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सोच लिया

मैंने धाम लिया का लोक भाषा में अर्थ है मुझे जो सोचना था वो सोच लिया। अब तुम्हारी तुम जानो। इस संसार में

Apr 08, 2016 / 11:56 pm

मुकेश शर्मा

Thought

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मैंने धाम लिया का लोक भाषा में अर्थ है मुझे जो सोचना था वो सोच लिया। अब तुम्हारी तुम जानो। इस संसार में आपको कदम-कदम पर अपने इर्दगिर्द ही ऐसे लोग मिल जाए जो धाम लेते हैं तो बस धाम लेते हैं- यह कहते हुए हमारे हमप्याला, हमनिवाला मित्र ‘गोजो ने सामने रखे प्याले से एक लम्बा घूंट सुड़का और बोले- अब मैं तुम्हारे समक्ष ‘धाम लियाÓ की सविस्तार व्याख्या करूंगा। गोजो बोले- मानो तुम्हारी रिश्तेदारी में किसी लड़के या लड़की का ब्याह हुआ है। ब्याह होने के दो दिन के अन्तराल में तुम जाकर छोरे-छोरी के बाप से बात करो। अब चाहे वह अमीर हो या गरीब लेकिन वो शादी का ऐसा जोरदार चित्रण करेगा मानो इससे बढि़या ब्याह इतिहास में कभी हुआ ही नहीं।


वह एक-एक मिठाई के स्वाद का वर्णन करेगा, एक-एक मेहमान का जिक्र करेगा और यह सिद्ध कर देगा कि उसके खानदान में आज तक ऐसा ब्याह हुआ ही नहीं। दरअसल इन दो दिनों वह ‘धाम लियाÓ नामक क्रिया के प्रभाव में रहता है। और जैसे-जैसे ब्याह के किए कामों का पेमेन्ट मांगने वाले आते रहेंगे वैसे-वैसे ही उत्कृष्टता का भूत उसके माथे से उतरता चला जाएगा। इस दुनिया में हजार दो हजार नहीं वरन् करोड़ों लोग ऐसे होते हैं जो अपने मस्तिष्क में जो तय कर लेते हैं बस वही उनकी दुनिया बन जाती है।


 मसलन पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी के स्थापना दिवस पर भाजपा अध्यक्ष अमित भाई शाह ने कहा कि उनकी पार्टी अगले पच्चीस साल तक पंचायत से पार्लियामेंट तक राज करेगी। अमित भाई के इस भाषण के बाद तो आप ‘धाम लियाÓ को पूरी तरह समझ ही गए होंगे। पता नहीं क्यों अमित शाह दिल्ली और बिहार में भारतीय जनता पार्टी के खस्ता हार को इतनी जल्दी भूल गए। ‘धाम लियाÓ एक संक्रामक बीमारी है जो बिजली की गति से एक दिमाग से दूसरे दिमाग तक फैलती है। ऐसा नहीं कि हम इस महारोग से बचे हुए हैं। कई बार शाम को अपने मित्रों के साथ क्षणिक आचमन करने के बाद हम भी धाम लेते हैं कि हम इस दुनिया के श्रेष्ठतम लेखक हैं लेकिन जैसे-जैसे आवेग उतरता है हमें अहसास हो जाता है- अरे मूर्ख! काहे को ख्याली पुलाव पकाता और खाता है।


 इस तरह के विचारों से तो दिलोदिमाग कुंठित ही होता है। इस मामले में हमारे ‘गोजोÓ सरीखे मित्र बड़े ही यथार्थवादी हैं, चाहे कुछ भी हो जाए, उनके पैर हमेशा धरातल पर टिके रहते हैं। जरा-सी सफलता पाकर हमने उन्हें जमीन से डेढ़ इंच ऊपर चलते आज तक नहीं देखा। बहरहाल इतना जरूर कहेंगे कि ‘धाम लेनेÓ पर मनुष्य को जो आनंद मिलता है वह अतुलनीय है। ‘कनक कनक ते सौ गुना, मादकता अधिकायÓ की तर्ज पर कहें तो ‘धाम लेनेÓ का नशा दुनिया के सारे नशों से हजारों गुणा ज्यादा होता है। चाहे तो आप भी धाम लीजिए। फिर देखिए सारी दुनिया आपको अपने पैरों तले नजर आएगी। पर जल्दी ही इस नशे से निकल भी आना वरना दुनिया ‘बावलाÓ कह कर चिढ़ाने लगेगी। -राही

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