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चिकित्सा क्षेत्र पर खास ध्यान देने का समय

Published: Jan 31, 2023 08:28:14 pm

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Patrika Desk

यह भी ध्यान रखना होगा कि बजट बढ़ाने मात्र से स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार नहीं होता। अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए अच्छी स्वास्थ्य नीति और उसका सफल क्रियान्वयन जरूरी है।

डॉ. ए.के. अरुण
राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त जनस्वास्थ्य वैज्ञानिक

वित्तीय वर्ष 2023-24 का केंद्रीय बजट एक फरवरी को संसद में पेश किया जाएगा। इस बजट में देश के विभिन्न तबकों और क्षेत्रों को कई उम्मीदें हैं, लेकिन मौजूदा दौर में स्वास्थ्य का क्षेत्र सबसे अहम है। यह समय का तकाजा भी है कि बजट में स्वास्थ्य के क्षेत्र पर गंभीरता से ध्यान दिया जाए। स्वास्थ्य पर सरकारी बजट बढ़ाने की लंबे समय से मांग की जा रही है। नवीनतम राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा रिपोर्ट के अनुसार यह लगभग 1.2-1.3 प्रतिशत पर स्थिर है। इसे 2025 तक 2.5-3.0 प्रतिशत तक बढ़ाने की आवश्यकता है, जैसा कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 में वादा किया गया था। विगत दो वर्षों से देश में कोरोना वायरस के आतंक के दौरान सबने देखा कि सबसे बुरी हालत मेहनतकश गरीब लोगों की थी। सरकारी अस्पताल करीब-करीब नाकारा ही साबित हुए। कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो देश के 85 फीसदी अस्पताल धन के अभाव में अब भी महज ढांचे के रूप में खड़े हैं। कई प्रदेशों में जिला स्तर के अस्पताल भी उजड़े हुए दिखते हैं। वहां न तो पर्याप्त चिकित्सक हैं और न ही दवा। यदि देश के 748 जिले के अस्पताल ठीक होते, तो महामारी के दौरान ऐसी अफरा-तफरी नहीं मचती। महामारी के संकटकाल में देश ने बहुत ही बुरे मंजर देखे। आगामी बजट में यह उम्मीद और अपेक्षा है कि सरकार आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए जिला एवं प्रखंड स्तर पर सक्षम अस्पतालों की व्यवस्था करेगी।
प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत स्वास्थ्य ढांचागत निर्माण मिशन (पीएमएबीएचआइएम) उन योजनाओं में से एक है, जिसे देश भर में प्राथमिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे को उन्नत करने के लिए शुरू किया गया था। 2021-22 से 2025-26 की अवधि के लिए 64,180 करोड़ रुपए के प्रावधान की बात थी, लेकिन पिछले दो बजट में कुल मिलाकर लगभग 8000 करोड़ रुपए का ही आवंटन किया गया है। इसे बढ़ाने की जरूरत है, क्योंकि पीएमजेएवाइ और पीएमएसएसवाइ में विस्तार के साथ तृतीयक देखभाल का ध्यान रखा गया है। पीएमएबीएचआइएम के शेष हिस्से को अगर अगले तीन वित्त वर्ष के लिए तीन समान अनुपात में विभाजित किया जाता है, तो 2023-24 के बजट में इसके लिए लगभग 18,000 करोड़ रुपए खर्च किए जाने चाहिए। स्वास्थ्य और चिकित्सा क्षेत्र की क्षमता बढ़ाने पर प्राथमिकता से ध्यान देना होगा। आजादी के 75 वर्ष बाद भी सरकारी अस्पतालों का ढांचा और संरचना न तो पर्याप्त है और न ही आज की आवश्यकताओं के अनुरूप। अस्पतालों को आकस्मिक हालात से निपटने के लायक बनाना आज की सबसे बड़ी जरूरत है। प्रत्येक अस्पताल को मेडिकल इमरजेंसी की जरूरतों के मुताबिक सक्षम बनाना, ऑक्सीजन प्लांट, सर्जरी की समुचित व्यवस्था, आवश्यक व जीवनरक्षक दवाओं की हर समय उपलब्धता, प्रत्येक अस्पताल में एम्बुलेंस, बायोमेडिकल वेस्ट, डिस्पोजल व्यवस्था, साफ-सफाई आदि को सुनिश्चित करना एवं सुदृढ़ बनाना बेहद जरूरी है। कोरोनाकाल में हालांकि पूरी दुनिया में स्वास्थ्य व्यवस्था की कमियां दिखीं, लेकिन हमारे देश में तो स्थिति बहुत ही विस्फोटक और डरावनी थी। बजट 2023-24 में यदि इन तथ्यों को ध्यान में रखा गया, तो शायद कुछ सार्थक हो पाएगा।
यह भी ध्यान रखना होगा कि बजट बढ़ाने मात्र से स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार नहीं होता। अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए अच्छी स्वास्थ्य नीति और उसका सफल क्रियान्वयन जरूरी है। सरकारी अस्पतालों की क्षमता को बढ़ाना, डॉक्टरों की संख्या को बढ़ाना, मुफ्त टीकाकरण उपलब्ध कराना, जेनेरिक दवाओं की दुकानों की संख्या बढ़ाना, सरकार द्वारा सभी नागरिकों का स्वास्थ्य बीमा, अस्पतालों को चैरिटेबल संस्था के दायरे में लाने आदि प्रावधान करके सरकार देश की स्वास्थ्य व चिकित्सा व्यवस्था को मजबूत कर सकती है। हमारे देश में आयुष चिकित्सा पद्धतियां चिकित्सा के 50 फीसदी मामलों को सफलतापूर्वक देख सकती हंै। उच्च अध्ययन के बाद गम्भीर रोगों के इलाज के लिए भी आयुष चिकित्सक आगे आ रहे हैं। इसलिए सरकार बजट में आयुष चिकित्सा पद्धतियों के लिए भी विशेष बजट का प्रावधान कर देश की आधी से ज्यादा आबादी के सहज इलाज का रास्ता आसान कर सकती है।
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