scriptसीधी बात: किस मुंह जाओगे! | This time Democracy fest will be celebrated with Deepawali | Patrika News

सीधी बात: किस मुंह जाओगे!

locationजयपुरPublished: Nov 02, 2018 03:06:28 pm

Submitted by:

Rajiv Ranjan

अब मतदान को कुछ दिन ही रह गए हैं, गली-मोहल्लों में नेता नहीं दिखाई दे रहे। उन्हें तो दीपावली की बधाई देने में भी धूजनी छूट रही है। सही है। मौका अच्छा है। जनता भी हिसाब ले ही ले।

Democracy fest

Democracy fest

राजीव तिवारी
इस बार दीपावली के साथ लोकतंत्र का महापर्व भी मनाया जाएगा। दीपोत्सव के कुछ दिन बाद राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होगा। 11 दिसम्बर को सामने आ जाएगा कि किसकी लगी लॉटरी और किसका निकला दिवाला। यूं तो 1952 से राज्य में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। लेकिन संभवत: पहला मौका है जबकि सत्ता पक्ष ही नहीं विपक्ष के नेता भी आमजन के दर पर जाने से कतरा रहे हैं, घबरा रहे हैं। ये घबराहट यंू ही नहीं है। पांच साल जनता से दूरी इतनी बना ली कि अब किस मुंह से सामने जाएं। जनता एक-एक दिन का हिसाब मांगेगी। बिजली-पानी-सड़क-सफाई-सुरक्षा जैसे मुद्दे तो तीनों प्रदेशों में हैं ही। इस बार गांवों का किसान लठ्ठ लेकर खड़ा है। पाले, बाढ़, सूखे ने उसको इतना नहीं सताया जितना ‘माननीयों’ के आश्वासनों की बाढ़ ने उसके विश्वास को डुबोया है। ना नहरों में पानी, ना कुओं पर बिजली, घटिया बीज, मौसम की मार झेल कर जैसे-तैसे कुछ उपजाया भी तो उसे सरकार खरीद नहीं रही और आढ़तिए दाम नहीं दे रहे। नतीजा कर्ज में डूबे सैकड़ों किसानों ने आत्महत्या कर ली।

यही वजह है कि ज्यादातर मंत्री ही नहीं अधिकांश विधायक भी अपना निर्वाचन क्षेत्र बदलना चाहते हैं। टिकट की जल्दी किसी को नहीं। दीपावली बाद घोषित होंगे तो मतदाता के बीच कम जाना पड़ेगा। स्थानीय मुद्दे केन्द्रीय नेताओं के भाषणों में दब जाएंगे। ध्यान बंट जाएगा। निर्वाचन क्षेत्र बदल गया तो नए लोगों के बीच नए आश्वासनों के झांसे चल जाएंगे। राममन्दिर, रफाल, सीबीआई, पाकिस्तान, कश्मीर इन भारी भरकम नामों में जात-पांत, शिक्षा, सेहत जैसे स्थानीय मुद्दे दब जाएंगे। गौण हो जाएंगे।

पिछले पांच सालों में राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में कितनी पेयजल योजनाएं पूरी हुईं? अपराध कितने बढ़े? कितने नए अस्पताल बने? व्यापार और व्यापारी किस हाल में हैं? कितने किलोमीटर नई रेल लाइन डलीं? कितने नए मार्गों पर बसें चलीं? कितने नए स्कूल-कॉलेज-विश्वविद्यालय बने? मातृ-शिशु मृत्यु दर में कितना सुधार हुआ? कुल मिलाकर स्थानीय लोगों का जीवन स्तर बदतर ही हुआ है। लोगों में आक्रोश है और यही डर नेताओं को सता रहा है। मुंह छिपाने पर मजबूर कर रहा है। सत्ता पक्ष तो वादे करके भूल गया लेकिन विपक्ष ने भी जनता का कहां साथ दिया?

कांग्रेस के नेता गुटबाजी या बयानबाजी से आगे नहीं बढ़ पाए। किसी मुद्दे पर आम-आदमी के साथ खड़े नहीं दिखे। दु:ख इस बात का है कि लोकतंत्र कहां जा रहा है? अपने सही मायने खो रहा है। अब तो जनता को छोड़ो, एक-दूसरे को कोसो। यही ध्येय वाक्य बन गया लगता है राजनेताओं और राजनीतिक दलों का। मध्यप्रदेश में व्यापमं, छत्तीसगढ़ में नक्सल समस्या, राजस्थान में बजरी माफिया। मोदी-शाह-राहुल के भाषणों में इनका जिक्र उतनी दमदारी से क्यों नहीं मिलता हैं? इनका जिक्र कर दिया तो जवाब क्या देंगे? ज्यादातर मतदाता अब युवा है, शिक्षित है। लेकिन बेरोजगार है। वो चुनाव रैलियों में भीड़ का हिस्सा तो बनता है, सबको सुनता भी है। नेताओं के भाषण ही उसे उद्वेलित कर रहे हैं, आक्रोशित कर रहे हैं। क्योंकि वो जो सुनकर आता है उसे धरातल पर नहीं पाता। यही आक्रोश नेताओं को जगह बदलने पर मजबूर कर रहा है। नए मोर्चे भी बन रहे हैं। अब मतदान को कुछ दिन ही रह गए हैं, गली-मोहल्लों में नेता नहीं दिखाई दे रहे। उन्हें तो दीपावली की बधाई देने में भी धूजनी छूट रही है। सही है। मौका अच्छा है। जनता भी हिसाब ले ही ले। दीपावली बाद सूचियां भी आ जाएंगी। नए चेहरे भी दिखेंगे। ‘मिलावटी माल’ से दूरी बनाएं और त्यौहारों पर खुशहाली का संकल्प लें। दीपावली की शुभकामनाएं!

rajiv.tiwari@epatrika.com

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो