को अपनाने में शुरुआत में कुछ परेशानियंा तो आती ही हैं लेकिन ऐसी कौनसी परेशानी है जिसका हल नहीं निकाला जा सकता। बढ़ते प्रदूषण को कम करने का इससे बढिय़ा उपाय यही हो सकता है, और इसके अतिरिक्त कोई विकल्प भी नहीं है।

चरणबद्ध हो तरीका
शुरुआती स्तर पर इस फैसले को लागू करने में कई समस्याएं आएंगी। लेकिन, इन समस्याओं का समाधान भी निकाला जा रहा है। मेट्रो रेल नेटवर्क बढ़ाया जा रहा है। बस सेवाओं का भी विस्तार किया जा रहा है। फिर भी परेशानी है तो इसे चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाए। शुरुआती स्तर पर दिल्ली के चौपहिया वाहनों को इस दायरे में लिया जाए। दुपहिया वाहनों को शुरुआती स्तर पर मुक्त रखा जा सकता है। दुपहिया वाहन चालक यदि आवश्यक सेवाओं से जुड़ा हुआ है तो भी उसके समय से नहीं पहुंचने में दिक्कतें आएंगी। उदाहरण के तौर पर यदि कोई बिजली वाला है, सेनेटरी फिटिंग वाला है तो वह दो वाहन कैसे खरीद सकता है? उन्हें तो मुक्त रखा जा सकता है। इसके अलावा अन्य राज्यों के वाहनों को और विभिन्न दूतावासों के वाहनों और टैक्सियों को भी मुक्त रखा जा सकता है।

80% कारों में एक व्यक्ति!
अरुण श्रीवास्तव जेएनयू, नई दिल्ली
वायु प्रदूषण दिल्ली समेत देश के कई शहरों का दम घोंट रहा है। दिल्ली में निजी कारों के बारे में निकाला गया सरकारी फॉमूला सैद्धांतिक रूप से ठीक प्रतीत हो रहा है। असल परीक्षा इसके व्यवहारिक रूप से सफल होने पर टिकी रहेगी। इसे लोगों का भी समर्थन मिलना चाहिए। दिल्ली में प्रदूषण का एक बड़ा कारण सड़कों पर रोज दौडऩे वाले लगभग 80 लाख वाहन हैं। इनमें से निजी कारों की संख्या लगभग 25-30 लाख है।

देखने में आया है कि सड़कों पर दौडऩे वाली लगभग 80 फीसदी कारों में एक ही व्यक्ति बैठा होता है। इससे स्पष्ट है कि निजी कारें आवागमन का व्यक्तिगत जरिया है। इसे रोका जा सकता है। सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को और अधिक बेहतर बनाया जा सकता है। जिससे कि लोगों में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था के बारे में और अधिक विश्वास उत्पन्न हो सके। देखने में आया है कि दिल्ली समेत देश के कई शहरों में पीएम 2.5 (हवा में प्रदूषण का मानक) से ज्यादा प्रदूषण स्तर है। ये कई प्रकार की गंभीर बीमारियों को जन्म देता है।

डीजल वाहनों से समस्या
देश में डीजल के वाहन वायु प्रदूषण की समस्या को बढ़ाने का बहुत बड़ा कारण है। शोध के अनुसार डीजल के वाहन पेट्रोल के मुकाबले चार से पांच गुना अधिक वायु प्रदूषण फैलाते हैं। डीजल के पुराने वाहन तो वायु प्रदूषण का और भी बड़ा कारण हैं। डीजल के वाहनों पर प्रभावी अंकुश के लिए सरकार की ओर से कानून तो बहुत से बनाए गए, लेकिन इनका क्रियान्वयन प्रभावी ढंग से नहीं हो पा रहा है। इसके लिए सरकारों को प्रत्येक शहर में ज्यादा से ज्यादा बायपास सड़कें और फ्लाईओवर बनाने चाहिए। सड़कों पर होने वाले वायु प्रदूषण को रोकने के लिए ट्रेफिक व्यवस्था को भी और चुस्त-दुरुस्त करने की आवश्यकता है।

रेफिक जाम के कारण सड़कों पर खड़ी गाडिय़ों से भारी मात्रा में धुंआ निकलता है। साथ ही गाडिय़ों को वैकल्पिक मार्गों से लंबा चक्कर काटना पड़ता है। विश्व के अन्य शहरों में वायु प्रदूषण को कम करने में स्थानीय लोगों की जागरूकता भी सहायक साबित हुई है। वहां लोग अपने अधिकारों के साथ अपने कत्र्तव्यों के प्रति सजग रहते हैं। ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था का इस्तेमाल करते हैं। साथ ही शहरों की ट्रेफिक व्यवस्था भी सुचारू रहती है। जिससे कि वाहनों की रेलमपेल की स्थिति पैदा नहीं होती है। वायु प्रदूषण को कम करके हम आने वाली पीढ़ी को एक बेहतर कल प्रदान कर सकते हैं।


प्रदूषण अलार्म प्रणाली का भी विकास हो

सुनील दहिया ग्रीनपीस एक्टिविस्ट
दिल्ली में प्रदूषण को कम करने के लिए सम-विषम नंबर के आधार पर निजी कारों को चलाने का निर्णय स्वागत योग्य कदम है। इससे प्रदूषण की समस्या पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। प्रदूषण के कारण लोगों में कई जानलेवा बीमारियां पैदा हो रही हैं। देश के अन्य शहरों में भी कारों को चलाने के बारे में ये फॉर्मूला लागू किया जाना चाहिए। औद्योगिक क्षेत्रों में भी प्रदूषण को रोका जाना चाहिए।

पिछले दिनों नेशनल एयर क्वालिटी इंडेक्स पोर्टल शुरू किया गया है। इससे रीयल टाइम में शहरों में प्रदूषण की स्थिति प्राप्त की जा सकती है। चीन और अन्य पश्चिमी देशों में प्रदूषण खतरनाक स्तर पर जाने पर अलार्म प्रणाली सक्रिय हो जाती है। स्कूल बंद हो जाते हैं, औद्योगिक क्षेत्रों में भी कारखानों को बंद कर दिया जाता है। इससे लोगों में प्रदूषण की समस्या पर कार्रवाई करने के प्रति जागरूकता विकसित होती है। हमारे देश में भी इस प्रणाली को विकसित किया जा सकता है। बीजिंग ने प्रदूषण की समस्या पर काफी हद तक इसी अलार्म प्रणाली से काबू पाया है।

सार्वजनिक परिवहन बढ़े
सर्दियों में प्रदूषण का असर हमें ज्यादा देखने को मिलता है। क्योंकि हवा सघन होने के कारण अपशिष्ट फैल नहीं पाते हैं। देश में वायु प्रदूषण का स्तर भारतीय मानकों से भी कहीं ज्यादा है। इसे रोकने के लिए दिल्ली फॉर्मूले से भी आगे की सोच रखनी होगी। सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को भी और बेहतर बनाया जाना चाहिए। जिससे कि निजी कार नहीं चला पाने की स्थिति में लोगों को किसी प्रकार की आवागमन संबंधी समस्या का सामना नहीं करना पड़े। ऊर्जा उत्पादन को भी और अधिक पर्यावरण अनुकूल बनाना होगा। वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए मौजूदा कानूनों की कड़ाई से पालना हो। जिससे कि प्रदूषण पर प्रभावी रोक लग सके। विश्व के कई देशों ने सम्मिलित प्रयासों से वायु प्रदूषण की समस्या पर काफी हद तक काबू पाया है।

नीयत अच्छी लेकिन इसे लागू कर पाना कठिन

सतीश शर्मा दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल सोसाइटी
एक-एक दिन छोड़कर सम और विषम संख्याओं वाले वाहनों के संचालन का दिल्ली सरकार का फैसला दृष्टिकोण के लिहाज से बहुत सकारात्मक और अच्छा फैसला कहा जा सकता है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की नीयत समझ आती है कि वे दिल्ली के हित में कठोर से कठोर फैसला लेने में भी पीछे नहीं है। इस मामले में केवल एक ही परेशानी है कि यह क्रियान्वयन के स्तर पर लागू होना बहुत ही कठिन है।

हो सकता है, लोग ऐसा सोचें कि अन्य राज्यों के वाहन किस प्रकार दिल्ली में प्रवेश करेंगे और दूसरे दिन वापस कैसे जाएंगे लेकिन जरा यह भी सोचिए दिल्ली के लोगों का क्या होगा? उदाहरण के तौर पर मेरी ही मां को यदि मुझे अस्पताल ले जाना और मेरे निजी वाहन से सम-विषम संख्या के फार्मूले के आधार पर ले जाना संभव नहीं होगा तो मेरा क्या फैसला होगा? मैं क्या अन्य कोई भी व्यक्ति कानून की परवाह न करते हुए अपनी मां को अस्पताल लेकर जाएगा और जुर्माना भरने को भी तैयार रहेगा। इसके अलावा दिल्ली सरकार भ्रष्टाचार से लडऩे की बात करती है तो क्या इस फैसले से भ्रष्टाचार को बढ़ावा नहीं मिलेगा?

एसयूवी को मंजूरी क्यों?
ट्रेफिक पुलिस सिपाही को अवैध वसूली का एक जरिया उपलब्ध करा दिया गया है। यह फैसला कितना भी अच्छा हो लेकिन लागू कर पाने के मामले में उचित नहीं लगता। सरकार को प्रदूषण की चिंता थी तो व्यवसायिक वाहनों के लिए जब सीएनजी की अनिवार्यता लागू की गई तो डीजल चालित निजी एसयूवी को अनुमति क्यों दी गई। आज पानी सिर से गुजरने लगा तो ऐसे अजीबोगरीब फैसले थोपना समझ से परे है। यह ठीक है कि दिल्ली सरकार के फैसले का भारत के मुख्य न्यायाधीश ने समर्थन किया है लेकिन यह उनकी निजी राय है। हो सकता है कि न्यायिक दृष्टि इसे सही नहीं ठहराया जाए।

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