scriptThings can change if children join the farms | खेत-खलिहानों से बच्चे जुड़ें तो बदल सकते हैं हालात | Patrika News

खेत-खलिहानों से बच्चे जुड़ें तो बदल सकते हैं हालात

Published: Jun 06, 2023 10:06:23 pm

Submitted by:

Patrika Desk

किसान को खुशहाल बनाने पर चिंतन करने की जरूरत है। कृषि के साथ पशुपालन की जानकारी भी स्कूलों से ही मिलने लगे, तो देश की नई दिशा तय हो सकती है। बच्चों को गांवों से जोडऩा होगा, ताकि वे खेत-खलिहान से अनभिज्ञ न रहें।

खेत-खलिहानों से बच्चे जुड़ें तो बदल सकते हैं हालात
खेत-खलिहानों से बच्चे जुड़ें तो बदल सकते हैं हालात
डॉ. ईश मुंजाल
राजस्थान मेडिकल काउंसिल के सदस्य
बदलते दौर में अब भी बहुत कुछ बदलने की जरूरत है। कृषि के साथ पशुपालन आज भी अधिकाधिक आबादी के जीवन का आधार है। विडंबना यह है कि न कृषि उद्योग का रूप ले पा रही है, न ही पशु पालन। पुराने ढंग को बदलने की कोशिश नाकाफी साबित हो रही है। आजादी के 75 बरस बाद भी सबसे कम विकास कृषि क्षेत्र में दिखाई देता है। एक चिकित्सक होने के नाते मैंने महसूस किया कि जहां चिकित्सा समेत अन्य क्षेत्रों में खूब विकास हुआ, हर जिले में मेडिकल कॉलेज खोलने तक के प्रयास चल रहे हैं, वहीं कृषि के तौर-तरीकों में खास बदलाव नहीं हुआ है।
कृषि अब तक ठीक ढंग से पढ़ाई का हिस्सा नहीं बन पाई। वेटरनरी कॉलेज/अस्पताल भी गिनती के ही रह गए हैं। चिंता की बात है कि कृषि और पशुपालन को हलके में लिया जा रहा है। नए जमाने के लोग इसे तुच्छ समझ रहे हैं। हां, कुछ पढ़े-लिखे युवक इस क्षेत्र में नए-नए कीर्तिमान रच रहे हैं। कुछ साल पहले हुए सर्वे के तहत करीब चालीस फीसदी किसान अपनी आर्थिक स्थिति से पूरी तरह से असंतुष्ट थे। आबादी का एक बड़ा हिस्सा प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से अन्य क्षेत्रों की तुलना में रोजगार अवसरों के लिए कृषि क्षेत्र पर अधिक निर्भर है। बावजूद इसे और बढ़ाने के लिए न किसान आगे आ रहे हैं, न ही सरकार। ज्यादा फसल प्राप्त करने और कृषि उत्पादन में निरंतर वृद्धि के लिए गुणवत्तापूर्ण बीज जरूरी है। इनके उत्पादन और वितरण का हाल ऐसा है कि अधिकतर किसानों तक उच्च गुणवत्ता वाले बीज पहुंच ही नहीं पाते। अपने देश में कृषि का मशीनीकरण 40 फीसदी है, जो ब्राजील के 75 तथा अमरीका के 95 फीसदी से काफी कम है। इसके अलावा भारत में कृषि ऋण वितरण में भी असमानता है।
काफी संख्या में किसान अशिक्षित हंै। इस कारण वे नए वैज्ञानिक तरीकों का प्रयोग नहीं कर पाते। वे अच्छी खाद और गुणवत्तापूर्ण बीज के बारे में भी नहीं जानते। नए ढंग से खेती कर कैसे उत्पादन बढ़ाकर अपनी कमाई बढ़ाएं, इसकी भी उनको खास जानकारी नहीं है। कृष जैसा महत्त्वपूर्ण विषय ही पढ़ाई से दूर है। गिने-चुने कृषि कॉलेज के भरोसे कृषि व्यवस्था को ठीक किया जाना संभव नहीं है। कृषि क्षेत्र में अनुसंधान पर्याप्त नहीं है। कृषि के लिए दी जाने वाली सब्सिडी को भी तर्कसंगत बनाने की जरूरत है। इसमें तकनीक का महत्त्वपूर्ण योगदान हो सकता है। कृषि से जुड़ी समस्याओं का हल ढूंढा जाना चाहिए। कृषि उत्पादों के भंडारण और उनके वितरण वाले पहलू पर भी ध्यान देना होगा।
किसान खेती करने के साथ-साथ पशुपालन भी करते हैं। इसके बाद भी बहुत कुछ है, जो यहां भी ढंग से नहीं हो रहा। गिनती के वेटरनरी कॉलेज/ अस्पताल हैं, बीमार पशुओं के उपचार की ढंग से कोई व्यवस्था नहीं है। इसके लिए गिने-चुने पशु सहायक मदद को उपलब्ध हो जाते हैं, तो कहीं ये भी नहीं मिलते। पशु चिकित्सक अधिकांशत: शहरों में सिमट कर रह जाते हैं। वहां भी पालतू श्वानों का इलाज उनकी प्राथमिकता होती है। कम कॉलेज के चलते इस क्षेत्र में युवा भी कम ही आगे आ पाते हैं। पशुओं के टीकाकरण समेत अन्य जरूरी एहतियात से भी किसान अवगत नहीं हो पाते। न ही आधुनिक तौर-तरीकों के साथ जुड़ पाते। एक कमी यह भी है कि इस क्षेत्र में नए अध्ययन-अनुसंधान पर भी ध्यान कम दिया जा रहा। किसान को खुशहाल बनाने पर चिंतन करने की जरूरत है। कृषि के साथ पशुपालन की जानकारी भी स्कूलों से ही मिलने लगे, तो देश की नई दिशा तय हो सकती है। बच्चों को गांवों से जोडऩा होगा, ताकि वे खेत-खलिहान से अनभिज्ञ न रहें।
Copyright © 2023 Patrika Group. All Rights Reserved.