scriptमतभेद भुलाकर चुनें नई राहें | To put differences in back, India-China should walk on new path | Patrika News

मतभेद भुलाकर चुनें नई राहें

Published: Apr 26, 2018 11:22:31 am

चीन के वुहान शहर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 27 और 28 अप्रेल को एक बार फिर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात करेंगे।

NaMo Xi Jinping

Narendra Modi Xi Jinping

चीन के वुहान शहर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 27 और 28 अप्रेल को एक बार फिर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात करेंगे। इसके नतीजों को लेकर अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय मंचों पर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं जो कि स्वाभाविक भी है। चार साल में दोनों नेताओं की हालांकि यह चौथी मुलाकात होगी, लेकिन बातचीत के विषय लगभग वही हैं। फिर भी वैश्विक राजनीति के वर्तमान दौर में यदि दोनों देशों के राष्ट्र प्रमुखों को बातचीत के लिए एक मंच पर लाने की कोई वाजिब वजह है तो वह आर्थिक है।

दीगर है कि यह शिखर वार्ता अनौपचारिक है और इसी कारण न तो बातचीत का पहले से कोई एजेंडा ही तय किया गया है और न ही कोई संयुक्त बयान जारी करने का दबाव है। ऐसे में जो विषय दोनों देशों के लिए वर्तमान में सर्वाधिक चिंता और मंथन का कारण है, वह है अमरीका द्वारा चीन से आयातित वस्तुओं पर शुल्क में बढ़ोतरी से बिगड़ा संतुलन। निश्चित तौर पर घरेलू व्यापार और बाजार के प्रति अमरीका की संरक्षणवाद की नीति ने दुनिया के विकासशील देशों को बाध्य कर दिया है कि भूमण्डलीकरण पर मंडरा रहे खतरे को लेकर सचेत हो जाएं। चीन के उत्पादों पर अमरीका की अप्रत्यक्ष पाबंदी ने कुछ हद तक चीन के लिए संकट खड़ा कर दिया है और इस स्थिति से निपटने के लिए उसे इस समय अधिक से अधिक मित्रों की जरूरत है।

दोनों देश अपनी भौगोलिक स्थिति और घरेलू आवश्यकताओं से अच्छी तरह वाकिफ हैं और यह भी जानते हैं कि दुनिया की आर्थिक वृद्धि में दोनों ही अर्थव्यवस्थाओं का बड़ा योगदान है। इस तथ्य को स्वीकार करना भी मौजूदा हालात में बेहद जरूरी होता जा रहा है कि आबादी के जीवनस्तर को ऊंचा उठाने के लिए निश्चित तौर पर ही आर्थिक व व्यापारिक सहयोग की राह पर दोनों देशों को आगे बढऩा होगा और विवादों और मतभेदों से किनारा करना होगा, फिर चाहे मसला डोकलाम का हो या फिर दलाई लामा का। दलाई लामा के निर्वासन के 60 साल पूरे होने पर दिल्ली में प्रस्तावित एक सर्वधर्म सभा को निरस्त कर भारत सरकार पहले ही चीन के साथ संबंध सुधारने की इच्छुक होने का संकेत दे चुकी है।

दोनों देशों के विदेश मंत्री भी कह चुके हैं कि अनौपचारिक शिखर वार्ता में दोनों नेता भारत-चीन संबंधों से जुड़े तमाम द्विपक्षीय मसलों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय मसलों पर भी चर्चा करेंगे। ऐसे में चीन की कोशिश बीजिंग के खिलाफ अमरीकी मुहिम से भारत को अलग-थलग कर अपने पक्ष में करने की रहेगी और इसका आधार होंगे दोनों देशों की एक समान परिस्थितियां और एक समान उद्देश्य। दूसरी ओर, भारत की कोशिश एक बार फिर यही होगी कि दोनों देशों के बीच व्यापार में भारी असंतुलन को दूर करने के लिए चीन ठोस कदम उठाने पर राजी हो। यह तभी संभव है जबकि चीन, भारत के लिए सूचना प्रौद्योगिकी और फार्मास्यूटिकल जैसे क्षेत्रों को खोले।

भारत, भूटान और चीन की सीमा पर स्थित डोकलाम में भारत और चीन की सेनाओं के बीच लगातार चले आ रहे विवाद के बाद दोनों नेताओं की हालांकि यह पहली मुलाकात है, लेकिन इस बात की संभावना बेहद कम है कि संबंधों में सुधार की इस कोशिश पर डोकलाम विवाद के बादल मंडराएंगे। दोनों देशों की ओर से इसी बात के संकेत दिए जा रहे हैं कि क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए यह आवश्यक है कि सीमा विवाद जैसे मसलों को द्विपक्षीय वार्ता के ऐसे अवसरों से दूर रखा जाए। जरूरत है कि पूरा ध्यान आर्थिक सहयोग बढ़ाने और विश्व व्यापार में असंतुलन व अस्थिरता पैदा करने की कोशिशों को नाकाम करने पर केंद्रित किया जाए।

भारत-चीन द्विपक्षीय वार्ता का एक अहम बिंदु ‘वन रोड वन बेल्टÓ हो सकता है, जिसका कि भारत विरोध करता रहा है। चीन की इस परियोजना का समर्थन करने वाले देशों के संगठन शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन (एससीओ) की बीजिंग बैठक में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने हालांकि शिरकत की, पर साझा विज्ञप्ति में भारत का नाम शामिल नहीं किया गया। हालांकि इसका कारण चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर है जो पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है, इसके बावजूद संभव है कि चीन एक बार फिर द्विपक्षीय वार्ता के दौरान भारत को इसके लिए राजी करने की कोशिश करे।

ओआरओबी प्रोजेक्ट के लिए मदद पर आधारित विकास और सहयोग का मॉडल नहीं अपनाया गया है, बल्कि यह चीन की रणनीति का हिस्सा है जिसे पूंजीपतियों के निवेश के जरिए लागू किया जा रहा है। इसी रणनीति (बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव) के चलते आज श्रीलंका चीन के कर्ज तले दबा हुआ है और इसी कारण हंबनटोटा बंदरगाह 99 साल की लीज पर चीन की कंपनी को देने के लिए मजबूर हो गया। चीन के तीन दौरे भले ही लगभग बेनतीजा रहे हों, पर दोनों एशियाई देशों के शीर्ष नेताओं की अनौपचारिक ही सही, चौथी मुलाकात एक बार फिर नतीजों की उम्मीद तो बंधाती ही है।

ट्रेंडिंग वीडियो