विश्वयुद्ध की आशंका पर हर किसी का चिंतित होना स्वाभाविक है। भारत जैसे देश के लिए विशेष रूप से। रूस ने भारत का दशकों तक साथ निभाया है। तो हाल के दिनों में अमरीका भारत का नया मित्र बनकर उभरा है। भारत की विदेश नीति को ध्यान में रखा जाए तो इसके तटस्थ रहने के प्रबल आसार हैं। लेकिन बड़ा सवाल ये कि क्या आग की लपटों से बचना इतना आसान होगा। भारत भले किसी पाले में खड़ा नजर नहीं आए लेकिन क्या हमारे पड़ोसी चीन और पाकिस्तान ऐसा होने देंगे। चीन और पाकिस्तान का अमरीकी विरोध किसी से छिपा नहीं। युद्ध की आशंका के बीच सबसे बड़ी चिंता मध्यस्थ देशों की कमी के रूप में नजर आती है।
ऐसा कोई देश नहीं जो इन दो महाशक्तियों को समझाने में कामयाब हो पाए। इस दौर में संयुक्त राष्ट्र भी कुछ कर पाएगा, उम्मीद कम ही नजर आती है। पिछले लम्बे समय से सीरिया गृह युद्ध की आग में झुलस रहा है। सीरिया में सरकार समर्थक और विरोधी खून की होली खेल रहे हैं। लेकिन संयुक्त राष्ट्र इसमें अपनी भूमिका निभाता कभी नजर नहीं आया। विश्वयुद्ध की सूरत बनी तो भी संयुक्त राष्ट्र इसे रोक पाएगा, कहना मुश्किल है। अमरीका और रूस की धमकियों के बीच तनाव बढऩा तय है। पहले दो विश्वयुद्धों की त्रासदी दुनिया आज तक नहीं भूली है। चिंता यह है कि आज के दौर में युद्ध हुआ तो कितने हिरोशिमा और नागासाकी तबाह होंगे। जो जख्म लगेंगे उन्हें भरने में कितने दशक लगेंगे।