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समय बड़ा बलवान

locationजयपुरPublished: Nov 24, 2019 11:35:03 am

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Gulab Kothari

राजनीति स्पर्धा नहीं युद्ध बन गई। हमें श्रेष्ठ प्रमाणित करने की आवश्यकता भी नहीं रही। हमारा मोल ही हमारी श्रेष्ठता का आधार है।

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– गुलाब कोठारी

राजनीति स्पर्धा नहीं युद्ध बन गई। हमें श्रेष्ठ प्रमाणित करने की आवश्यकता भी नहीं रही। हमारा मोल ही हमारी श्रेष्ठता का आधार है। जड़ के बदले में अपनी चेतना को बेचना, राजनीति के बाजार में, अब कोई आश्चर्य की बात नहीं रही। हालांकि, महाराष्ट्र की राजनीति में जो कुछ घटित हुआ, उसे सुनकर पूरा देश चौंक गया। हवा में एक ही नाम तैर रहा है-अमित शाह। शतरंज में ढाई घर चलने वाले घोड़े ही प्रमाणित हुए।

शुक्रवार शाम को ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के शरद पवार ने घोषणा की थी कि गठबन्धन सरकार के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे होंगे और सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी। सूर्योदय ने घोषणा कर दी कि राज्यपाल ने भाजपा नेता देवेन्द्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी। यहां तक भी कोई आश्चर्य नहीं। आश्चर्य भाग दो में है। अजित पवार ने उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इनके चाचा और एन.सी.पी के अध्यक्ष शरद पवार ने ही तो शाम को गठबन्धन सरकार की घोषणा की थी। क्या अजित पवार चाचा शरद जी को इतने ही प्यारे थे? क्या इस निर्णय से शरद पवार और राष्ट्रवादी कांग्रेस की छवि धूमिल नहीं होगी? क्या कारण रहे होंगे इतने बड़े खतरे को मोल लेने के पीछे?

इतिहास साक्षी है कि सन् 2009 के चुनावों में भी शरद पवार को कांग्रेस के बाद अधिक सीटें मिली थीं, वे चाहते तो मुख्यमंत्री बन सकते थे किन्तु अपनी घोषणा के अनुरूप अजित पवार को ही बनाना पड़ता। किन्तु वे महाराष्ट्र की राजनीति में नहीं आना चाहते थे। और उन्होंने अजित को भी मुख्यमंत्री नहीं बनाया। समर्थन दिया कांग्रेस के अशोक चव्हाण को। क्यों आज उन्हीं अजित पवार को उपमुख्यमंत्री बनवाकर पार्टी की प्रतिष्ठा को दांव पर लगा दिया। भले संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने इससे इंकार किया हो। क्या पार्टी के भविष्य की किसी को चिन्ता नहीं?

शरद पवार स्वयं जीवन के अन्तिम पड़ाव से गुजर रहे जान पड़ते हैं। क्या वे पार्टी को अजित के भरोसे छोडऩा चाहेंगे, जिनको अवसर मिलने के बाद भी मुख्यमंत्री नहीं बनाया था। चुनाव पूर्व इन पर इडी ने मुकदमे भी दर्ज किये थे। उसका ही परिणाम भी माना जा रहा है इस ‘धम्मं शरणं गच्छामि’ को। अब छवि बिगड़ेगी तो भविष्य में प्रभाव भी घटेगा। ऐसे में शरद जी की पुत्री सुप्रिया को उनके भविष्य के प्रति आश्वस्त करना आवश्यक है। यह सुरक्षा शिवसेना के साथ कतई संभव नहीं है। भाजपा के साथ है, यदि आने वाले समय में पूरी राष्ट्रवादी कांग्रेस ही भाजपा में शामिल हो जाए।

आज की स्थिति में मराठा बराबर की दो फाड़ हो गया। शिवसेना के पास 56 सीटें हैं, तो एन.सी.पी. के पास 54। यही शिवसेना की पराजय का मुख्य कारण भी कहा जा सकता है। शिवसेना की छवि से जुडऩे को कांग्रेस भी राजी नहीं होने वाली। अगले चुनावों में वर्तमान सौदेबाजी का प्रभाव यहां भी एन.सी.पी. की तरह दिखाई पड़ेगा। वही भावी महाराष्ट्र की तस्वीर होगी। आज उसकी नींव अमित शाह की दूरदर्शिता ने रख दी है। महाराष्ट्र सरकार का नया रूप सामने आएगा। इसमें विसर्जन होता दिखाई पड़ रहा है अजित पवार का। इसमें छवि धूमिल होगी, महामहिम राज्यपाल की। वे किस आधार पर आश्वस्त हो गए कि फडणवीस के पास बहुमत है। यदि वे सही हैं तो शरद पवार का प्रेस वार्ता में दिया गया बयान कितना अर्थपूर्ण रह जाएगा? क्या शरद और अजीत दो धड़े माने जाएंगे? तब फिर प्रश्न यही होगा कि महामहिम को क्या हर हाल में राष्ट्रपति शासन हटाना ही था? क्या शरद पवार पार्टी को भी समेट देना चाहते हैं। अजीत के सहयोग से फडणवीस यदि सदन में बहुमत सिद्ध कर देते हैं तो शरद जी के नेतृत्व का धुआं नहीं निकल जाएगा। किसी शायर ने कहा है-

‘हल्की-हल्की बढ़ रही हैं चेहरे की लकीरें।
नादानी और तजुर्बे का बंटवारा हो रहा है॥’

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